पाकिस्तान के आम चुनाव में 100 से ज्यादा पार्टियां हिस्सा ले रही हैं। इमरान खान, नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ और बिलावल भुट्टो जरदारी की पार्टी के बीच टक्कर माना जा रहा है। इन तीनों के अलावा भी पाकिस्तान में कई ऐसे नेता हैं जिनकी पार्टियां देश के कुछ हिस्सों में मजबूत पकड़ रखती हैं। इन तीनों में से किसी एक को पूर्ण बहुमत न मिलने पर सरकार बनाने की चाबी इन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों के हाथ में होगी। इसलिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान का अगला पीएम कौन होगा?
चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कराए गए चुनावी सर्वे में इमरान की पार्टी की लोकप्रियता में लगातार इजाफा जारी है। एक ताजा सर्वे में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल-एन से आगे बताया गया है जबकि एक अन्य सर्वे के मुताबिक वह पीएमएल-एन से सिर्फ थोड़ा ही पीछे हैं। पल्स कंसल्टेंट के राष्ट्रव्यापी सर्वे में हिस्सा लेने वालों में 30 प्रतिशत लोगों ने इमरान खान के हक में और 27 प्रतिशत लोगों ने अपनी पसंद पीएमएल-एन को बताया है। बिलावल भुट्टो के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को सर्वे में सिर्फ 17 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला। इससे पहले गैलप पाकिस्तान के एक सर्वे में 26 प्रतिशत लोकप्रियता के साथ पीएमएल-एन को सबसे आगे बताया गया था। पीटीआई को 25 और पीपीपी को 16 प्रतिशत लोगों ने अपनी पहलली पसंद बताया था।
1.इमरान खान
पाकिस्तान को क्रिकेट का विश्वकप दिलाने वाले और पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान की स्थिति इस बार के आम चुनाव में सबसे मजबूत मानी जा रही है। इमरान खान 1996 में पहली बार राजनीति में उतरे थे। इसके एक साल बाद हुए आम चुनाव में उनकी पार्टी पीटीआई कोई भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2008 के चुनाव में न उतरने का फैसला किया। 2013 के चुनाव के लिए इमरान ने एक रणनीति के तहत काम किया। उन्होंने तत्कालीन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का बिगुल फूंका। साथ ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमाई इलाकों में अमरीकी ड्रोन हमलों का पुरजोर विरोध किया। इसका सीधा असर यह पड़ा की उनकी पार्टी 2013 के आम चुनावों में वोट प्रतिशत के लिहाज से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सरकार बनाने में भी कामयाब रही। उन्होंने 2013 में प्रधानमंत्री बने नवाज शरीफ के परिवार का नाम पनामा पेपर्स से सामने आने के बाद उनके खिलाफ सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ी। 2017 में इसी मामले के चलते शरीफ को पीएम पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। नवाज शरीफ पर हुई अदालती कार्रवाई का श्रेय इमरान खान को भी दिया जाता है। नवाज शरीफ के खिलाफ भ्रष्टाचार की जंग का एक बड़ा फायदा इमरान को यह मिला कि महिलाओं और युवाओं का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ जुड़ गया। यही कारण है कि इमरान पाकिस्तान में पीएम पद के सबसे प्रबल दावेदान बने हुए हैं।
पीएमएल-एन के अध्यक्ष और पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ पूर्व प्रधानमंत्री शरीफ नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवाज शरीफ को राजनीतिक रूप से अयोग्य घोषित किए जाने के बाद पीएमएल-एन की बागडोर शहबाज शरीफ को सौंपी गई। पीएमएल-एन की तरफ से इस बार वही पीएम पद के दावेदान हैं। पकिस्तान की राजनीति में शहबाज शरीफ को राजनीतिक दांव-पेंच के लिहाज से एक कच्चा खिलाड़ी माना जाता है। ऐसा इसएिल कि नवाज शरीफ के रहते उन्हें कभी राजनीतिक दांव पेंच चलने और पंजाब से बाहर निकलने की जरूरत ही नहीं पड़ी। पंजाब की गद्दी भी उन्हें अपने बड़े भाई के जनाधार के चलते ही मिली। लेकिन शाहबाज शरीफ को पाकिस्तान में एक मजबूत प्रशासक के रूप में जाना जाता है। उन्हें पाकिस्तान में सबसे ज्यादा विकास कराने वाले मुख्यमंत्रियों में गिना जाता है। उन्होंने पिछले दो दशक में पंजाब में अरबों रुपए की परियोजनाओं के जरिए राज्य के बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक परिवहन की स्थिति में बड़े सुधार किए हैं। लाहौर, मुल्तान, इस्लामाबाद और रावलपिंडी में उनके द्वारा चलाई गई मेट्रो बस और ऑरेंज लाइन ट्रेन की पूरे देश में काफी चर्चा है। शहबाज इस चुनाव में पंजाब की सत्ता में वापसी करने में सफल हो सफल हो सकते थे लेकिन नवाज शरीफ के चुनावी राजनीति से दूर होने और इमरान खान जैसे मजबूत विपक्षी के चलते केंद्रीय स्तर पर उनके सफल होने को लेकर आशंकाएं बनी हुई हैं। इसके सबके बावजूद उनकी पार्टी पीटीआई को कड़ी टक्कर दे रही है।
पीपीपी के मुखिया और पाकिस्तान की सबसे पुरानी पार्टी की कमान बिलावल भुट्टो जरदारी के हाथ में है। उम्र और अनुभव दोनों में वे प्रमुख प्रतिद्वंदियों से काफी छोटे हैं। 2007 में मां बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उन्हें पीपीपी का मुखिया चुना गया था। तब उनकी उम्र केवल 19 साल थी। साल 2015 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सक्रिय रूप से राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया है। इस चुनाव में बिलावल की सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। उन्हें एक ऐसी पार्टी को चुनाव लड़वाना है जो बेनजीर भुट्टो की मौत और उनके पिता के भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जनाधार के मामले में अब तक सबसे कमजोर स्थिति में है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा पार्टी की स्थिति कहीं भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। सिंध में भी पीपीपी के कई कद्दावर नेताओं के इमरान खान की पार्टी के साथ जाने से यहां भी पीपीपी की स्थिति पहले जैसी नहीं रह गई है। अभी तक के सर्वे में बिलावल भुट्टों तीसरे सबसे बड़े दावेदान बने हुए हैं। अगर अंतिम क्षण में समीकरण बदलता है तो वो किंगमेकर की भूमिका में भी आ सकता है। या खुद किंग बन सकते हैं।