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जानिए पीवी सिंधु के बारे में सबसे बड़ा सच, क्यूं चुना बैडमिंटन

Published: Aug 19, 2016 07:36:00 pm

दाहिने हाथ की खिलाड़ी सिंधू को पहला अंतरराष्ट्रीय पदक कोलंबो में आयोजित 2009 सब जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैंपियनशिप में  मिला

PV Sindhu

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नई दिल्ली। भारतीय बैडमिंटन प्लेयर पीवी सिंधु ओलंपिक में इतिहास रचने की दहलीज पर पहुंच गई है। आज के मुकाबले में उन्हें चाहे हार मिले या जीत उनका इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर दर्ज होगा। सिंधू यदि आज रियो ओलंपिक के महिला बैडमिंटन का फाइनल मुकाबला जीत जाती है तो वे उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन जाएगी। ओलंपिक इतिहास में महिला बैडमिंटन में 2012 के लंदन ओलंपिक में साइना नेहवाल ने कांस्य पदक जीता था। हम आपको सिंधु की निजी जिंदगी से जुड़ा एक अहम सच बताने जा रहे हैं।

गोपीचंद से प्रभावित होकर चुना बैडमिंटन
सिंधू का पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है और वे पीवी रमन्ना और पी विजया की बेटी हैं। सिंधू के माता पिता दोनों ही पेशेवर वॉलीबॉल खिलाड़ी रहे और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कई प्रतियोगितायें जीत चुके हैं। पिता रमण को साल 2000 में उनके उत्‍कर्ष्‍ट खेल के लिए अजुर्न पुरस्‍कार से भी सम्‍मानित किया जा चुका है। सिंधु बेशक वॉलीबॉल खिलाडय़िों के घर में जन्‍मी थीं परंतु उन्‍होंने अपना करियर बैडमिंटन में बनाने का निश्‍चय किया तो इसकी वजह थे 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन बने पुलेला गोपीचंद। गोपीचंद के खेल की प्रशंसक सिंधु ने इसी खेल में आगे बढऩे का फैसला किया। गोपीचंद अब सिंधू के कोच भी हैं।



आठ साल की उम्र से खेलना शुरू किया
आज भारत का गौरव बढ़ाने वाली सिंधू ने महज आठ साल की उम्र से बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्‍होंने सिकंदराबाद में इंडियन रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूर संचार के बैडमिंटन कोर्ट में महबूब अली के मार्गदर्शन में बैडमिंटन की बुनियादी बातों को सीखा। इसके बाद वे पुलेला गोपीचंद के गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में शामिल हो गई। दाहिने हाथ की खिलाड़ी सिंधू को पहला अंतरराष्ट्रीय पदक कोलंबो में आयोजित 2009 सब जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैंपियनशिप में मिला। जब वे कांस्य पदक विजेता रही थीं। वे चीन के ग्वांग्झू में आयोजित 2013 के विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में एकल पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी है। इसमें मैच में भी उन्‍होंने कांस्य पदक हासिल किया था।

पी. गोपीचंद के चलते सिंधु और साइना ने छुआ कामयाबी का शिखर

सिंधु और साइना की कामयाबी के पीछे सबसे ज्यादा योगदान गोपीचंद का रहा है। गोपीचंद ने द्रोणाचार्य बनकर अपने शिष्यों को ‘अर्जुन’ की तरह बनाया और पदक जिताया। जब सिंधु रियो ओलिंपिक के फाइनल में पहुंची तब उसके पिता पीवी रम्मना का कहना था कि सिर्फ गोपीचंद की वजह से सिंधु इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं। कामयाबी के जिस शिखर पर गोपीचंद खुद नहीं पहुंच पाए, उस स्तर पर अपने शिष्यों को पहुंचाया। सिर्फ एक गुरु नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह भी उनका साथ दिया। एक पिता की तरह उनके के लिए क्या सही है या गलत है, समझाया।

एक इंटरव्यू के दौरान गोपीचंद की पत्नी लक्ष्मी ने बताया था कि गोपीचंद कभी-कभी देर रात अपनी टेनिस अकादमी पहुंच जाते थे, यह देखने के लिए कि उनके शिष्य सही सलामत है या नहीं. गोपीचंद ने जब अपनी टेनिस अकादमी शुरू की थी, तब उनका मुख्य मक़सद ओलंपिक में अपने शिष्यों को पदक जिताना था।



शुरू हुआ चैंपियन बनने का सिलसिला
1 दिसम्बर 2013 को कनाडा की मिशेल ली को हराकर मकाउ ओपन ग्रां प्री गोल्ड का महिला सिंगल्स खिताब जीता है। ये उनका दूसरा ग्रां प्री गोल्ड खिताब था। उन्होंने इससे पहले मई में मलेशिया ओपन जीता था। पी वी सिंधु ने 2013 दिसम्बर में भारत की 78वीं सीनियर नैशनल बैडमिंटन चैम्पियनशिप का महिला सिंगल खिताब जीता है।

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