वह खुद परिवार का रचयिता होता है,
अपनी हल से सृष्टि के बीज बोता है,
परिवार के लिए अमृत की दो बूंद जुटाने हेतु,
वह स्वयं महासागर में निमग्न होता है ।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
जो प्यार और विश्वास की महामूरत होता है,
जो दया और धर्म की प्यारी सूरत होता है
और रहता है जिसमें अमिट स्नेह और वात्सल्य
उसका मन-मंदिर वो खुद भगवान होता है।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
अपनी हल से सृष्टि के बीज बोता है,
परिवार के लिए अमृत की दो बूंद जुटाने हेतु,
वह स्वयं महासागर में निमग्न होता है ।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
जो प्यार और विश्वास की महामूरत होता है,
जो दया और धर्म की प्यारी सूरत होता है
और रहता है जिसमें अमिट स्नेह और वात्सल्य
उसका मन-मंदिर वो खुद भगवान होता है।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
वह परिवार के भवन की नींव होता है,
अपने बलिष्ठ कंधों पर उसके स्तम्भों को ढ़ोता है।
जिम्मेदारियों में खपकर पिसकर एक दिन,
वह उस भवन को ए आलीशान महल बना देता है ।
क्योंकि, वह एक पिता होता है…
अपने बलिष्ठ कंधों पर उसके स्तम्भों को ढ़ोता है।
जिम्मेदारियों में खपकर पिसकर एक दिन,
वह उस भवन को ए आलीशान महल बना देता है ।
क्योंकि, वह एक पिता होता है…
जो बेटे की जुदाई कभी सह नहीं सकता,
सावन के बिना दरिया जैसे बह नहीं सकता,
और उठती हो डोली बेटी की तो,
एक बाप बेचैन हुए बिना नहीं रह सकता।
क्योंकि वह एक पिता होता है… उसकी हर सास में होती है दुआएं
देता है आशीष, लेता है बलाएं,
अपने दिल के टुकड़ों के खातिर,
खुद को न जाने कितनी देता है सज़ाएं,
क्योंकि वह एक पिता होता है…
जो सर्वस्व-समर्पण बलिदानियां देता है,
सारें ग़मों को जो हंस कर सहता है,
लगती है चोट गर उसको ज़मानें की,
छुपाकर दर्दे दिल ए वो खुशियों का पैगाम देता है।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
सावन के बिना दरिया जैसे बह नहीं सकता,
और उठती हो डोली बेटी की तो,
एक बाप बेचैन हुए बिना नहीं रह सकता।
क्योंकि वह एक पिता होता है… उसकी हर सास में होती है दुआएं
देता है आशीष, लेता है बलाएं,
अपने दिल के टुकड़ों के खातिर,
खुद को न जाने कितनी देता है सज़ाएं,
क्योंकि वह एक पिता होता है…
जो सर्वस्व-समर्पण बलिदानियां देता है,
सारें ग़मों को जो हंस कर सहता है,
लगती है चोट गर उसको ज़मानें की,
छुपाकर दर्दे दिल ए वो खुशियों का पैगाम देता है।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
जो निरन्तर हौसलों की उड़ान भरता है,
टेढी-मेढ़ी पगडंडियों पर जो थामें हाथ चलता है,
प्यार का पुंज, विश्वास का केंद्र, श्रद्धा का भण्डार,
नेह के स्नेह से भरा वह दीपक नित्य नवीन जलता है।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
-आशा पंकज मूंदड़ा
टेढी-मेढ़ी पगडंडियों पर जो थामें हाथ चलता है,
प्यार का पुंज, विश्वास का केंद्र, श्रद्धा का भण्डार,
नेह के स्नेह से भरा वह दीपक नित्य नवीन जलता है।
क्योंकि वह एक पिता होता है…
-आशा पंकज मूंदड़ा