scriptफीस चुकाने के लिए कभी गिरवी रखने पड़े थे मां के गहने, आज खुद ही बन गए जेवरात के नामचीन व्यापारी | Big achievment Retirement of police officer | Patrika News

फीस चुकाने के लिए कभी गिरवी रखने पड़े थे मां के गहने, आज खुद ही बन गए जेवरात के नामचीन व्यापारी

locationपालीPublished: Jan 07, 2019 05:18:32 pm

Submitted by:

Suresh Hemnani

-हिम्मत ना हार, अकेला चल चला चल फकीरा…-संघर्ष, जिद्द और जुनून की कहानी : पिता के सपने को पूरा करने के लिए पहले तो बने पुलिस अधिकारी फिर अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेकर अमरीका में शुरू किया सोने के आभूषण का व्यापार

Big achievment Retirement of police officer

फीस चुकाने के लिए कभी गिरवी रखने पड़े थे मां के गहने, आज खुद ही बन गए जेवरात के नामचीन व्यापारी

राजेन्द्रसिंह देणोक
पाली। ‘सुनके तेरी पुकार… संग चलने को कोई तेरे हो ना हो तैयार …, हि मत ना हार चल चला चल अकेला चल चला चल… फकीरा चल चला चल…।’ अस्सी के दशक में आई फिल्म ‘फकीरा’ के गीत के ये बोल भले ही औरों के लिए महज फिल्मी गीत ही हो पर एक शख्स के जीवन पर तो इस गीत ने ऐसा असर डाला कि मां के त्याग और समर्पण का ऋण चुकाने वे जिद्द और जुनून की नौका पर सवार हो गए। एक दौर था जब स्कूल की फीस चुकाने के लिए मां के जेवरात तक गिरवी रखने पड़े थे। लेकिन, मजबूत हौसले ने पहले पुलिस अधिकारी बनाया, अब जेवरात के नामचीन व्यापारी है। हम बात कर रहे हैं पाली जिले की जैतारण तहसील के गरनिया गांव निवासी उम्मेदसिंह उदावत की। जिन्होंने खुद को तपाकर ऐसा कुंदन बनाया कि वे अब औरों के लिए नजीर हैं।
दरअसल, सिंह जब 16-17 साल के थे, तब उनके पिता लक्ष्मणसिंह राठौड़ का निधन हो गया था। पिता पटवारी के पद पर कार्यरत थे, लेकिन वे लंबी बीमारी से जूझ रहे थे। ऐसे में पिता के इलाज में परिवार की आर्थिक स्थिति ढह गई। छह बहन-दो भाइयों में सबसे छोटे उम्मेद की तालीम पर संकट खड़ा हो गया। तब मां बृज कंवर राणावत ने बेटे की पढ़ाई की लिए सोने का बोर, गले की कंठी और हाथ की चूडिय़ां गिरवी रख कर ब्यावर के सनातन धर्म सरकारी कॉलेज में दाखिला कराया। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करते ही उ मेद का बीमा निगम में चयन हो गया। कुछ ही साल में परिवार के दिन फिरने लगे।
पहली तन वाह मां को समर्पित
मां के समर्पण की तस्वीर उम्मेद के जेहन में हरदम रहती थी। इसलिए पहली तन वाह मां को ही समर्पित कर दी। उन्होंने मां के लिए चूडिय़ां बनवाई। सिंह कहते हैं, चूंकि पिता का देहांत हो गया था इसलिए मां ने चूडिय़ां पहनने से इनकार कर दिया। हालाकि, बेटे की जिद के आगे मां ज्यादा मना नहीं कर पाई।
गीत के बोल करते रहे प्रेरित
सिंह कहते हैं, मुश्किल हालात में कॉलेज का सफर शुरू हुआ था। जब कॉलेज जा रहा था, रास्ते में एक दुकान से लाउड स्पीकर से ‘सुनके तेरी पुकार…संग चलने को कोई तेरे हो ना हो तैयार, हिम्मत न हार…चल चला चल’ सुनाई दिया। उस दिन के बाद ज्यों-ज्यों सफर चलता रहा, ये गीत मेरे कानों में गूंजता रहा। इससे प्रेरणा मिलती रही। सिंह कहते हैं, एक वक्त था तब मां के बोरला-कंठी गिरवी रखने पड़े थे। अब जब खुद ही बोरला-कंठी बनाता हूं तो मां का खाली शीश औऱ सूना गला जेहन में उभर आता है। ऐसा लगता है मानों चारों और पानी होते हुए भी मन बून्द-बून्द को तरस रहा है।
पिता का सपना था बेटा पुलिस अधिकारी बने
पिता की मंशा थी कि उनका बेटा पुलिस अधिकारी बने। पिता का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिए। बीमा निगम की नौकरी करते हुए पढ़ाई जारी रखी। दो साल बाद ही वे पुलिस सब इंस्पेक्टर बन गए। पुलिस में 20 साल तक की नौकरी में उप अधीक्षक पद तक का सफर तय किया। पुलिस अधिकारी रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। जयपुर का बहुचर्चित सुमेधा दुर्लभ जी अपहरण प्रकरण हो या तिब्बती महिला बलात्कार मामला, आरोपियों के गिरेबां तक पहुंचने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनको यूएनओ में भी सेवाएं देने का सौभाग्य मिला है। पुलिस नौकरी छोड़ बन गए जेवरात व्यापारी उम्मेद की मंजिल यहां तक ही नहीं थी। उन्होंने 2003 में पुलिस की नौकरी से अनिवार्य सेवानिवृत्ति ली और अमरीका चले गए। वहां उन्होंने आभूषण बनाने का व्यापार शुरू किया। 2010 तक वे न्यूयॉर्क के मेनहटन शहर में रहे। पिछले 7-8 साल से उन्होंने पुन: स्वदेश को ही अपनी कर्मस्थली बना लिया। जयपुर में जेवरात का व्यापार कर रहे हैं। उनका बेटा दिग्विजय सिंह अफ्रीका में आर्किटेक्ट है और बेटी डॉ. संयोगिता लंदन में डॉक्टर के रूप में सेवाएं दे रही है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो