सवाल. क्या सिर्फ आतंक है मदद रोकने की वजह?
जवाब— पाकिस्तान और चीन के बीच मजबूत होते संबंध अमरीका के लिए चिंता का विषय रहे हैं। अमरीका दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के जरिये अपनी दखल बढ़ाना चाहता है। ऐसे में आर्थिक मदद रोकना अमरीका की दबाव की रणनीति का हिस्सा है। आतंकवाद का इससे बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं है। इसलिए हालिया आर्थिक मदद रोकने का फैसला राजनीतिक ज्यादा है।
सवाल. क्या पहली बार रोकी है यूएस ने मदद?
जवाब— नहीं। अमरीका इससे पहले पांच बार पाक की मदद रोक चुका है। पहली बार 1965 में सैन्य सहायता पर रोक लगाई। इसके बाद 1979 में जिमी कार्टर ने हर तरह की मदद रोकी। फिर 1990 में बुश प्रशासन ने सहायता रोकी। 1993 में 8 साल के लिए सहायता बंद करने की घोषणा हुई और फिर 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद कटौती की।
सवाल. चीन की ओर क्यों जा रहा है पाक?
जवाब— पाकिस्तान के लिए हमेशा से बड़ा सहयोगी अमरीका रहा है, लेकिन अगर वह चीन की ओर झुक रहा है, तो इसकी वजह भारत का अमरीका के खेमे में पूरी तरह जाना है। भारत और अमरीका की करीबी के कारण पाकिस्तान के लिए चीन का साथ ज्यादा मुफीद है। वह चीन के करीब जाते हुए अमरीका के साथ भी रिश्ते खराब नहीं करेगा।
भारत के लिए अमरीका के इस फैसले के मायने——-
सवाल. क्या भारत के लिए फायदेमंद है यह मदद रोकना?
जवाब— भारत के नजरिये से देखें तो अमरीका के इस फैसले का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता दिखता। असल में भारत विभिन्न मंचों से पाकिस्तान को आतंकी देश कहता है, लेकिन वह खुद अपने किसी दस्तावेज में पाकिस्तान को आतंकी देश नहीं कहता। कुछ समय के लिए राजनीति फायदे के लिए तो यह सही है, लेकिन दीर्घकालिक वैश्विक रणनीति के लिहाज से यह खतरनाक है। कुल मिलाकर भारत की पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति अस्पष्ट है। यह सच है कि पाकिस्तान अपने यहां आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा है। इसके लिए उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी होती रही है। डिप्लोमेसी के स्तर पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर अस्पष्टता का खामियाजा भारत को लगातार भुगतना पड़ रहा है।
भारत के नजरिये से देखें तो अमरीका के इस फैसले का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता दिखता। असल में भारत विभिन्न मंचों से पाकिस्तान को आतंकी देश कहता है, लेकिन वह खुद अपने किसी दस्तावेज में पाकिस्तान को आतंकी देश नहीं कहता। कुछ समय के लिए राजनीति फायदे के लिए तो यह सही है, लेकिन दीर्घकालिक वैश्विक रणनीति के लिहाज से यह खतरनाक है। कुल मिलाकर भारत की पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति अस्पष्ट है। यह सच है कि पाकिस्तान अपने यहां आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा है। इसके लिए उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी होती रही है। डिप्लोमेसी के स्तर पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर अस्पष्टता का खामियाजा भारत को लगातार भुगतना पड़ रहा है। अगर यह मान लिया जाए कि पाक विदेशी मदद का बड़ा हिस्सा आतंकी गतिविधियों या मदरसों पर खर्च करता था, तो उसके आर्थिक सुधार के कार्यक्रमों पर इसका खास असर नहीं पड़ेगा। दूसरी तरफ चीन ने तुरंत बयान देकर पाक को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया है। इतना ही नहीं खुद पाकिस्तान की घरेलू अर्थव्यवस्था बेहतर हुई है। पाक की करीब 36 प्रतिशत अर्थव्यवस्था खुदरा है, जो उसकी बड़ी ताकत है। इसके अलावा पाकिस्तान का उत्पादन भी पिछले एक-दो सालों में बढ़ा है। इसलिए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर इस रोक का बहुत ज्यादा असर नहीं पडऩे वाला है, यह तय है।
सवाल. क्या फिर पलट सकता है अमरीका?
जवाब— चूंकि अमरीका का यह फैसला पूरी तरह से राजनीतिक है, इसलिए इससे पीछे हटने की भी पूरी संभावना है। वैसे भी उसने इसी शर्त के साथ मदद रोकी है कि मदद का भविष्य पाकिस्तान की ओर से अपनी धरती पर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई पर निर्भर करेगा।
जाहिर है इस कार्रवाई का पैमाना खुद अमरीका ही तय करेगा। जैसे ही अमरीका को लगेगा कि पाकिस्तान, चीन के खेमे में रहते हुए भी उसकी अंतरराष्ट्रीय राजनीति को आगे बढ़ा रहा है, तो वह इस मदद को पुन: जारी करने में संकोच नहीं करेगा। देर-सबेर यह होना ही है।
सवाल. इस प्रकरण का भारत के लिए क्या है सबक?
जवाब— पहली और सबसे बड़ी बात तो यह कि भारत को अपनी लड़ाई खुद लडऩी होगी। अगर भारत समझता है कि अमरीका की आर्थिक मदद या फिर उसके दबाव से पाकिस्तान के साथ हमारे मसले हल हो सकते हैं, तो यह भूल है। हमें अपनी लड़ाई खुद लडऩी होगी और इसके लिए पूरी तरह स्पष्ट नजरिया अपनाना होगा। फिलहाल एक ओर भारत ने पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा दे रखा है। पाकिस्तान के साथ व्यापारिक रिश्ते भी हैं, और दूसरी तरफ हम पाकिस्तान को मौखिक रूप से आतंकी देश कहते हैं। तो यह दोहरी सोच रणनीतिक रूप से बहुत लंबे समय तक नहीं चल सकती है। भारत के इसी रवैये के कारण रूस जैसा सहयोगी भी अब पाकिस्तान में आर्थिक पैठ बढ़ा रहा है। बीजिंग, इस्लामाबाद और मास्को का यह त्रिकोण भारत के लिए चिंता का सबब है।
सवाल. अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर?
जवाब— फिलहाल वैश्विक राजनीति में चीन-अमरीका विवाद सबसे बड़ा है। कोरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे विवाद इसी का हिस्सा हैं। लेकिन यह भी दिलचस्प है कि चीन और अमरीका एक-दूसरे के प्रतियोगी हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं। दोनों के बीच दक्षिण एशिया में प्रभुत्व बढ़ाने की होड़ है और इसमें पाकिस्तान की अहम भूमिका है। ऐसे में दोनों की उस पर नजर है।
सवाल. क्या चल रहा है यूएस-चीन के बीच?
जवाब— ऊपरी तौर पर यह सही है कि अमरीका और चीन के बीच आर्थिक रिश्ते बहुत गहरे हैं और दोनों अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे की पूरक हैं, लेकिन 2008 की आर्थिक मंदी के बाद अमरीका ने विदेशी अर्थव्यवस्थाओं पर अपनी निर्भरता को कम किया है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोनों ही देश अपने हितों को साधते रहे हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखते हैं कि इन दोनों की लड़ाई का फायदा कोई तीसरा देश न उठा सके। इसलिए यह कहा जाना पूरी तरह से गलत है कि अमरीका-चीन निकट भविष्य में एक-दूसरे के खिलाफ कोई बड़ी दुश्मनी जाहिर करने वाले हैं। छिटपुट बयानों से दोनों के रिश्तों को नहीं आंकना चाहिए।