राजनीति से जुड़ी महिलाओं को अभद्र भाषा से लेकर अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल 2020 की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान 95 भारतीय महिला राजनेताओं के ट्वीट का विश्लेषण करने पर पाया गया कि महिला राजनेताओं के बारे में सात में से एक ट्वीट अपमानजनक था। रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि 'ऑनलाइन दुर्व्यवहार में महिलाओं को नीचा दिखाने, अपमानित करने, डराने और अंतत: चुप कराने की शक्ति है'। भारतीय महिला नेताओं को अमरीका और ब्रिटेन की अपने समकक्ष महिला नेताओं की तुलना में लगभग दो गुना अधिक उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। इन तमाम चुनौतियों के बीच भारत में महिलाएं राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही हैं। राजनीतिक विकास के संबंध में गहन विश्लेषण करने के लिए कुछ बिंदुओं पर विचार करना जरूरी है - राजनीतिक जागरूकता, राजनीति में भागीदारी, राजनीतिक नेतृत्व प्राप्त करना तथा नेतृत्व प्राप्त कर निर्णयों को प्रभावित करना और दिशा देना। सबसे पहला पड़ाव 'राजनीतिक जागरूकता' है। इसके बिना राजनीतिक विकास संभव ही नहीं है। देश के राजनीतिक परिदृश्य में आरंभ में महिलाओं की मौजूदगी भले ही कम रही हो, पर सच यह है कि महिलाओं में राजनीतिक चेतना का विकास तेजी से हुआ है। महिलाएं यह जानने का प्रयास करने लगी हैं कि जिन्हें उन्हें चुनना है वे उनके हितों के प्रति सचेत हैं या नहीं। अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि महिलाएं पहले से अधिक मुखर हुई हैं। यह निर्विवादित है कि राजनीतिक जागरूकता में पंचायत चुनाव में महिलाओं को मिला आरक्षण एक मुख्य कारण है। राजनीतिक जागरूकता के बाद 'राजनीति में भागीदारी' दूसरा पड़ाव है। पंचायती राज संस्था जो जमीनी लोकतांत्रिक ढांचे निर्मित करती है, में महिलाओं की भागीदारी ने ग्रामीण संरचना को सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में बढ़ाया। यह तय था कि अगर राजनीति के निचले पायदान में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलता, तो वे अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं कर पाती। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेटिक एंड इलेक्टोरल असिस्टेंट स्टॉकहोम 2014 के आंकड़े दिखाते हैं कि ऐसे देशों की संख्या बढ़ी है, जहां सार्वजनिक चुनावों में महिला आरक्षण का प्रावधान किया है। आज विश्व की श्रम- शक्ति में बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद हैं। इससे सिद्ध होता है कि अगर पर्याप्त सामाजिक और पारिवारिक समर्थन मिले, तो महिलाएं सार्वजनिक उत्तरदायित्व भी कुशलता से निभा सकती हैं। यह कहना कि महिलाओं के चुनाव जीत सकने की संभावना कम होती है तथ्यों से मेल नहीं खाता, क्योंकि 1971 में पुरुषों की सफलता दर जहां 18 प्रतिशत थी, वहीं महिलाओं के लिए यह 34 प्रतिशत रही, जबकि 2014 के चुनावों में पुरुषों की सफलता दर 6.4 प्रतिशत और महिलाओं की 9.4 रही।
यह कटु सत्य है कि परंपरावादी भारतीय समाज में पुरुषों की तुलना में महिला उम्मीदवारों के समक्ष विश्वसनीयता की समस्या ज्यादा होती है, जिसके चलते उन्हें अपनी योग्यता सिद्ध करनी होती है। विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए वे राजनीति में भागीदारी कर रही हैं। राजनीति विकास का तीसरा व चौथा पड़ाव राजनीतिक नेतृत्व प्राप्त करना, नेतृत्व प्राप्त करके निर्णय को प्रभावित करना तथा दिशा देना है। समानुपातिक प्रतिनिधित्व की दहलीज पर भले ही महिलाएं नहीं पहुंच पाई हों, लेकिन पहले की तुलना में उनकी उपस्थिति का दायरा जरूर बढ़ा है। महिलाओं की राजनीति विकास यात्रा अभी बहुत लंबी है, तमाम चुनौतियों के बीच स्वयं को सिद्ध करना दुष्कर कार्य अवश्य है, पर असंभव नहीं।