अफगानिस्तान : लड़कियों की शिक्षा के लिए तालिबान पर दुनिया बनाएं दबाव
अमरीका समेत क्षेत्र के अन्य देशों को तालिबान के साथ अपनी कूटनीतिक और आर्थिक वार्ता में लड़कियों की शिक्षा, महिला रोजगार और अफगान महिलाओं के मौलिक अधिकारों जैसे मुद्दों को शामिल करना चाहिए।
Published: April 07, 2022 08:17:28 pm
मेलाने वरवीर
कार्यकारी निदेशक, महिला सुरक्षा संस्थान, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी रोया रहमानी
अमरीका में अफगानिस्तान की
पूर्व राजदूत अफगानिस्तान में लड़कियों के हाई स्कूलों को खुलने के तुरंत बाद ही अचानक बंद करा देने के आदेश से लड़कियों की आंखों से आंसू निकल आए और उनमें आक्रोश फैल गया। स्कूल पिछले सात महीनों में पहली बार खुले थे, लेकिन न तो नीतियों में ठोस बदलाव हुआ और न ही राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई। इस स्थिति में बदलाव लाना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र प्रतिज्ञा सम्मेलन में अफगानी लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति देने के अपने वादे से मुकरने पर तालिबान की आलोचना तो की गई, लेकिन ऐसी कोई रेडलाइन तय नहीं की गई कि तालिबान किस तारीख से विद्यालयों को खोलेगा और हर अफगान लड़की के शिक्षा अधिकार को बहाल करेगा, जिसकी वह हकदार है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तालिबान के साथ निरन्तर सहभागिता के लिए ये पूर्व शर्तें होनी चाहिए। तालिबान को लड़कियों की शिक्षा को सौदेबाजी चिप के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। तालिबान के फैसले पर जो प्रतिक्रिया हुई है, उसका असर जोरदार और प्रभावशाली होना चाहिए, लेकिन अफगान नागरिक शिकार न बनें। तालिबानी नेताओं को अंतरराष्ट्रीय यात्रा की मंजूरी और तालिबान की वित्तीय संपत्तियों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने के लिए अमरीका को इस क्षेत्र की सरकारों के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए। अमरीका समेत क्षेत्र के अन्य देशों को तालिबान के साथ अपनी कूटनीतिक और आर्थिक वार्ता में लड़कियों की शिक्षा, महिला रोजगार और अफगान महिलाओं के मौलिक अधिकारों जैसे मुद्दों को शामिल करना चाहिए। यह भी चेतावनी देनी चाहिए कि यदि वह शिष्टता और बराबरी का व्यवहार चाहता है, तो ये मुद्दे महत्त्वपूर्ण हैं।
तालिबान अंतरराष्ट्रीय वैधता हासिल करने के लिए काफी व्यग्र है, लेकिन इस फैसले से अफगानिस्तान में सरकार के रूप में उसके कत्र्तव्यों और दायित्वों का भी उल्लंघन होता है, जिसमें महिलाओं के खिलाफ सभी तरह का भेदभाव खत्म करने, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति शामिल है तथा बाल अधिकारों पर कन्वेंशन से प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
संयुक्त राष्ट्र के वर्चुअल प्रतिज्ञा सम्मेलन में अफगानिस्तान के गंभीर मानवीय संकट पर अधिक सशक्त और प्रभावशाली चर्चा हुई है। विश्व नेताओं को वैकल्पिक शिक्षा मॉडल के लिए वित्तीय सहायता समेत अन्य सुविधाओं को संभव बनाना चाहिए, ताकि अफगान लड़कियां शिक्षा हासिल कर सकें और तालिबान अपने मन-मुताबिक उनसे यह अधिकार छीन न सके। आखिर यह महिलाओं के विकास से जुड़ा मुद्दा है।
किसी भी लड़की को शिक्षा से वंचित करना मौलिक रूप से अस्वीकार्य होना चाहिए। लड़कों के समान अफगान लड़कियों को भी शिक्षा और अवसर के अधिकार मिलने चाहिए। इसमें दखलंदाजी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अपरिवर्तनीय रेडलाइन होनी चाहिए। अफगान लड़कियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता तोड़कर तालिबान यह संदेश दे रहा है कि वह पिछले दो दशकों में विकसित नहीं हुआ है, जैसा कि वह दावा करता है।
तालिबान को उसके फैसला पलटने के लिए राजी करना क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जरूरी है, क्योंकि लड़कियों की शिक्षा न केवल साक्षरता और प्रोफेशनल दक्षता के लिहाज से, बल्कि गतिशीलता, सहिष्णुता, विवाद समाधान और बुनियादी मौलिक अधिकारों के लिए भी आवश्यक है। इससे शांतिपूर्ण समाज बनाने और आतंकवाद, उग्रवाद की रोकथाम में भी मदद मिलेगी। अन्ततोगत्वा, कतर, सऊदी अरब, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और मुस्लिम बहुल देशों को लड़कियों की शिक्षा के सम्मान के लिए आगे आना चाहिए और इस्लाम के नाम पर स्कूल बंद करने के तालिबानी फरमान को खारिज कर देना चाहिए। मुस्लिम धर्म में, शिक्षा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक ईश्वरीय आदेश है। कोई संदेह नहीं, इस्लामी शिक्षा की सभी पवित्र पुस्तकों-कुरान, हदीस में महिलाएं भी पुरुषों के समान ही शिक्षा हासिल करने, अपने ज्ञान को आगे बढ़ाने की हकदार हैं।

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