scriptपुलिस पर हिंसक हमलों की चिंताजनक तस्वीर | Worrying picture of violent attacks on police | Patrika News

पुलिस पर हिंसक हमलों की चिंताजनक तस्वीर

locationनई दिल्लीPublished: Jul 07, 2020 04:42:46 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

कोई देश कानून और संविधान के रा स्ते पर ही चल सकता है। अगर पु लिस का भय नहीं रहा तो फिर बचेगा क्या? क्या हम जंगल रा ज की तरफ बढ़ रहे है ?

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Lock down: Challan of employees on duty, dispute occurred

आर.के. सिन्हा, पूर्व सांसद व टिप्पणीकार

उत्तर प्रदेश के कानपुर में रा ज्य पुलिस के एक डीएसपी समेत आठ जवानों का गुंडागर्दी का शिकार होकर शहीद होना चीख-चीख कर कह रहा है कि देश में खाकी का भय खत्म होता जा रहा है। कानपु र न तो कश्मीर है और न ही नक्सल प्रभावित इलाका। इसके बावजूद रा त में बदमाशों की फ़ायरिंग में आठ जवानों के मारे जाने से बहुत से सवाल खड़े हो रहे हैं। शहीद हुए पुलिस वाले हिस्ट्री शीटर विकास दूबे को गिरफ्तार करने गए थे। उसके बाद वहां जो कुछ हुआ वह सबको पता है। विकास दूबे और उसके गुर्गे अब बचेंगे तो नहीं। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि अचा नक से पुलिस पर हिंसक हमले क्यों बढ़ रहे हैं?
मौजूदा कोरोना काल के दौरान भी पुलिस पर हमले हो रहे हैं। जबकि देशभर में पुलिस का मानवीय चे हरा उभरकर सबके सामने आया है । कुछ समय पहले पंजाब में एक सब इं स्पेक्टर का हाथ काट दिया गया था । उसने पटियाला में बिना पास के सब्जी मंडी के अंदर जाने से कु छ निहंगों को रोका था। रोका इसलि ए था क्योंकि तब कोरोना के संक् रमण चेन को तोड़ने के लिए सख्त लॉकडाउन की प्रक्रिया चल रही थी । बस इतनी सी बात पर निहंगों ने उस पुलिस कर्मी का हाथ ही का टकर अलग कर दिया था। हमलावर नि हंग हमला करने के बाद एक गुरुद् वारे में जाकर छिप गए थे। गुरु द्वारे से आरोपियों ने फायरिंग भी की और पुलिसवालों को वहां से चले जाने के लिए कह रहे थे। खै र, उन हमलावर निहंगों को पकड़ लि या गया था। पर जरा उन हमलावरों की हिम्मत तो देखिए। कुछ इसी तर ह की स्थिति तब बनी थी जब पीतल नगरी मुरादाबाद में कोरोना रोगि यों के इलाज के लिए गए एक डॉक् टर पर उत्पाती भीड़ द्वारा सुनि योजित हमला बोला गया। उस हमले में वह डॉक्टर लहू-लुहान हो गये थे । उनके खून से लथपथ चेहरे को सा रे देश ने देखा था ।
सोचने वाली बात यह है कि अगर पु लिस का भय आम आदमी के जेहन से उ तर गया तो फिर बचेगा क्या? क्या हम जंगल राज की तरफ बढ़ रहे है ? कोई देश कानून और संविधान के रास्ते पर ही चल सकता है। गुं डे-मवालियों का पुलिस को अपना बा र-बार शिकार बनाना इस बात का ठो स संकेत है कि पुलिस को अपने कर्त व्यों के निवर्हन के लिए नए सि रे से सोचना ही होगा । क्या यह माना जाए कि पुलिस महकमें में क मजोरी आई है, जिसके चलते पुलिस का भय सामान्य नागरिकों के जेहन से खत्म हो रहा है? कानपुर की घटना से कुछ दिन पहले हरियाणा के सोनीपत जिले में गश्त कर रहे 2 पुलिसवालों की भी हत्या कर दी गई थी। दोनों पुलिस कर्मियों को शहीद का दर्जा दिया जा रहा है। वह उचित निर्णय है । प्रथम दृ ष्टया जो बात सामने आ रही है उस के मुताबिक, दोनों पुलिसवालों की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई लगती है। गौर करें कि बदमा शों ने चौकी से थोड़ी ही दूर पर इस वारदात को अंजाम दिया। यानी कहीं भी पुलिस का डर दिखाई नहीं दे रहा है।
अपराधियों के दिलों-दिमाग में पु लिस का भय फिर से पैदा करने के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम सभी राज्यों में पुलिस कर्मियों के खाली पद भरे जाएं। पुलिस वालों की ड्यूटी का निश्चित टाइम भी त य हों। आबादी और पुलिसकर्मियों का अनुपात तय हो। शातिर अपराधि यों को पुलिस का रत्तीभर भी खौफ नहीं रहा। ये बेखौफ हो चुके हैं । ये पुलिस वालों की हत्या करने से भी तनिक भी परहेज नहीं करते । अब पुलिस को अधिक चुस्त होना पड़ेगा। अगर कानून की रक्षा करने वाले पुलिसकर्मी ही अपराधियों से मार खाने लगेंगे तो फिर सामा न्य नागरिक कहां जाएगा ?
कानपुर की घटना के बहाने सारे दे श की पुलिस पर बात करनी जरूरी है । सभी जगहों से करप्ट और कामचोर पुलिस वालों को बाहर करना होगा । पुलिस वालों को आम आदमी के सा थ खड़ा होना होगा। कोराना काल में पुलिस की सराहनीय भूमिका को दे श ने देखा है। पुलिस के सम्मान की बहाली जरूरी है। अन्यथा देश के कानून में यकीन रखने वाले ना गरिक के लिए देश में रहना कठिन हो जाएगा। सरकार को इनकी सेवा श र्तों में और सुधार करने होंगे। पुलिस वालों को ज्यादा अधिकार और बेहतर हथियार देने होंगें । आत्म रक्षार्थ गोली चलाने की छू ट देनी होगी । मानवाधिकारों को पुनः परिभाषित करना होगा । तभी पुलिस बल स्वतंत्र होकर कार्य क र सकेगी ।
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