भारत और पाकिस्तान के रिश्ते एक बार फिर कड़वाहट के दौर
से गुजर रहे हैं। सब जानते हैं कि पाकिस्तान गलती पर है। सब जानते हैं कि पाकिस्तान
ऎसी गल्तियां चला कर करता है और बार-बार करता है, फिर चाहे वह पाकिस्तान में
आतंककारी प्रशिक्षण शिविर चलाने की बात हो या सीमा पर आतंककारियों की घुसपैठ कराने
से लेकर भारत में अशांति फैलाने की बात। और तो और उसके अपने राजनेता और आला अफसर तक
अब तो खुलकर अपनी ही हुकूमत के ऎसे ष्ाड्यंत्र का राजफाश कर रहे हैं। लेकिन उसकी
हुकूमत शायद दिवंगत जुल्फिकार अली भुट्टो के भारत से एक हजार साल तक लड़ने के कथन
से दुष्प्रेरित है। सवाल यह है कि पाकिस्तान की पाकिस्तान जाने, हम क्या कर रहे
हैं? हमारी अपनी सरकारें क्या कर रही हैं? केन्द्र की भी और राज्यों की भी।
सांप की प्रकृति है डसने की लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि सामने वाला इंसान
अपना बचाव ही नहीं करे। पाकिस्तान तो अपनी आदत और हालात से मजबूर है। वह खुद इतने
ष्ाड्यंत्रों से जूझ रहा है कि उनसे बचने के लिए वहां की हुकूमत हमसे भिड़ने के
रास्ते ढूंढती है। प्रश्न यह है कि हम अपनी हिफाजत क्यों नहीं कर पाते? सालों हो
गए, हमें अपनी सीमा की तारबंदी करते। न जाने कितनी बार हमारी सरकारें उन तारों में
बिजली का करंट प्रवाहित कर चुकीं लेकिन घुसपैठ है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही।
आखिर क्यों? क्या हमारी सीमा में आतंकियों को घुसने से रोकने का काम हमारा नहीं
पाकिस्तान का है? यदि यह जिम्मा हमारा है, तब बात-बात में पाकिस्तान और वहां की
सरकार को दोष्ाी ठहराने का क्या अर्थ है? हम अपना काम करें। अपनी सीमा की रक्षा
करें। उसमें घुसपैठ की कोशिश करने वालों को मौके पर ही गोली से उड़ा दें। लेकिन यदि
वे घुस आएं और यहां आकर वारदात करें तो उससे ज्यादा गलती हमारी और हमारी सरकारों की
है। उन सरकारों की जो अपनी राजनीति के लिए हमारी बहादुर फौजों को दुश्मन के सामने
गोली चलाने से रोकती हैं।
सैनिकों को मानवाधिकार कानूनों के दायरे में लेना
उनके अपमान से कम नहीं है। यदि सेना के जवान दुश्मन पर गोली चलाने से पहले अपने
मुकदमेबाजी में फंसने की चिंता करने लगे तब तो हो गई देश की रक्षा। जब तक हम ही
अपने दुश्मन रहेंगे, तब तक किसी और दुश्मन की जरूरत ही क्या है? सबसे पहले हमें
मजबूत और स्पष्ट होना पड़ेगा। दुश्मन तो हमारी मजबूती देखकर अपने आप कमजोर हो
जाएगा।