खेलूंगा तो बच्चों को कौन पालेगा – संजय
जी हां! राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में देश का नाम रोशन करने वाले संजय सिंह आज कल मजदूर का काम करते हैं। संजय ने देश के लिए ढेरों मैडल जीते उनके नाम गोल्ड मेडल की हैट्रिक भी है, कभी नेता उसके साथ फोटों खिंचवाने में फख्र महसूस करते थे। वह हर प्रतियोगिता में तिरंगे के साथ पोडियम पर नजर आता थे, लेकिन आजकल उनकी हालत इतनी ख़राब है के दिहाड़ी मज़दूरी करने के लिए वे बेबस हो चुके हैं। न्यूज़ 18 चैनल को दिए इंटरव्यू में संजय ने बताया अगर वे गेम पर ध्यान देंगे तो उनके बच्चे कौन पालेगा। बता दें संजय 2004 से 2009 तक जूनियर खिलाड़ी के तौर पर नैशनल चैम्पिय़न रहे और साल 2010, 2011 और 2013 में लगातार सीनियर नैशनल में भी चैम्पियन बने, 2012 में उन्होंने रजत पदक भी जीता। साल 2013 में मलेशिया में आयोजित वर्ल्ड चैम्पियनशिप के दौरान संजय के पिता बेहद बीमार थे और वैंटिलेटर पर थे फिर भी संजय खेलने गए लेकिन उस दौरान दौरान उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के बाद संजय की हालत दिन व दिन ख़राब होती गयी। संजय पढ़े लिखे हैं और उनके पास स्नातक की डिग्री भी है। सरकार से उन्होंने स्पोर्ट्स कोटे के तहत नौकरी की मांग की, लेकिन आश्वासन के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला, हां अपनी वाहवाही लूटने और फोटो खिंचवाने के लिए सभी नेता इसके घर आते थे।
सरकार ने नहीं दी नौकरी
दरअसल संजय ने जब नौकरी नहीं मिलने पर सरकार से आरटीआई से जानकारी मांगी तो जवाब आया कि वुशू गेम को प्रदेश सरकार की खेल नीति के तहत मान्यता नहीं है। इस लिए सरकार उन्हें नौकरी नहीं देगी। खेल मत्रालय आए दिन खिलाड़ियों कि बेहतर स्थिति कि बात कर अपनी पीठ थपथपाता रहता है। खेल के नाम पर सरकार ने दर्जनों योजनाए बना राखी है लेकिन एक भी योजना ऐसे नहीं जो इन खिलाड़ियों को उनका हक़ दिला सके। संजय की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि उनके पास रहने को खुद का घर तक नहीं है। गांव से कुछ दूर खेतों में 1000 रूपए किराए के एक मकान में वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं। उनकी पत्नी सोनू का कहना है कि हमारे लिए तो इनके मेडल रद्दी के अलावा कुछ नहीं है। इन मैडलों से पेट नहीं भरता, पेट तो नौकरी ही भर सकती है, वो मिली नहीं, इसलिए अब मजदूरी करनी पड़ रही है। सरकार को बताना चाहिए कि हमारे साथ नाइंसाफी क्यों की जा रही है।