20 साल पहले थे चीकू
करीब 15-20 साल पहले शिवगंज व आसपास के क्षेत्रों में हजारों की संख्या में चीकू के पेड़ थे। अब इक्के-दुक्के ही देखने को मिल रहे हैं। बीते सात-आठ सालों से अनार की अधिक हो रही है। अकेले चांदाणा में कई कृषि कुओं पर हजार से लेकर पांच हजार सिंदूरी अनार के पेड़ लहलहा रहे हैं।
करीब 15-20 साल पहले शिवगंज व आसपास के क्षेत्रों में हजारों की संख्या में चीकू के पेड़ थे। अब इक्के-दुक्के ही देखने को मिल रहे हैं। बीते सात-आठ सालों से अनार की अधिक हो रही है। अकेले चांदाणा में कई कृषि कुओं पर हजार से लेकर पांच हजार सिंदूरी अनार के पेड़ लहलहा रहे हैं।
नागौर में कसूरी मैथी की तरफ रुझान
नागौर जिले के नागौर, मूण्डवा व खींवसर तहसील क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों से कसूरी मैथी की बुआई एवं उत्पादन काफी होने लगा है। करीब 25-30 वर्ष पहले मैथी केवल नागौर से सटे ताऊसर गांव के आसपास बोई जाती थी। पहले किसान रबी में सरसों, गेहूं, जीरा, ईसबगोल की बुआई ज्यादा करते थे। अब जहां पानी की पर्याप्त मात्रा है, वहां मैथी की बुआई अधिक हो रही है।
नागौर जिले के नागौर, मूण्डवा व खींवसर तहसील क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों से कसूरी मैथी की बुआई एवं उत्पादन काफी होने लगा है। करीब 25-30 वर्ष पहले मैथी केवल नागौर से सटे ताऊसर गांव के आसपास बोई जाती थी। पहले किसान रबी में सरसों, गेहूं, जीरा, ईसबगोल की बुआई ज्यादा करते थे। अब जहां पानी की पर्याप्त मात्रा है, वहां मैथी की बुआई अधिक हो रही है।
बाड़मेर में बदला गणित
बाड़मेर में पहले ग्वार, मोठ, तिल, मूंग की फसलें बहुतायत में होती थी, यहां किसी ने कल्पना नहीं की थी कि इस इलाके में अनार और खजूर भी उग सकेंगे। करीब छह अरब की ईसबगोल, एक अरब 23 करोड़ की अनार की उपज है। वहीं 152 हैक्टेयर में खजूर की पैदावार है।
बाड़मेर में पहले ग्वार, मोठ, तिल, मूंग की फसलें बहुतायत में होती थी, यहां किसी ने कल्पना नहीं की थी कि इस इलाके में अनार और खजूर भी उग सकेंगे। करीब छह अरब की ईसबगोल, एक अरब 23 करोड़ की अनार की उपज है। वहीं 152 हैक्टेयर में खजूर की पैदावार है।
सीकर में अंजीर की खेती
शेखावाटी में करीब दो दशक पहले सबसे अधिक गोरी मोठ की खेती हुआ करती थी। सीकर झुंझुनू और नागौर में रकबा करीब 35000 हेक्टेयर से अधिक था। अब गोरी मोठ 5000 हैक्टेयर और चंवला का क्षेत्र बढकऱ 30 हजार हैक्टेयर हो गया है। शेखावाटी के प्रगतिशील किसान अंजीर की खेती कर रहे हैं। ग्रीन और पॉलीहाउस की संख्या भी यहां बढ़ी है।
शेखावाटी में करीब दो दशक पहले सबसे अधिक गोरी मोठ की खेती हुआ करती थी। सीकर झुंझुनू और नागौर में रकबा करीब 35000 हेक्टेयर से अधिक था। अब गोरी मोठ 5000 हैक्टेयर और चंवला का क्षेत्र बढकऱ 30 हजार हैक्टेयर हो गया है। शेखावाटी के प्रगतिशील किसान अंजीर की खेती कर रहे हैं। ग्रीन और पॉलीहाउस की संख्या भी यहां बढ़ी है।
इनका कहना है
किसान थककर नहीं बैठता। उदाहरण देखिए कि सीकर के गुहाला नीमकाथाना इलाके में प्रसिद्ध प्याज की खेती हुआ करती थी, गिरते भूमि जलस्तर के कारण अब यह नाम मात्र की ही है। किसानों ने इसके विकल्प के रूप में ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस के जरिए खेती करना शुरू कर दिया है। यहां गोरी मोठ का स्थान अब चंवला ने ले लिया। –प्रमोद कुमार, संयुक्त निदेशक, कृषि, सीकर
किसान थककर नहीं बैठता। उदाहरण देखिए कि सीकर के गुहाला नीमकाथाना इलाके में प्रसिद्ध प्याज की खेती हुआ करती थी, गिरते भूमि जलस्तर के कारण अब यह नाम मात्र की ही है। किसानों ने इसके विकल्प के रूप में ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस के जरिए खेती करना शुरू कर दिया है। यहां गोरी मोठ का स्थान अब चंवला ने ले लिया। –प्रमोद कुमार, संयुक्त निदेशक, कृषि, सीकर
परम्परागत फसलों के साथ ही किसानों ने अपनी मेहनत व नवाचार के जरिए नई फसलें बोनी शुरू कर दी है। बाड़मेर में पानी की आवक के बाद काफी बदलाव हुआ है। अनार के साथ ही ईसबगोल और जीरा भी होने लगा है। जैसलमेर-पोकरण क्षेत्र का तापमान अभी खजूर के लिए बेहतर है। हर जगह प्रगतिशील किसानों ने फसलों में बदलाव किया है। –डॉ. एलएन हर्ष, कृषि वैज्ञानिक, पूर्व कुलपति कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर