का दावा है कि पीएलए के आधुनिकीकरण से चीन को ‘सुरक्षा, संकट- संघर्षों को रोकने, प्रबंधित करने और स्थानीय युद्ध जीतने में मजबूती मिलेगी।’ ‘स्थानीय युद्ध जीतना’ जैसी भाषा पहले की रिपोर्ट में कहीं नहीं थी। स्पष्ट रूप से यह संकेत भारत-चीन सीमा और ताइवान के साथ मौजूदा तनाव की ओर है। भारत के लिए इस बयान का तत्काल महत्त्व लद्दाख में तनाव और तिब्बत में चीन द्वारा रक्षा बुनियादी ढांचे के निर्माण की पृष्ठभूमि को लेकर है। ताइवान मामले में यूएस-चीन की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता बनी रहेगी।
सुधाकरजी रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय सेना में मेजर जनरल रह चुके हैं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में शी जिनपिंग को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में तीसरा कार्यकाल मिल गया है। अब वे देश के सबसे शक्तिशाली नेता बन गए हैं। माओत्से तुंग की 1976 में मृत्यु के बाद पहली बार किसी को विशेषाधिकार मिला। शी को मिला विशेषाधिकार आम सहमति से सीसीपी के फैसले लेने के रिवाज को प्रभावी ढंग से खत्म कर देगा। चीन के राष्ट्रपति शी ने अगले पांच वर्ष के लिए सीसीपी के एजेंडे को प्रस्तुत करते हुए व्यापक कार्य रिपोर्ट पेश की। विदेश नीति पर शी ने घोषणा की कि चीन पूरब में ‘बहादुरी के साथ अडिग’ रहेगा। यह वर्ष 2017 के भाषण का प्रतिबिम्ब ही है और पूर्व नेता देंग शियाओपिंग की ‘लुका-छिपी’ वाली रणनीति से हटकर भी। शी के बयानों ने हांगकांग और शिनजियांग में असंतोष को कुचलने के बीजिंग के इरादों की तरफ इशारा तो किया ही है। साथ ही ताइवान और साउथ चाइना पर अधिक आक्रामकता पर भी चीन को पश्चिम और अमरीका के साथ टकराव के रास्ते पर ला दिया है। दरअसल, चीन यह मानता है कि केवल अमरीकी ही उसके बराबर है। बाकी दुनिया को वह शक्ति संतुलन के राजनीतिक चश्मे से देखता है। चीन मानता है कि ताकत के मामले में उसके उपकरण अमरीका को पीछे छोड़ सकते हैं। शी के भाषण के दौरान परमाणु विस्तार के मामले में नीतिगत बदलाव भी दिखा। पिछले दो वर्षों में परमाणु विस्तार के दौरान चीन ने तीन साइलो क्षेत्रों का निर्माण किया है, जिनमें कम से कम 250 मिसाइलें रखी गईं हैं। बताते चलें कि साइलो स्टोरेज कंटेनर होते हैं, जिनके अंदर लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें रखी जाती हैं। नीति में बदलाव और नए साइलो के निर्माण से जाहिर है कि चीन अपने परमाणु हथियार भंडार को बढ़ा रहा है, जो अगले पांच से दस वर्षों में मौजूदा आंकड़े 350 से दोगुना हो सकते हैं। चीन ने 2027 तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के आधुनिकीकरण की भी योजना तैयार की है, जिसका अर्थ है-युद्धक साज-सज्जा, सूचना तंत्र और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एकीकृत विकास से पीएलए को मजबूत करना। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए पीएलए में ढांचागत बदलाव किए गए हैं। जमीनी बल में कटौती की गई है, जबकि नौसेना और रॉकेट फोर्स सहित अन्य सेवाओं को प्रमुखता मिली है। पिछले दस वर्षों या अधिक समय में चीन ने तीन नई सर्विस गठित की है-पीएलए ग्राउंड फोर्स, पीएलए रॉकेट फोर्स और पीएलए स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स। शी ने अपने भाषण में संकेत दिया है कि युद्धक क्षमताओं के साथ पीएलए स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स और पीएलए रॉकेट फोर्स में बढ़ोतरी की जाएगी। शी ने अपने भाषण में क्षेत्रीय मुद्दों ताइवान, साउथ चाइना सी आदि पर भी बयान दिए हैं। ताइवान से समझौता न करने वाला रुख जताते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारे देश का पूर्ण एकीकरण अवश्य होना चाहिए और यह बिना किसी संदेह के साकार हो सकता है।’ उन्होंने धमकी भी दी, हम कभी भी बल प्रयोग छोडऩे का वादा नहीं करेंगे। शी का दावा है कि पीएलए के आधुनिकीकरण से चीन को ‘सुरक्षा, संकट- संघर्षों को रोकने, प्रबंधित करने और स्थानीय युद्ध जीतने में मजबूती मिलेगी।’ ‘स्थानीय युद्ध जीतना’ जैसी भाषा पहले की रिपोर्ट में कहीं नहीं थी। स्पष्ट रूप से यह संकेत भारत-चीन सीमा और ताइवान के साथ मौजूदा तनाव की ओर है। भारत के लिए इस बयान का तत्काल महत्त्व लद्दाख में तनाव और तिब्बत में चीन द्वारा रक्षा बुनियादी ढांचे के निर्माण की पृष्ठभूमि को लेकर है। ताइवान मामले में यूएस-चीन की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता बनी रहेगी। इसका यह भी अर्थ है कि भारत-चीन सीमा गतिरोध में कोई राहत नहीं मिलेगी। शी के बयानों ने स्पष्ट कर दिया है कि बीजिंग के कब्जे वाले क्षेत्रों पर कोई समझौता नहीं होगा। भारत बुनियादी ढांचे में विकास, आधुनिक तंत्र से युक्त पीएलए की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए रक्षा तैयारियों को उन्नत करके, समान विचारधारा वाले देशों के साथ समन्वय बनाकर और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हुए ड्रैगन को कड़ा संदेश दे सकता है।