लगता है प्रकृति के ऐसे ही रोष की अनदेखी का नतीजा है जो आग, बाढ़, भूस्खलन, सूखा, अत्यधिक तापमान, बढ़ती तटीय सीमाओं और पिघलते गलेशियर के रूप में सामने आ रहा है। धरती मां आहत है और हममें से बहुतों को यह अहसास हो गया है कि अब हम और ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकते कि धरती मां अब भी हम पर आशीर्वाद और सौगातों की बौछार करती रहेगी, खास तौर पर अगर हमने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई तो। प्रकृति और मानव स्वभाव के बीच तनाव ही मौजूदा और भावी संघर्ष का कारण है। इस पर विचार मंथन की जरूरत है। जटिल एवं जानलेवा मौसमी हालात में ऐसे संकेत दिखाई दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े विज्ञान को तरजीह न देने वाले भी अब इस खतरे की आहट सुन रहे हैं।
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 60 फीसदी अमरीकी ग्लोबल वार्मिंग को बड़ा खतरा मानते हैं। 2009 में यह आंकड़ा सर्वाधिक यानी 65 प्रतिशत था और लोग सरकार से अपेक्षा कर रहे थे कि वह ऐसे उपाय बढ़ाए जिनसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम हो सके। 60 फीसदी ट्रंप समर्थकों का मानना था कि इस दिशा में नियमन कानून लाया जाए या जलवायु परिवर्तन का कारण बने प्रदूषण पर कर लगाया जाए। सरकार अकेले इस नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती, लोगों को आगे आना होगा।
प्रकृति के मां स्वरूप को स्थापित करना होगा। क्या हम सब अपनी मां को प्रेम नहीं करते? वह चाहती है कि जो उपहार उसने मानव को दिए हैं, वे संरक्षित हों। पश्चिमी यूरोपीय और अमरीकियों ने प्रकृति मां के अधिक उदार स्वरूप की कल्पना की, जिसके चरणों में संसारी जीव विचरण करते रहते हैं। जबकि मैं एक ऐसी स्त्री को देखती हूं जिसे इस बात की फिक्र नहीं कि पड़ोसी सुन रहे हैं और वह फ्रीजर खुला छोडऩे, रिसाइक्लिंग के नियमों की अनदेखी करने और सूखे के बीच आग से खेलने वाले अपने स्वार्थी बच्चों पर चिल्ला रही है। स्त्रियां, विशेष रूप से माताएं, ही हैं जो बढ़ते जलवायु संकट से निपटने के लिए जमीनी लड़ाई में संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं। यह पुरुषों को जिम्मेदारी से मुक्त करना नहीं है, पर 10-12 चीजें ऐसी हैं जो निजी स्तर पर तुरंत कार्बन उत्सर्जन कम करने और संसाधनों के संरक्षण के लिए कारगर हो सकती हैं – मांसाहार का कम सेवन, इफिशंट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल, खाने की बर्बादी रोकना, इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड कार चलाना, बोतल वाले पानी का सेवन बंद करना, सर्दी में थर्मोस्टैट का कम उपयोग, कम्पोस्ट बनाना और लंबे समय तक चलने वाले लाइट बल्ब का इस्तेमाल। इन सभी बातों पर प्राय: स्त्रियों का नियंत्रण व प्रभाव रहता है।
प्रकृति संरक्षण के उपायों के साथ हमें प्रकृति मां की परीकथाओं से जहन में उतारी गई छवि को भी हमेशा के लिए छोडऩा होगा। ‘मदर नेचर’ और मानव स्वभाव के बीच संघर्ष में लड़कियों, स्त्रियों और विशेषकर माताओं के फैसले हमारी संकटग्रस्त पृथ्वी को बचा सकते हैं। निश्चित रूप से प्रकृति मां इससे खुश होंगी।