वर्ल्ड यूथ चैम्पियनशिप में अच्छा करना चाहती हैं
जूनियर नेशंस कप टूर्नामेंट और जनवरी में सर्बिया में हुए यूथ महिला टूर्नामेंट में कांस्य जीतने वाली खिलाड़ी के बारे में मीनाक्षी ने कहा, “इस मैच से पहले, अर्शी ने कहा था कि वह आसानी से जीत जाएगी क्योंकि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी है। मैंने उन्हें गलत साबित कर दिया। हम नेशनल कैम्प में एक साथ अभ्यास करते हैं। वह मेरी अच्छी दोस्त है, लेकिन अति आत्मविश्वास अच्छा नहीं होता।”मीनाक्षी टूर्नामेंट में इसलिए हिस्सा नहीं ले पाईं थी क्योंकि उनका जन्म 2001 में हुआ था, लेकिन उनकी उम्मीदें काफी ऊंची थीं। उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं कहूंगी की मैं ओलम्पिक पदक जीतना चाहती हूं। हमें एक बार में एक चीज के बारे में सोचना चाहिए। मेरा अभी का लक्ष्य अप्रैल में होने वाली एशियन यूथ चैम्पियनशिप और अगस्त में होने वाली वर्ल्ड यूथ चैम्पियनशिप में अच्छा करना है।”
जूनियर नेशंस कप टूर्नामेंट और जनवरी में सर्बिया में हुए यूथ महिला टूर्नामेंट में कांस्य जीतने वाली खिलाड़ी के बारे में मीनाक्षी ने कहा, “इस मैच से पहले, अर्शी ने कहा था कि वह आसानी से जीत जाएगी क्योंकि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी है। मैंने उन्हें गलत साबित कर दिया। हम नेशनल कैम्प में एक साथ अभ्यास करते हैं। वह मेरी अच्छी दोस्त है, लेकिन अति आत्मविश्वास अच्छा नहीं होता।”मीनाक्षी टूर्नामेंट में इसलिए हिस्सा नहीं ले पाईं थी क्योंकि उनका जन्म 2001 में हुआ था, लेकिन उनकी उम्मीदें काफी ऊंची थीं। उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं कहूंगी की मैं ओलम्पिक पदक जीतना चाहती हूं। हमें एक बार में एक चीज के बारे में सोचना चाहिए। मेरा अभी का लक्ष्य अप्रैल में होने वाली एशियन यूथ चैम्पियनशिप और अगस्त में होने वाली वर्ल्ड यूथ चैम्पियनशिप में अच्छा करना है।”
विजेंदर सिंह को अपना आदर्श मानती हैं मीनाक्षी
बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले हरियाणा के ही मुक्केबाज विजेंदर सिंह को अपना आदर्श मानने वाली मीनाक्षी ने कहा, “मैंने मुक्केबाजी को इसलिए चुना क्योंकि मैं स्वतंत्र बनना चाहती हूं। अगर मैं ऐसा सोचूंगी तो ही पदक जीत पाऊंगी। मैं उस बात पर ध्यान देना चाहती हैं, जिसमें मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। बाकी सब बाद में।”गांव में मुक्केबाजी को लाने और रुरकी की लड़कियों को खेल को अपनाने के लिए मीनाक्षी ने सरपंच कुलदीप हुड्डा को इसका श्रेय दिया। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी मीनाक्षी ने अपने परिवार और गांव की उम्मीदों का बोझ बखूबी उठाया है। उनके भाई-बहन घर की आमदनी में मदद करते हैं।
बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले हरियाणा के ही मुक्केबाज विजेंदर सिंह को अपना आदर्श मानने वाली मीनाक्षी ने कहा, “मैंने मुक्केबाजी को इसलिए चुना क्योंकि मैं स्वतंत्र बनना चाहती हूं। अगर मैं ऐसा सोचूंगी तो ही पदक जीत पाऊंगी। मैं उस बात पर ध्यान देना चाहती हैं, जिसमें मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। बाकी सब बाद में।”गांव में मुक्केबाजी को लाने और रुरकी की लड़कियों को खेल को अपनाने के लिए मीनाक्षी ने सरपंच कुलदीप हुड्डा को इसका श्रेय दिया। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी मीनाक्षी ने अपने परिवार और गांव की उम्मीदों का बोझ बखूबी उठाया है। उनके भाई-बहन घर की आमदनी में मदद करते हैं।
सरपंच लाए नई सोच
मीनाक्षी ने कहा, “मेरे पिता (श्री कृष्ण) मुझे अपना बेटा मानते हैं। उन्होंने मुझे कभी मेरे भाईयों से अलग नहीं समझा। यह बड़ी बात है। वह मुझे अभ्यास के लिए ले जाते थे। हर किसी ने मेरी जिंदगी आसान करने की कोशिश की है ताकि मैं अभ्यास पर ध्यान दे सकूं।”उन्होंने कहा, “हमारे सरपंच गांव में नई सोच लेकर आए। उन्होंने हमें मुक्केबाजी से रुबरू कराया। हमारे यहां लड़के और लड़कियां दोनों बराबर हैं। रुरकी आगे बढ़ रहा है।”
मीनाक्षी ने कहा, “मेरे पिता (श्री कृष्ण) मुझे अपना बेटा मानते हैं। उन्होंने मुझे कभी मेरे भाईयों से अलग नहीं समझा। यह बड़ी बात है। वह मुझे अभ्यास के लिए ले जाते थे। हर किसी ने मेरी जिंदगी आसान करने की कोशिश की है ताकि मैं अभ्यास पर ध्यान दे सकूं।”उन्होंने कहा, “हमारे सरपंच गांव में नई सोच लेकर आए। उन्होंने हमें मुक्केबाजी से रुबरू कराया। हमारे यहां लड़के और लड़कियां दोनों बराबर हैं। रुरकी आगे बढ़ रहा है।”