इस परिवार ने अपने गधों को इस कदर दक्ष कर दिया है कि एक बार निर्माण स्थल बताने के बाद अन्य फेरों में गधे स्वत: ही बगैर हांके निर्माण स्थल से सामग्री ढोने वाले ठिकाने पर पहुंच जाते हैं। हापूराम बताते हैं कि उन्होंने गधों को इस कदर प्रशिक्षित कर रखा है कि जहां सामग्री के आठ से दस फेरे लगाने होते हैं। वहां वे एक बार ही गधों के साथ आगे चलकर जाते हैं। उसके बाद शेष फेरों में गधे अपने आप ही वहां पहुंच जाते हैं। मकान मालिक सामग्री खाली कर देता है। इसके बाद गधे लौटकर उसी जगह पहुंच जाते हैं जहां से दुबारा सामग्री लादनी होती है।
हापूराम को सामग्री आपूर्ति का ऑर्डर वे लोग देते हैं, जिनका मकान या तो तंग गली में है या पहाड़ी क्षेत्र के दुर्गम मार्ग पर है। जहां ट्रेक्टर-ट्रोली या जीप नहीं पहुंच पाती है, वहां गधे पर ही सामग्री लाद पहुंचाई जाती है। वे सेंदड़ा, केसरपुरा, रामगढ़, चिताड़ सहित आस-पास के गांवों में सामग्री आपूर्ति के लिए जाते हैं। गर्मी के दिनों में गधे बीमार न हो, इसके लिए सुबह 7 से दोपहर 12 बजे तक ही आपूर्ति का काम करवाते हैं।