scriptबिना नौकरी कैसी आर्थिक तरक्की ? | Without Employment How Indian Women can be Economically Empowered ? | Patrika News

बिना नौकरी कैसी आर्थिक तरक्की ?

locationजयपुरPublished: Jan 30, 2018 06:36:08 pm

पिंक आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण बतलाता है कि महिलाओं की स्थिति में सुधार केवल पिंकी-पिंकी ही है…

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Economic survey 2018

अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी,

आंचल में है दूध और आंखों में पानी।

मैथलीशरण गुप्त की उक्त पंक्तियों व सुब्रहमण्यम भारती, पुडुमाई पेन की पंक्तियों और #MeToo के साथ आर्थिक सर्वे 2018 का सातवां अध्याय जब अपनी बात शुरू करता है तो बहुत उत्साहजनक पंक्तियां पढ़ने में आती हैं। भारत ने पिछले 10-15 वर्षों में महिलाओं से संबंधित 17 सूचकांकों में से 14 में सुधार दर्ज किया है वहीं इनमें से 7 तो ऐसे हैं जिनमें भारत का स्तर विकसित देशों के स्तर के अनुकूल नजर आता है। लेकिन इन आंकड़ों का सबसे भयावह पहलू है रोजगार के अवसरों में महिलाओं का पिछड़ना, इसके अलावा प्रतिवर्ती गर्भनिरोधकों के उपयोग और पुत्र की चाहत भी ऐसे मुद्दे हैं जो चिंता का विषय हैं। सर्वे में मुख्यतौर पर 1990, शुरुआती 2000 एवं 2015-16 की अवधि में महिलाओँ की स्थिति की तुलना कर सुधार या गिरावट को रेखांकित किया गया है। सर्वे की सबसे चौंकाने वाली बात जहां 6 करोड़ तीस लाख महिलाओँ के कम हो जाने की है वहीं, 2 करोड़ 10 लाख अनचाही लड़कियों के जन्म लेने की कड़वी सच्चाई भी यह सर्वे बयान करता है। इन दो प्रमुख बिन्दुओँ के परे जिन मानकों को सर्वे तरक्की के सूचकांक बताता है आइए जरा उन पर नजर डालें और फिर विचारेंगे कि क्या वाकई जिन सूचकांकों में सुधार दर्ज किया गया है वो खुश होने लायक हैं भी या नहीं?

अर्थव्यवस्था की कुंजी हैं महिलाएं

गुलाबी रंग में जारी इस पिंक आर्थिक सर्वे में रेखांकित किया गया है कि यदि महिलाएं स्वयं के मामलों में निर्णय लेने की शक्ति , राजनीतिक शक्ति, सार्वजनिक स्तर, निजी हैसियत एवं मजदूर शक्ति में बराबर की भागीदारी हासिल कर लें तो इससे आर्थिक तरक्की में जबरदस्त इजाफा हो सकता है। विकसित देशों में कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों की पढ़ाई में अच्छा खासा निवेश करती हैं। सर्वे में आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टीन लागार्डे के दावोस में कहे गए कथन को भी उद्धृत कर कहा गया है कि, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी का स्तर पुरुषों के बराबर लाए जाने पर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में 27 प्रतिशत की जबरदस्त बढ़ोतरी हो सकती है।

एक दशक में बदल गई तस्वीर

आर्थिक सर्वे के निष्कर्षों का आधार डेमोग्राफिक एवं हेल्थ सर्वे (डीएचएस) के 1980 से 2016 के डाटा सेट का आंकड़ों का विश्लेषण है। जिसमें पुरुषों एवं महिलाओँ दोनों से प्रश्नों के जवाब मांगे गए थे। इसके अलावा इसमें इंडिया नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे(एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों को भी शामिल किया गया है। सर्वे में भारत 2005-06 व भारत 2015-16 के सूचकांकों की तुलना कर परिवर्तन दर्शाया गया है।

बड़े घरेलू सामान की खरीददारी में मिली निर्णायक भूमिका

आर्थिक सर्वे के अनुसार पिछले एक दशक भर में महिलाओँ को सबसे ज्यादा उल्लेखनीय अधिकार मिला है घरेलू सामान की खरीददारी का। इसमें अब उनका निर्णय पहले 20.4 प्रतिशत बढ़ गया है। यानी उसकी अपनी रसोई में क्या आएगा, घर में वह क्या चीज चाहती है, इसमें उसका निर्णय महत्वपूर्ण हो गया है। पर क्या यही वाकई में तरक्की की निशानी कहा जाएगा?

खुद का रख सकती हैं ख्याल,रिश्तेदारों के यहां जाने की आजादी बढ़ी

सर्वे के अनुसार 15 से 49 साल की महिलाओं में खुद के स्वास्थ्य के संबंध में निर्णय लेने में सहभागिता बढ़ी है और एक दशक में इसमें करीब 12.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यानी अब वे अपना इलाज कैसा होगा और कहां होगा इसका निर्णय पहले से ज्यादा कर सकती है। परिवार और संबंधियों के यहां जाने के निर्णय में भी उनकी सहभागिता पिछले दशक के 60.5 प्रतिशत के मुकाबले 2015-16 में 74.6 प्रतिशत हुई है। करीब 14.1 प्रतिशत की यह बढ़ोतरी उन्हें अपने रिश्तेदारों के यहां जाने में ज्यादा आजादी मिलने की बात कहती है, पर इसके उलट अपनी मर्जी से कहीं घूमने जाने की आजादी को लेकर सर्वे मौन है।

घट गया रोजगार और अपनी कमाई पर हक

सर्वे का सबसे भयावह पहलू है आर्थिक तौर महिलाओं का कमजोर होना। उनके रोजगार में जबरदस्त कमी आई है। एक दशक पहले 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग में 36.3 प्रतिशत महिलाएं रोजगार में नियोजित थीं वहीं वर्ष 2015-16 में यह प्रतिशत घट कर 24.0 रह गया है । जहां एक ओर देश आर्थिक तरक्की और बढ़ते रोजगार के अवसरों की बात कर रहा है वहीं महिलाओँ के रोजगार में 12.3 प्रतिशत की कमी अलग ही तस्वीर दिखाती है। हालांकि कामकाजी महिलाओं में गैर मानवीय श्रम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और यह 18.9 प्रतिशत से बढ़ कर 28.2 प्रतिशत हुई है। इसका अर्थ है कि महिलाएं ऊंची और तकनीकी नौकरियों में ज्यादा जगह पा रही हैं। लेकिन वहीं देश संपदा के स्तर के अनुसार देखें तो इसमें भी कमी हुई है और यह कमी 19.8 प्रतिशत है। वहीं पुरुषों के बराबर या उससे ज्यादा कमाने वाली महिलाओँ के मामले में महिलाओँ की स्थिति कुछ अच्छी हुई है। यह प्रतिशत जो पहले कामकाजी स्त्रियों का 21.2 प्रतिशत था जो अब बढ़ कर 42.8 प्रतिशत हो गया है। पर जब आप देश की संपदा से इसकी तुलना करेंगे तो यहां भी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा और 7.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज पाएंगे।

पितृसत्तात्मक समाज में अभी बहुत दूर है मंजिल

तो अब तस्वीर कुछ साफ होती नजर आ रही कि महिलाओँ को स्थिति सुधरी है खुद के स्वास्थ्य का ख्याल रखने के निर्णय में और बड़ी घरेलु खरीदों के मामले में उनकी राय को भी महत्व देने की इसके अलावा वे अपने परिवार और रिश्तेदारों के यहां ज्यादा आजादी के साथ जा सकती है। लेकिन उनके अपने कमाए पैसे को खर्चने के अधिकार में कटौती हुई है। यह सूचकांक स्वयं अपनी कहानी कह रहे हैं कि महिलाओँ को पुरुष नेतृत्व वाले समाज में पुरुषों ने कुछ अधिकार दिए हैं पर उनकी आत्मनिर्भरता की दिशा में पिछला दशक गिरावट ही ले कर आया है।

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