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22 साल की उम्र में पद्मश्री पाने वाली भारत की इकलौती एथलीट, पिता आज भी चलाते है ऑटो रिक्शा

locationनई दिल्लीPublished: Nov 11, 2017 05:32:43 pm

Submitted by:

ashutosh tiwari

अर्जुन अवार्डी दीपिका कुमारी को 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्मश्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया।

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नई दिल्ली। दीपिका कुमारी भारतीय महिला तीरंदाज हैं। निशानेबाजी के खेल में निचले पायदान से शुरुआत करने वाली दीपिका अंतरराष्ट्रीय स्तर की शीर्ष खिलाडिय़ों में से एक हैं। गरीब परिवार में जन्मी दीपिका ने विपरीत परिस्थिति को कभी अपने पर हावी नहीं होने दिया। मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती गईं। अर्जुन अवार्डी दीपिका कुमारी को 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्मश्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया। दीपिका इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी थीं।
पिता आज भी चलाते हैं ऑटो
दीपिका की संघर्ष की कहानी लोगों को एक सीख देने वाली है। 13 जून 1994 को झारखंड की राजधानी रांची में जन्मी दीपिका के पिता शिव नारायण महतो पहले मजूदरी करते थे। बाद में ऑटो चलाने लगे। वहीं मां घर-परिवार संभालती हैं। खेलों के जरिये सफलता मिली तो दीपिका टाटा स्टील कंपनी के खेल विभाग में प्रबंधक नियुक्त हो गईं। इसके बावजूद उनके पिता आज भी ऑटो चलाते हैं।
पुरस्कारों से भरा है दीपिका का घर
दीपिका का घर उन्हें मिले अवार्ड्स से भरा है। वे अपनी धुन की पक्की हैं। जो चाहती हैं उसे कर दिखाती हैं। जिस गांव में आज भी बिजली-पानी की सप्लाई नहीं है, वहां से निकलकर तीरंदाजी को कैरियर के रूप में चुनकर दीपिका ने खुद को साबित किया। बचपन में वे लकड़ी के तीर-धनुष से खेला करती थी। खेल में शानदार प्रदर्शन के लिए झारखंड सरकार ने उन्हें रांची में आवासीय भूखंड देने की घोषणा की है।
बचपन से ही निशाने पर नजर
एक दिन दीपिका मां गीता के साथ जा रही थी। रास्ते में आम का पेड़ दिखा देख दीपिका ने मां से आम तोडऩे की इजाजत मांगी। इस पर मां ने यह कहते हुए मना कर दिया कि पेड़ बहुत ऊंचा है, नहीं तोड़ पाओगी। दीपिका जिद पर अड़ी रही और कहा, आज मैं तोड़कर ही रहूंगी। उसने पत्थर उठाकर निशाना साधा और आम तोड़ लिया। दीपिका का निशाना देख मां भी हैरान थी। ठीक वैसे ही जिंदगी में भी दीपिका जो लक्ष्य बना लेती है, उसे हासिल करके ही मानती हैं।
पहली बार हो गई थी फेल
दीपिका छोटी थी तो परिवार लोहरदगा (झारखंड) घुमने गया। वहां कोई रेस चल रही थी। दीपिका ने भाग लिया और प्रथम आ गई। उसी दौरान दीपिका की एक दोस्त ने उसे सरायकेला (झारखंड) जाने के लिए कहा जहां तीरंदाजी प्रतियोगिता हो रही थी। दीपिका ने पापा को बताया कि उसे तीरंदाजी का शौक है और मैं यही करना चाहती हूं। पिता दीपिका को सरायकेला ले गए, लेकिन दीपिका पहले कम्पटीशनम में फेल हो गई।
रोई लेकिन हार नहीं मानी
दीपिका पहली बार तीरंदाजी में फेल हुई तो फूट-फूट कर रोई। उन्हें लगा कि जिस आत्मविश्वास से उन्होंने पिता से जीत का दावा किया था उसे पूरा नहीं कर पाई। बेटी को दुखी देख पिता ने तीरंदाजी में दीपिका को कोचिंग करवाने का निर्णय लिया। काफी प्रयास के बाद जब पिता उन्हें कोच के पास लेकर पहुंचे तो कोच ने कहा, तुम तीरंदाजी नहीं कर पाओगी क्योंकि तुम्हारा वजन बहुत कम है। तुम तो धनुष ही नहीं उठा पाएगी। दीपिका ने 6 महीने का समय मांगा और कोच से कहा, अगर मैं खुद को साबित नहीं कर पाई तो मुझे बाहर कर दें। इसके बाद दीपिका ने जी तोड़ मेहनत की और उनका सिलेक्शन हो गया। फिर दीपिका ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
2020 ओलंपिक के बाद करेंगी शादी
दीपिका के पिता का कहना है कि जब से बेटी का नाम हुआ है आए दिन उसकी शादी के लिए रिश्ते आए आते हैं। माता-पिता को अच्छा लगता है जब कोई लड़के वाला खुद रिश्ता लेकर आता है। लेकिन दीपिका अभी शादी नहीं करना चाहती हैं। दीपिका 2020 ओलंपिक के बाद शादी के बारे कोई फैसला लेंगीं। घर वाले भी चाहते हैं कि जिस तीरंदाजी ने उनकी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया है उसमें अभी दीपिका को और दूरी तय करना बची है। दीपिका को मिलने वाले पद्मश्री अवार्ड लेने के लिए बेटी के साथ पूरा परिवार दिल्ली गया था। परिवार की सादगी का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि दिल्ली से लौटै तो बैग में सम्मान-पत्र और मेडल था और पिता शिव नारायण खुद ऑटो चलाकर घर गए।
2006 में से शुरू किया कैरियर
दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला जब उन्होंने पहली बार अर्जुन आर्चरी अकादमी ज्वाइन की। अकादमी झारखंड के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा ने खरसावां में शुरू की थी। तीरंदाजी में दीपिका के प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 2006 में हुई जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी ज्वाइन की। यहीं से उन्होंने तीरंदाजी के दांव-पेच सीखे। इस युवा तीरंदाज ने 2006 में मैरीदा मेक्सिको में आयोजित वल्र्ड चैंपियनशिप में कम्पाउंट एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थीं।
2010 करियर का सर्वश्रेष्ठ साल
विश्व की नम्बर वन तीरंदाज का तमगा भी दीपिका को हासिल है। सबसे पहले 2009 में 15 वर्ष की दीपिका ने अमरीका में हुई 11वीं यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप जीतकर अपनी उपस्थिति दिखाई। 2010 में एशियन गेम्स में कांस्य हासिल किया। इसके बाद इसी वर्ष कॉमनवेल्थ खेलों में महिला एकल और टीम के साथ दो स्वर्ण हासिल किए। राष्ट्रमंडल खेल 2010 में उन्होंने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया। इस्तांबुल में 2011 में और टोक्यो में 2012 में एकल खेलों में रजत पदक जीता।

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