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भारत की अंतरराष्ट्रीय शूटर सड़क पर नमकीन-बिस्कुट बेचकर पाल रही अपना परिवार, देश के लिए जीते दर्जनों मेडल

locationनई दिल्लीPublished: Jun 24, 2021 08:36:16 am

Submitted by:

Mahendra Yadav

मीडिया बात करते हुए दिलराज ने कहा, ‘जब देश की जरूरत थी तो मैं वहां थी, लेकिन अब जब मुझे जरूरत है तो कोई नहीं है।’ उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर 28 गोल्ड , 8 सिल्वर और 3 कांस्य मेडल जीते हैं।

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कई बार नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर नाम कमाने वाले खिलाड़ियों को भी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाली और देश के लिए कई मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला दिव्यांग शूटर दिलराज कौर भी आर्थिक तंगी का सामना कर रही है। परिवार को पालने के लिए दिलराज कौर उत्तराखंड के देहरादून में सड़क किनारे नमकीन, बिस्कुट और चिप्स बेचने को मजबूर है। दिलराज कौर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक रजत, राष्ट्रीय स्तर पर 24 स्वर्ण समेत कई पदक अपने नाम कर चुकी हैं। उनके नाम वर्ल्ड पैरा स्पोर्ट्स में पहली सर्टिफाइड कोच, स्पोर्ट्स एजुकेटर जैसी कई उपलब्धियां भी जुड़ी हैं। खेल में इतना सबकुछ हासिल करने के बाद भी दिलराज कौर को उनकी वर्तमान दुर्दशा दूर करने में कोई मदद नहीं मिली।
सड़क किनारे नमकीन—बिस्कुट बेचने को मजबूर
34 वर्षीय दिलराज के सिर से पिता और भाई का सहारा छिन गया। उनके हालात इतने खराब हो गए हैं कि देहरादून में गांधी पार्क के बाहर अपनी बूढ़ी मां के साथ नमकीन और बिस्किट बेचने को मजबूर है। उनके पास जो पैसा था, वह पिता के ईलाज में खर्च हो गया। अब दिलराज को अपनी बूढ़ी मां के इलाज और घर चालने के लिए सड़क किनारे स्टॉल लगानी पड़ रही है। दिलराज का कहना है कि उन्होने सोचा था कि उनके घर में कुछ रोशनी होगी क्योंकि उन्होंने भारत के लिए पदक जीते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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‘जब देश को जरूरत थी तो मैं वहां थी’
मीडिया बात करते हुए दिलराज ने कहा, ‘जब देश की जरूरत थी तो मैं वहां थी, लेकिन अब जब मुझे जरूरत है तो कोई नहीं है।’ दिलराज देश के सर्वश्रेष्ठ पैरा एयर पिस्टल निशानेबाजों से एक रही हैं। उन्होंने अपने कॅरियर में दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खिताब जीते हैं। अब हालात इतने खराब हो गए हैं कि वह अपनी मां गुरबीत के साथ देहरादून में किराए के मकान में रहती हैं। दिलराज का कहना है कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और इसी वजह है कि उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बिस्कुट और चिप्स बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
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नहीं मिली कोई मदद
दिलराज का कहना है कि उन्हें उत्तराखंड के पैरा-शूटिंग समुदाय से कोई मदद नहीं मिली है। साथ ही उन्होंने बताया कि वह स्पोर्ट्स कोटे के आधार पर सरकारी नौकरी की मांग कर रही है। उन्होंने कई बार खेलों में अपनी उपलब्धि के आधार पर नौकरी के लिए अपील की है, लेकिन कुछ नहीं हुआ। दिलराज ने मीडिया को बताया कि उन्होंने वर्ष 2004 में शूटिंग शुरू की थी और 2017 तक उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर 28 गोल्ड , 8 सिल्वर और 3 कांस्य मेडल जीते हैं। लंबी बीमारी की वजह से पिता का निधन हो गया। इसके बाद दिलराज के भाई की भी मौत हो गई। दिलराज का कहना है कि उनकी शैक्षिक योग्यता और खेल में उनकी उपलब्धियों के आधार पर सरकार उन्हें नौकरी दे।

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