संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन सरकार ने कृषि सुधार के तीनों कानूनों को रद्द करने का विधेयक- 2021 पारित कर दिया। विधेयक पेश करने से पहले जब सरकार के साथ विपक्ष भी कानूनों की वापसी के लिए तैयार था, तो फिर इस पर चर्चा का कोई औचित्य नहीं बनता ।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़
…………………………
कृषि बिल रद्द करने के विधेयक पर रजामंदी हो चुकी थी, फिर इस पर चर्चा करने या न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। सदन के कार्यकाल का सही उपयोग होना चाहिए।
-सरिता प्रसाद, पटना, बिहार
…………………….
सदन में चर्चा के नाम पर विपक्ष सरकार को घेरना चाहता था, जबकि मोदी सरकार चर्चा से बचना चाहती थी। जिन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 1 साल से किसान आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें रद्द करने में महज 6 मिनट का समय लगा। यह बेहद शर्मनाक है, यदि बहस होती तो कुछ न कुछ सकारात्मक जरूर निकल कर आता। विपक्ष भी चर्चा के लिए एक व्यवस्थित वातावरण बनाने में नाकाम रहा और केंद्र सरकार भी आनन-फानन में कानून रद्द कर चर्चा करने से भागती हुई दिखाई दी। यह दुखद है।
-अंकित शर्मा, जयपुर
……………………
संविधान में बिलों पर चर्चा कराने का प्रावधान है। इसके लिए सरकार और लोकसभा अध्यक्ष तैयार थे, लेकिन विपक्ष की अमर्यादित हरकतों और शोर शराबे के बीच सदन का समय खराब करना और चर्चा की व्यवस्था करना भी कैसे संभव था।अगर चचा होती, तो सदन का समय जाया ही होता।
-भगवान प्रसाद गौड़, उदयपुर
……………………………….
जरूरी थी चर्चा
में विपक्ष के जोरदार हंगामे के बाद भी लोकसभा से कृषि कानून वापसी बिल पास हो गया। इसके बाद राज्यसभा से भी इसे पास कराने में सरकार सफल रही। विपक्ष इस पर बहस करवाने की मांग लगातार करता रहा, लेकिन सदन में चर्चा नहीं हुई। कृषि बिलों पर चर्चा होनी जरूरी थी।
-नरेंद्र रलिया, भोपालगढ़, जोधपुर
…………………………………..
कृषि बिल जब रद्द ही किए जाने थे, तो चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं था। इससे सदन का महत्त्वपूर्ण समय खराब होता। सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे हंगामे और बेकार के मुद्दों पर अनावश्यक उलझने की बजाय सदन में पेश होने वाले बिलों पर सार्थक चर्चा के लिए तैयारी करें ।
सुनील कुमार शर्मा, जगतपुरा, जयपुर
…………………………..
सदन में चर्चा होनी चाहिए थी, जिससे बिलों की अच्छाई और बुराई जनता को पता चलती ओर पता चलता कि ये बिल किसानों के लिए कितने कारगर थे।
-उमेद पूनिया, हंसियावास, सिधमुख
…………………….
सरकार ने वादा निभाया
वादे के अनुसार सरकार ने कृषि कानून रद्द करने के लिए विधेयक संसद में पेश किया। लोकसभा अध्यक्ष के बार-बार अनुरोध के पश्चात भी जिस प्रकार विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया, उससे यह प्रकट होता है कि वे चर्चा करने की मानसिकता में नहीं थे। मात्र उनका उद्देश्य हंगामा करना था और यही कारण है कि सदन में चर्चा नहीं हो सकी। सरकार ने अपने वादे के अनुसार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की औपचारिकता को तत्काल पूरा किया।
-सत्येंद्र गोयल, भरतपुर
……………………..
विधेयक पारित होने से पूर्व चर्चा अति आवश्यक होती है, किन्तु कृषि कानूनों को रद्द करने संबंधी विधेयक पर चर्चा सदन का कीमती समय गंवाने के बराबर था। पिछले एक साल से विपक्ष भी कृषि कानूनों का विरोध कर रहा था। किसान नेताओं को अब घर वापसी के लिए किसानों को सलाह देनी चाहिए।
-मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ़