हौसलों की उड़ान क्या हो सकती है, ये कोई दीपा मलिक से सीख सकता है। कैंसर के चलते लकवाग्रस्त शरीर में 14 साल तक ट्रीटमेंट का बोझ सहकर भी पैरालंपिक में पदक जीतने का इतिहास रचने वाली ये महिला सभी के लिए उदाहरण है।
कुलदीप पंवारनई दिल्ली। लोग कहते थे वो चल नहीं सकती तो
वो बाइकर बन गई, स्वीमर बन गई, एथलीट भी बन गई और । ऐसा कारनामा करने वाली है
अपने देश की पैरा खिलाड़ी दीपा मलिक। जिस उम्र में लोग खेलों को अलविदा कह
देते हैं, उस उम्र में दीपा मलिक ने 36 साल की उम्र में खेल में एंट्री की।
खास बात ये है कि ये दीपा मलिक दिव्यांग हैं। रियो पैरालंपिक में दीपा
शॉटपुट इवेंट में अपना दावा पेश करेंगी। दीपा सिर्फ शॉटपुट ही नहीं,
अंतर्राष्ट्रीय स्विमर, हिमालयन बाइकर भी हैं।
कैंसर से लड़ाई से 14 सालों में 183 टांके तककोई
विश्वास नहीं करेगा लेकिन कमर में ट्यूमर के कारण पैरालाइज होने के बाद से
दीपा ने 14 सालों में शोल्डर ब्लेडस के बीच 183 टांके लगवा चुकी हैं। जबकि
तीन बार स्पाइनल ट्यूमर सर्जरी भी करा चुकी हैं। चौकानें वाली बात ये है
कि पैरालाइज होने के बाद दीपा ने हिमालयन रैली में भाग लिया और 8 दिनों में
उन्होंने 1700 किमी की दूरी माइनस डिग्री तापमान में गुजारी। आक्सीजन की
कमी झेलते हुए दीपा ने हिमालय, लेह, जम्मू, शिमला की दुर्गम पहाड़ियों के
बीच सफर तय किया। ऐसे जज्बे वाली ये एथलीट रियो में देश के लिए पदक लेकर
लौटे तो किसी को भी आश्चर्य नहीं होगा।
ये भी जानिए दीपा के बारे में— 2014 एशियन पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं दीपा
— कमर से नीचे के हिस्से में है पैरालाइज, व्हील चेयर पर चलती हैं
— दीपा की दो बेटियां अंबिका और देविका हैं— 42 साल की उम्र में 2012 में मिला अर्जुन अवार्ड— 2011 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी की थी हिस्सेदारी