ओपिनियन

अपनी कीमत

यूंतो हर युग में कुछ न कुछ नया होता ही रहा है। किसी युग में
छापाखाना बना तो किसी युग में टाइपराइटर आया।

Jul 25, 2015 / 12:05 am

मुकेश शर्मा

Evaluation

यूंतो हर युग में कुछ न कुछ नया होता ही रहा है। किसी युग में छापाखाना बना तो किसी युग में टाइपराइटर आया। किसी में कम्प्यूटर बना तो किसी में स्मार्टफोन। आजकल तो सारी दुनिया हथेली में कैद है। ऎसे में एक वरिष्ठ कवि का कविता संग्रह याद आ रहा है जिसका शीष्ाüक था हथेली में ब्ा्रह्माण्ड। जैसे हर युग में नए-नए कल-कारखाने लगे वैसे ही हर युग में नई-नई बीमारियां भी आई। अब साठ के ऎटे-पेटे आ पहुंचने पर हम एक नई बीमारी से बाबस्ता हैं। बीमारी है मूल्यांकन की। यह बीमारी अपने लिए नई हो सकती है पर साहित्यिक मित्रों में तो यह बीमारी आम है।

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