पहले इस विधेयक में 20 सप्ताह तक के गर्भ को विशेष परिस्थितियों में गिराने के लिए विधिक वैधता हासिल थी, जिसे बढ़ा कर अब 24 सप्ताह कर दिया गया है। बशर्ते विशेषज्ञ चिकित्सकों का मंडल उस गर्भपात को महिला के जीवन सुरक्षा को खतरा ना मानता हो। यदि विषम परिस्थिति में गर्भ को 24 सप्ताह से अधिक हो गए हैं, तो सक्षम न्यायालय में याचिका के माध्यम से गर्भ समापन किया जा सकता है, लेकिन वह भी केवल तब ही जबकि विशेषज्ञ चिकित्सकों का मंडल पीडि़ता के जीवन की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो। इसमें स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य कोई सदस्य शामिल हो सकता है। यह कानून गर्भपात की मांग करने वाले व्यक्ति की गोपनीयता बनाए रखने का प्रावधान के साथ महिलाओं को प्रजनन अधिकार भी प्रदान करता है। इस विधेयक से भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 312 से 318 तक के प्रावधानों में वर्णित अपराधों में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कमी आएगी।
भारत में इस विधेयक से महिलाओं का सुरक्षित गर्भपात सुनिश्चित होगा। गर्भपात सेवाओं में सुधार होगा। असुरक्षित गर्भपात के कारण होने वाली मातृ मृत्यु दर में कमी आएगी और गर्भपात की जटिलताओं के समाधान की संभावनाएं प्रबल होंगी। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में प्रत्येक 155 मिनट में 16 वर्ष तक की बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है। दुष्कर्म से पीडि़त कई नाबालिग बच्चियों को मां बनना पड़ा, क्योंकि पूर्ववर्ती गर्भपात कानून के कारण भ्रूण के 20 हफ्ते होने के बाद गर्भपात का फैसला अदालतों पर टिका था। दूर-दराज के क्षेत्रों की ग्रामीण महिलाएं और बच्चियां अपने अधिकारों के लिए अदालत नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में गर्भपात के नए प्रावधान महिला सुरक्षा में मददगार हैं।
(लेखक राजस्थान सरकार में अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं)