इस वर्ग का साथ दिया है इसके आगे की पीढ़ी (22-25 वर्ष) के मतदाता ने। इस वर्ग में सर्वाधिक बेरोजगार बच्चे हैं। कुछ रोजगार की तलाश में गांवों से भागकर शहर में आए हैं। इन पर जीएसटी की मार भी पड़ी है। इनकी हालत देखकर मां-बाप भी सहम जाते हैं। नए मतदाताओं के मुकाबले इनकी संख्या तीन गुणा अधिक है। 50.21 लाख। ऐसी ही स्थिति मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की है।
ये दोनों आयु वर्ग ऐसे हैं जो लोकतंत्र के स्वरूप को आमूल-चूल बदल देने वाले हैं। कोई भी राजनेता या दल इनको थोक में नहीं खरीद सकता। न ही ये परम्परा से बंधे रहेंगे। विकास को धता बताने वाले जातिवाद, वंशवाद अथवा अन्य ठेकेदारी प्रथा के बैरियर ये वर्ग ही तोड़ेंगे। एक-दो चुनावों के बाद सब बदल जाएगा।
इसके साथ मातृशक्ति भी एकजुट है। पुरुष बिखर सकता है, महिला भीतर से अधिक मजबूत होती है। उसका प्रेम बोलता नहीं, कर गुजरता है। इन चुनावों में भी महिला मतदाता बदलाव के अभियान में पुरुषों से आगे रही हैं। पिछले चुनाव (2013) में भी बदलाव का निमित्त बनी थीं महिलाएं। राजस्थान में इस बार 73.80 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने वोट डाले, वहीं महिला मतदाताओं के मामले में यह प्रतिशत 74.66 रहा। यानी पुरुषों से 0.86 प्रतिशत आगे। पिछले चुनाव में 0.65 प्रतिशत आगे थीं। इसका एक कारण महिला शिक्षा है, तो दूसरे कारण- महंगाई, बेरोजगारी, नोटबंदी में इनकी जमा पूंजी का चले जाना, विकास के अवसरों का अभाव रहा है।
बच्चों को संस्कार मां ही देती है। कष्ट में मां ही साथ रहती है। लोकतंत्र, आज कष्टदायक हो चला है। युवा शक्ति के साथ मां भी रक्षण में उतरी है। कुछ बड़ा घटने वाला है। मैं पत्रिका की ओर से दोनों शक्तियों का आभार भी व्यक्त करता हूं और अभिनंदन भी करता हूं। आपने हमारे जागो जनमत, चेंजमेकर आदि अभियानों का मान बढ़ाया। हमारे आह्वान पर आगे आकर लोकतंत्र को अक्षुण रखने का कार्य अपने हाथ में लिया। पूरा प्रदेश गौरवान्वित है। आगे भी हम तो साथ-साथ ही रहेंगे। शुभकामनाएं।