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कलियुग के इस एकलव्य ने बढ़ाया देश का मान, घनघोर सकंट के साथ खुद से सीखी तीरदांजी और जीता स्वर्ण

प्रतिभा पहचान की मोहताज नहीं होती। देर-सवेर जब वो सामने आती है, तो देश क्या पूरी दुनिया में उसकी धमक देखी जाती है।

नई दिल्लीMar 10, 2018 / 04:30 pm

Prabhanshu Ranjan

नई दिल्ली। प्रतिभा पहचान की मोहताज नहीं होती। देर-सवेर जब वो सामने आती है, तो देश क्या पूरी दुनिया में उसकी धमक देखी जाती है। बस जरुरत होती है, प्रतिकुल परिस्थिति में भी हौसला बनाए रखने की। एक ऐसा ही उदाहण सामने आया है, खेल की दुनिया से। झारखंड के सुदूर पहाड़ी और जनजातीय इलाके से ताल्लुक रखने वाले गोरा ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिसपर सभी वो नाज है। गोरा ने बैंकॉक में संपन्न हुए एशिप कप स्टेज आई आर्चरी मीट में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाबी हासिल की। गोरा ने अपने पार्टनर गौरव और आकाश के साथ मिलकर यह उपलब्धि हासिल की। इन तीनों खिलाड़ियों ने मंगोलिया को हराकर पहला स्थान हासिल किया।

गोल्डन बॉय के नाम से जाने जाते हैं-
बचपन से ही तीरदांजी बेहतरीन प्रदर्शन दिखाने वाले गोरा को आस-पास के लोग गोल्डन बॉय के नाम से जानते है। झारखंड के राजनगर टाउन के बालीजुडी गांव के गोरा ने जूनियर और सब जूनियर स्तर पर अबतक 100 के करीब पदक जीत चुके है। बताया जाता है कि इस इलाके में तीरदांजी की कला विरासत से मिलती है। लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में अब वो बात काफी पुरानी हो चुकी है। फिर भी गोरा में जो प्रतिभा है, वो उन्हें सबसे अलग करती है।

ओलंपिक में जीत सकते हैं पदक –
गोरा के कोच बी श्रीनिवास राव का कहना है कि यह लड़का ओलिंपिक मटीरियल है। उसमें (गोरा) में आर्चरी का स्वभाविक टैलंट है। अगर उसकी प्रतिभा को इंटरनेशनल लेवल के कोचों की देखरेख में ठीक से निखारा जाए, तो वह देश के लिए कई पदक जीत सकता है। गोरा की इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए राज्य सरकार ने उन्हें पिछले साल 2.70 लाख की कीमत का विशेष धनुष उपहार में दिया था।

बेहद तंगहाली में है गोरा का जीवन –
गोरा अपने परिवार में सबसे छोटे हैं। उनके 50 वर्षीय पिता खेरू हो पिछले 2 साल से लकवाग्रस्त है। दो साल पहले गोरा की मां का निधन हो चुका है। चार भाईयों में गोरा सबसे छोटे हैं। बेहद सीमित संसाधन के बावजूद गोरा ने जिस जुनून के साथ तीरदांजी में कामयाबी हासिल की है, वो काबिलेतारीफ है।

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