सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार से ज्यादा अपने आप को सेलेबिट्री के रूप में प्रस्तुत करने में लगे रहते हैं। इनको यह मुगालता हमेशा रहता है कि किसी विषय के बारे में मंत्री-विधायक कम और वे ज्यादा समझते हैं। हकीकत यह है कि इनका जमीन से कोई वास्ता नहीं होता। कई अफसर यह मान लेते हैं कि एक बार इम्तेहान पास कर जीवनभर आनंद लेने या रौब झाडऩे का परमिट इन्हें मिला हुआ है। इसकी भी मर्यादाएं होनी चाहिए। अब लगातार इस मर्यादा का उल्लंघन हो रहा है। विभाजित मीडिया का इस्तेमाल करने की कला में भी ये पारंगत हो चुके हैं। जिन दायित्वों का निर्वहन करना होता है, उनको छोड़कर सरकार का विश्लेषण और मीमांसा का काम ज्यादा करते हैं। नेताओं की तरह भाषण देने, उद्घाटन करने के प्रवृत्ति भी तेजी से बढ़ रही है। सरकार ने कानूनी तौर पर कुछ बंदिशें लगा रखी हैं, पर उसका पालन नहीं हो रहा है। ऐसा नहीं है कि सभी ऐसे हैं, पर दिन प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।
कई बार कुछ अधिकारी जनप्रतिनिधियों के सामने सही तस्वीर पेश नहीं होने देते हैं। सरकारों के साल गिनना इनका खास शगल होता है। कई बार जनता के चुने हुए नुमाइंदे इनके लिए विनोद और परिहास के विषय बन जाते हैं। फिर सोशल मीडिया पर उसका आनंद लेना। वायरल होती पोस्ट का ध्यान सबसे पहले इन्हीं को आता है। इन सबको रोकने के लिए सर्विस रूल्स हैं, पर उनकी पालना कितनी हो रही है। आज आवश्यकता इस बात की है कि वरिष्ठ नौकरशाह नई पीढ़ी के अफसरों को लोकतंत्र की मर्यादा के अनुरूप आचरण करने का माहौल दें। कई बार इसका उलटा देखने को मिलता है। अफसरों को मीडिया और सोशल मीडिया के संबंधों में लक्ष्मणरेखा को कभी नहीं लांघना चाहिए। हां, अगर आपको इन सबका शौक है तो सरकारी कुर्सियां तोडऩे के बजाय राजनीति में आएं, चुनाव लड़ें और जनता की सेवा करें।