लंदन में निर्वासित हांगकांग में लोकतंत्र के समर्थक छात्र नैथन लॉ के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यदि सीपीसी को समझना है तो उसे हांगकांग को देखना चाहिए, बीजिंग को नहीं। सौ साल में पार्टी में कोई बदलाव नहीं आया है। सत्ता में बने रहना और राजनीतिक हित साधना पार्टी के लिए सर्वोपरि है। वे बहुत अधिक आत्मविश्वासी और आक्रामक हो गए हैं। लोकतंत्र को खतरा मानने लगे हैं। वे इसे मिटाने और नकारने का यथासंभव प्रयास करेंगे।
हांगकांग के एक्टिविस्ट का मानना है कि उनका लोकतांत्रिक आंदोलन खत्म नहीं हुआ है, बस इसे दबा दिया गया है। विश्व समुदाय चीन पर दबाव बना सकता है कि अगर उसने हांगकांग का दमन जारी रखा, तो चीन को बहुत महंगा पड़ेगा। ध्यान रहे, अगर विश्व हांगकांग मुद्दे की अनदेखी कर देता है, तो चीन के दुस्साहसी राष्ट्रपति जिनपिंग शीघ्र ही ताइवान को भी ऐसा ही बना देंगे। जिनपिंग चीन और ताइवान के एकीकरण की मंशा काफी पहले जाहिर कर चुके हैं। पार्टी स्थापना दिवस पर भी उन्होंने इस एकीकरण को ‘ऐतिहासिक मिशन’ बताया।
अमरीकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ सदस्य डैन ब्लूमैंथल ने कहा कि हांगकांग के उदाहरण से हमें यह गंभीरता के साथ स्वीकारना होगा कि जिनपिंग जो कहते हैं, वे करते हैं। अपनी किताब ‘द चाइना नाइटमेयर’ में उन्होंने चेताया है कि सीपीसी का मृदु और आक्रामक रवैया दोनों ही खतरनाक हैं। बीजिंग झिनझियांग प्रान्त में उईगर मुसलमानों के जातीय संहार की ओर बढ़ रहा है। यहां तक कि अपने राजनीतिक हित साधने के लिए वह महामारी का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूका। पिछली एक सदी का सबक यही है कि आक्रामक, दमनकारी, विस्तारवादी, राष्ट्रवादी एकदलीय तानाशाही शासन का तुष्टीकरण उससे मुकाबला करने की तुलना में ज्यादा खतरनाक है। इस 1 जुलाई को इस बात के लिए याद रखा जाना चाहिए कि जब शी जिनपिंग कोई धमकी दें, तो मुकाबले के लिए मोर्चाबंदी की तैयारी बढ़ा देनी चाहिए।