scriptआउवा गांव ने इतिहास के पन्नो में जोड़ा एक और अध्याय | Auwa village added pages to the history of another chapter | Patrika News
पाली

आउवा गांव ने इतिहास के पन्नो में जोड़ा एक और अध्याय

राजस्थानी साहित्य में आउवा गांव निवासी राजपुरोहित के ‘म्रित्यु रासौ’ को किया शामिल

पालीSep 18, 2017 / 10:35 am

rajendra denok

Auwa village
इतिहास के साक्षी आउवा के राजपुरोहित का लिखा पाठ पढ़ रहे अब बच्चे

राजस्थानी साहित्य में आउवा गांव निवासी राजपुरोहित के ‘म्रित्यु रासौ’ को किया शामिल

पाली/आउवा.

स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी आउवा गांव के इतिहास के पन्नों में एक और अध्याय जुड़ गया है। इस बार यह अध्याय राजस्थान साहित्य में शामिल किया गया है। जिसे पूरे राजस्थान के १२वीं कक्षा में राजस्थानी विषय के विद्यार्थी पढ़ रहे है।
राजस्थानी भाषा के प्रेमती गांव के मूल निवासी शंकरसिंह राजपुरोहित ने म्रित्यु रासौ नाम का साहित्य लिखा था। इसी साहित्य की एक रचना को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान ने राजस्थानी साहित्य विषय में शामिल किया है। राजस्थानी भाषा समिति के अध्यक्ष राजपुरोहित बताते है कि इस पुस्तक में उनके अलावा भी कई राजस्थानी साहित्यकारों की रचनाएं शामिल है। उनकी रचना शामिल करने के बाद से आउवा गांव एक बार फिर राजस्थानी विद्यार्थियों के आकर्षण का केन्द्र बनेगा। जो गांव के विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
मिल चुका है पुरस्कार
राजपुरोहित की एक रचना को राजस्थानी पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा मैथली कथा संग्रह गणनायक के राजस्थानी अनुवाद के लिए केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली की ओर से भी राजपुरोहित को पुरस्कृत किया गया था।
दादा के कारण बढ़ा राजस्थानी प्रेम
बकौल राजपुरोहित का कहना है कि उनका बचपन से मारवाड़ी मायड़ भाषा से लगाव रहा है। इसका बड़ा कारण उनके दादा हमीरसिंह थे। जो बचपन में उनको वियदान दैथा की कविताएं सुनाते थे। जिनको सुनने से उनका राजस्थानी के प्रति आकर्षण बढ़ता गया और वे राजस्थानी के लेखक बन गए।
राजस्थानी को मिलनी चाहिए मान्यता
राजपुरोहित राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए भी संघर्षरत है। उनका मानना है कि प्राथमिक शिक्षा मात्र मातृ भाषा में दी जानी चाहिए। इससे वह अपनी संस्कृति और क्षेत्र को भली-भांति समझ सकता है। राजस्थानी को भी संवैधानिक मान्यता मिलनी चाहिए।
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