पाली

आर्थिक कमजोरी के कारण शिक्षा से कोसों दूर हैं इस बस्ती के बच्चे, मजबूरी में बीन रहे हैं कचरा

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पालीApr 24, 2019 / 02:52 pm

Suresh Hemnani

आर्थिक कमजोरी के कारण शिक्षा से कोसों दूर हैं इस बस्ती के बच्चे, मजबूरी में बीन रहे हैं कचरा

-नवजीवन योजना में बस्ती के कई बच्चों को नहीं मिला प्रवेश
पाली। सांसी बस्ती में आज भी शिक्षा की लौ पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई है। नवजीवन योजना के तहत कई बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश नहीं मिलने वे गलियों में ही खेलने-कूदने में व्यस्त है। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं कि वे इन्हें स्कूलों में प्रवेश दिला सके।
सांसी बस्ती के सामाजिक कार्यकर्ता चीकूराम ने बताया कि वर्ष 2018 के सत्र में नवजीवन योजना व आरटीइ के तहत बस्ती के करीब 30-40 बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश दिया गया। लेकिन 40 के करीब बच्चे शेष रह गए। जिन्हें स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया गया। ऐसे में अधिकतर बच्चों के परिजन अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे। इसको लेकर जिला कलक्टर से लेकर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक ज्योतिप्रकाश अरोड़ा से भी सम्पर्क किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। ऐसे में बस्ती के कई बच्चे स्कूल नहीं जा रहे तो कुछ बच्चे फिर से कचरा बीनने जा रहे है। इस बारे में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक ज्योतिप्रकाश अरोड़ा से बात करना चाही लेकिन उनका फोन रिसीव नहीं हुआ।
जीवन में उजियारा लाने शुरू की थी नवजीवन योजना
कच्ची शराब बनाने के धंधे से जुड़े लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोडऩे तथा उनके बच्चों के जीवन में ज्ञान का उजियारा लाने के लिए नवजीवन योजना शुरू की गई थी। योजना में सांसी, कंजर, भाट, भाण्ड, नट, राणा, डोम आदि जातियों को शामिल किया गया। इसके तहत पाली की सांसी बस्ती में शराब बनाने के धंधे से जुड़े लोगों के बच्चों का भी निजी स्कूलों में प्रवेश करवाने का प्रावधान था। बच्चों की फीस से लेकर उनकी पोशाके, जूते, स्टेशनरी और स्कूल बस का किराया खर्च भी सरकार निजी स्कूलों को देती है। लेकिन, अब भी कई बच्चे शिक्षा से वंचित है।
दो बच्चे दोनों घर पर
नवजीवन योजना के तहत बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलवाना चाहता था, लेकिन प्रवेश नहीं मिला। आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है। बच्चे अब घर पर ही है, स्कूल नहीं जाते। -जगदीश, सांसी बस्ती नया गांव
आरटीइ में दिया प्रवेश
दो बच्चे है, जिन्हें नवजीवन योजना के तहत स्कूल में प्रवेश दिलाना चाहता था लेकिन नवजीवन की बजाय उन्हें आरटीइ के तहत स्कूल में प्रवेश दिया गया। ऐसे में टैक्सी किराया, बच्चें की ड्रेस, जूते आदि का खर्चा हमें ही वहन करना पड़ रहा है। नवजीवन योजना के तहत बच्चों को प्रवेश देते तो यह खर्चा बच जाता है। – भोलाराम, सांसी बस्ती नया गांव
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