खुद बैशाखी पर, बुलन्द हौसलों से दूसरों का बन रहे सहारा
दिव्यांगता दिवस 2020 विशेष :

पाली। शारीरिक अक्षमता किसी भी व्यक्ति के मजबूत इरादों को जरा भी कम नहीं कर सकती। किसी भी तरह से रुकावट पैदा नहीं सकती। जिले में ऐसे कई दिव्यांग है जिनका शरीर पूरी तरह से उनका साथ नहीं देता, लेकिन उन्होंने जज्बात, जोश और जुनून से खुद को इतना काबिल बनाया कि शारीरिक कमजोरी उनके इरादों के सामने छोटी पड़ गई। खुद बैशाखियों पर चलते हैं, लेकिन दूसरों का मजबूत सहारा बनकर उभरे हैं। ऐसे ही मजबूत इरादों वाले कुछ दिव्यांगों से रूबरू करा रहे हैं।
बच्चों का भविष्य संवार रहे दिव्यांग कुमावत
पाली। ये हैं सुमेरपुर के जेठाराम कुमावत। पैर से दिव्यांग हैं लेकिन हूनर से कहीं ज्यादा काबिल। कुमावत कई सालों से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी से पीडि़त है। वे सीधे तौर पर खड़े भी नहीं हो सकते। शारीरिक विकलांगता कभी भी उनके जोश और जुनून के आड़े नहीं आई। वे कोलीवाड़ा गांव की वंदना बाल निकेतन के संस्था प्रधान है। बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं। करीब 50 बच्चों को उन्होंने नि:शुल्क शिक्षा दी है। बच्चों का समग्र विकास करने की उन पर धुन सवार है। कोरोनाकाल में शिक्षण व्यवस्था जरूरी प्रभावित हुई, लेकिन कुमावत अपने लक्ष्य के प्रति संकल्पबद्ध है। गरीब और कमजोर बच्चों को काबिल बनाने के लिए वे विशेष प्रयास करते हैं।
विकट परिस्थितियों में खुद को काबिल बनाया
सोजत। बचपन में पोलियो की बीमारी में एक पैर में गंवा चुके दिव्यांग मोहम्मद रफीक ने विकट परिस्थितियों में भी खुद को काबिल बनाया। आर्थिक तंगी को झेलते हुए एम.ए, बीएड, स्लेट, नेट तक की पढ़ाई पूरी की और ग्रामसेवक से तृतीय श्रेणी अध्यापक बने। फिर लगातार 8 वर्ष तक शत प्रतिशत बोर्ड परीक्षा परिणाम देते हुए व्याख्याता अर्थशास्त्र के पद पर सेवाएं दी। 2014 में राजस्थान लोक सेवा आयोग से सीधी भर्ती से चयनोपरांत प्रधानाध्यापक और 2017 से प्रधानाचार्य कम पीइइओ का दायित्व बखूबी निभा रहे हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की ओर से श्रेष्ठ कर्मचारी के रूप में राज्य स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है।
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