बरसात (rain)में घर में पानी भरा तो डॉ. खिची उन्हें परिवार सहित अपने घर ले आए
बांगड़ अस्तपाल केम्पस में यू तो कई डॉक्टर्स की दोस्ती मशहूर है लेकिन डॉ. के.एल. मंडोरा (Dr. K.L. Mandora_pali) व डॉ. पारस खिंची (Dr. Paras Khinci) की दोस्ती सालों बाद आज भी टॉप पर है। इनकी दोस्ती के कई किस्से है जो मेडिकल कॉलेज केम्पस (Medical college campus) में इनके जूनियर डॉक्टर डॉ. प्रवीण गर्ग, डॉ. दलजीतसिंह राणावत (Praveen Garg, Dr. Daljeet Singh Ranaut) मजे से सुनाते है। डॉ. मंडोरा ने बताया कि उनकी दोस्ती डॉ. पारस खिंची से वर्ष १९९८ में अस्पताल में साथ ड्यूटी करते समय हुई, जो आज भी कायम है। उन्होंने बताया कि दोनों के घर भी टेगोर नगर में एक ही गली में है। दोनों के परिवार के लोग एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते है। जीवन में किसी भी तरह की उन्हें समस्या हुई तो डॉ. खिंची हमेशा उनका सहारा बन खड़े नजर आए। डॉ. मंडोरा ने बताया कि कुछ माह पहले जयपुर में उनकी आंत का ऑपरेशन हुआ। उनके परिवार के लोग साथ थे लेकिन डॉ. खिंची भी छुट्टी लेकर जिद्द कर साथ चलते। उन्होंने बताया कि करीब तीन वर्ष पहले की बात है शहर में तेज बरसात हुई तो उनके घर के अंडरग्राउंड में पानी भर गया। करंट न फेल जाए इसलिए घर की बिजली तक बंद करनी पड़ी। डॉ. खिंची को इस बात का पता चला तो वह मुझे मेरे परिवार सहित अपने घर जबरदस्ती यह कहते हुए ले गए कि यह भी तुम्हारा ही घर है। जब तक पानी अंडरग्राउंड से पूरा बाहर नहीं निकाला जाता आपको यही रहना है। डॉ. मंडोरा का यह अधिकारपूर्वक हक जमाना मुझे आज भी अच्छा लगता है। वही डॉ. खिंची का कहना है कि डॉ. मंडोरा उनके भाई जैसे है, इतने सालों की दोस्ती में मुझे कभी एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि में तकलीफ में हूं ओर डॉ. मंडोरा मेरे पास न हो। बस, इससे ज्यादा उनसे ओर कुछ नहीं चाहिए।
बांगड़ अस्तपाल केम्पस में यू तो कई डॉक्टर्स की दोस्ती मशहूर है लेकिन डॉ. के.एल. मंडोरा (Dr. K.L. Mandora_pali) व डॉ. पारस खिंची (Dr. Paras Khinci) की दोस्ती सालों बाद आज भी टॉप पर है। इनकी दोस्ती के कई किस्से है जो मेडिकल कॉलेज केम्पस (Medical college campus) में इनके जूनियर डॉक्टर डॉ. प्रवीण गर्ग, डॉ. दलजीतसिंह राणावत (Praveen Garg, Dr. Daljeet Singh Ranaut) मजे से सुनाते है। डॉ. मंडोरा ने बताया कि उनकी दोस्ती डॉ. पारस खिंची से वर्ष १९९८ में अस्पताल में साथ ड्यूटी करते समय हुई, जो आज भी कायम है। उन्होंने बताया कि दोनों के घर भी टेगोर नगर में एक ही गली में है। दोनों के परिवार के लोग एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते है। जीवन में किसी भी तरह की उन्हें समस्या हुई तो डॉ. खिंची हमेशा उनका सहारा बन खड़े नजर आए। डॉ. मंडोरा ने बताया कि कुछ माह पहले जयपुर में उनकी आंत का ऑपरेशन हुआ। उनके परिवार के लोग साथ थे लेकिन डॉ. खिंची भी छुट्टी लेकर जिद्द कर साथ चलते। उन्होंने बताया कि करीब तीन वर्ष पहले की बात है शहर में तेज बरसात हुई तो उनके घर के अंडरग्राउंड में पानी भर गया। करंट न फेल जाए इसलिए घर की बिजली तक बंद करनी पड़ी। डॉ. खिंची को इस बात का पता चला तो वह मुझे मेरे परिवार सहित अपने घर जबरदस्ती यह कहते हुए ले गए कि यह भी तुम्हारा ही घर है। जब तक पानी अंडरग्राउंड से पूरा बाहर नहीं निकाला जाता आपको यही रहना है। डॉ. मंडोरा का यह अधिकारपूर्वक हक जमाना मुझे आज भी अच्छा लगता है। वही डॉ. खिंची का कहना है कि डॉ. मंडोरा उनके भाई जैसे है, इतने सालों की दोस्ती में मुझे कभी एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि में तकलीफ में हूं ओर डॉ. मंडोरा मेरे पास न हो। बस, इससे ज्यादा उनसे ओर कुछ नहीं चाहिए।
लिफ्ट देने से शुरू हुई दोस्ती, आज भी कायम
हाउसिंग बोर्ड निवासी पंडित चेतन्य श्रीमाली (Pandit Chetanya Shrimali) व महेश बियाणी की दोस्ती बचपन से शुरू हुई जो आज भी कायम है। श्रीमाली ने बताया कि वे जब १३ वर्ष के थे तब पढ़ाई के साथ छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढाने के लिए हाउसिंग बोर्ड से सिंधी कॉलोनी पैदल जाते थे। रास्ते में मोपेड जाते कई बार उन्हेंं महेश मिल जाते थे। एक-दो बार उन्होंने उसे पैदल देखा तो मोपेड पर सिंधी कॉलोनी तक लिफ्ट दी। फिर यह सिलसिला शुरू हो गया। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। आलम यह था कि महेश उन्हें घर लेने आते ओर मोपेड पर बिठाकर सिंधी कॉलोनी छोड़ते। बचपन से शुरू हुई यह दोस्ती आज भी कायम है। एक-दूसरे की मदद के लिए हरसमय तैयार रहते है। श्रीमाली ने बताया कि वर्ष २००९ में उनके पिताजी की मौत हो गई थी। वे बॉडी लेकर जोधपुर से पाली आ रहे थे। उन्होंने महेश को फोन कर घटना की जानकारी दी। घर आने से पहले महेश ने सारी आवश्यक व्यवस्था कर दी। जो आज भी मुझे याद है। दोनों के परिवार सहित ससुराल तक में दोनों को दोस्त नहीं भाई मानते है। उन्होंने बताया कि शादी के बाद दोनों के बेटियां हुई। जिन्हें पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाना उनका लक्ष्य है।
हाउसिंग बोर्ड निवासी पंडित चेतन्य श्रीमाली (Pandit Chetanya Shrimali) व महेश बियाणी की दोस्ती बचपन से शुरू हुई जो आज भी कायम है। श्रीमाली ने बताया कि वे जब १३ वर्ष के थे तब पढ़ाई के साथ छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढाने के लिए हाउसिंग बोर्ड से सिंधी कॉलोनी पैदल जाते थे। रास्ते में मोपेड जाते कई बार उन्हेंं महेश मिल जाते थे। एक-दो बार उन्होंने उसे पैदल देखा तो मोपेड पर सिंधी कॉलोनी तक लिफ्ट दी। फिर यह सिलसिला शुरू हो गया। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। आलम यह था कि महेश उन्हें घर लेने आते ओर मोपेड पर बिठाकर सिंधी कॉलोनी छोड़ते। बचपन से शुरू हुई यह दोस्ती आज भी कायम है। एक-दूसरे की मदद के लिए हरसमय तैयार रहते है। श्रीमाली ने बताया कि वर्ष २००९ में उनके पिताजी की मौत हो गई थी। वे बॉडी लेकर जोधपुर से पाली आ रहे थे। उन्होंने महेश को फोन कर घटना की जानकारी दी। घर आने से पहले महेश ने सारी आवश्यक व्यवस्था कर दी। जो आज भी मुझे याद है। दोनों के परिवार सहित ससुराल तक में दोनों को दोस्त नहीं भाई मानते है। उन्होंने बताया कि शादी के बाद दोनों के बेटियां हुई। जिन्हें पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाना उनका लक्ष्य है।
आधी रात को तबीयत खराब हुई तो दोस्त आया याद
पेशे से अधिवक्ता अशोक भाटी व सूरजप्रकाश व्यास की दोस्ती कॉलेज समय से चली आ रही है। धार्मिक यात्रा हो या परिवार में कोई काम दोनों साथ नजर आते है। बांगड़ कॉलेज से बी.कॉम. एलएलबी की पढ़ाई भी दोनों ने साथ की ओर पेशा भी दोनों ने वकालत का चुना। भाटी बताते है कि बात २०११ की है। सूरजप्रकाश को पथरी के कारण दर्द हुआ। रात करीब 12 बजे उनके पास फोन आया तो वे उनके घर टेगोर नगर पहुंचे। अस्पताल में जांच करवाई दर्द में राहत नहीं मिली तो अकेले ही उन्हें जोधपुर निजी अस्पताल ले गए। जहां व्यास का ऑपरेशन हुआ। करीब छह दिन तक वे अस्पताल में रहे इस तरह भाटी उनका साया बनकर साथ खड़े रहे। भाटी ने बताया कि वर्ष २०१२ में वे जोधपुर से पाली की तरफ आ रहे थे। रात का समय था रोहट से कुछ पहले उनकी कार खराब हो गई। पहला फोन सूरजप्रकाश को लगाया तो उनका जवाब था में दस मिनट में पहुंच रहा हूं आप वही रहो। उन्होंने बताया कि घर परिवार में आज भी कोई बड़ा काम होता है तो दोनों एक-दूसरे से मशवरा जरूर करते है।
पेशे से अधिवक्ता अशोक भाटी व सूरजप्रकाश व्यास की दोस्ती कॉलेज समय से चली आ रही है। धार्मिक यात्रा हो या परिवार में कोई काम दोनों साथ नजर आते है। बांगड़ कॉलेज से बी.कॉम. एलएलबी की पढ़ाई भी दोनों ने साथ की ओर पेशा भी दोनों ने वकालत का चुना। भाटी बताते है कि बात २०११ की है। सूरजप्रकाश को पथरी के कारण दर्द हुआ। रात करीब 12 बजे उनके पास फोन आया तो वे उनके घर टेगोर नगर पहुंचे। अस्पताल में जांच करवाई दर्द में राहत नहीं मिली तो अकेले ही उन्हें जोधपुर निजी अस्पताल ले गए। जहां व्यास का ऑपरेशन हुआ। करीब छह दिन तक वे अस्पताल में रहे इस तरह भाटी उनका साया बनकर साथ खड़े रहे। भाटी ने बताया कि वर्ष २०१२ में वे जोधपुर से पाली की तरफ आ रहे थे। रात का समय था रोहट से कुछ पहले उनकी कार खराब हो गई। पहला फोन सूरजप्रकाश को लगाया तो उनका जवाब था में दस मिनट में पहुंच रहा हूं आप वही रहो। उन्होंने बताया कि घर परिवार में आज भी कोई बड़ा काम होता है तो दोनों एक-दूसरे से मशवरा जरूर करते है।
दोस्ती ऐसी की दोनों के घर निमंत्रण आता है तो ही जाते है
बापूनगर निवासी सुनील गुप्ता व सुनील पौद्दार की दोस्ती कक्षा छह से है। दोनों ने बी.कॉम तक की शिक्षा साथ की ओर बाद में दोनों ने टेक्सटाइल व्यवस्था किया। घर भी दोनों के एक ही मोहल्ले में है। घर से फेक्ट्री आना हो या लंच में घर आना हो तो दोनों एक ही कार में आते-जाते है। गुप्ता ने बताया कि समाज में कोई कार्य हो ओर दोनों में से किसी एक के घर निमंत्रण पत्र नहीं पहुंचे तो वे नहीं जाते। समाज में भी यह बात सभी को पता चल गई इसलिए दोनों के घर निमंत्रण पत्र साथ भेजते है। क्योंकि उन्हें भी बता चल गया कि हम दोस्त नहीं भाई ओर एक दूसरे के बिना कही नहीं जाते। उन्होंने बताया कि दोनों के घरों में कोई बढ़ा कार्य एक-दूसरे की सलाह के बिना नहीं होता। उन्होंने बताया कि दोस्त पौद्दार की बिटिया वृंदा की सगाई के लिए लड़का भी देखने वे साथ गए ओर निर्णय दिया कि यह लड़का सही रहेगा ओर हमें यहां सगाई कर देनी चाहिए। गुप्ता ने बताया कि वृंदा की शादी में पूरा परिवार उनके घर हर काम-काज में साथ खड़ा रहा जैसे हमारे घर में ही शादी हो। सच कहंू तो आज बच्चे बड़े हो गए लेकिन आज भी हम दोनों दिन में तीन-चार बार एक-दूसरे से नहीं मिलते तो खाना हजम नहीं होता।
बापूनगर निवासी सुनील गुप्ता व सुनील पौद्दार की दोस्ती कक्षा छह से है। दोनों ने बी.कॉम तक की शिक्षा साथ की ओर बाद में दोनों ने टेक्सटाइल व्यवस्था किया। घर भी दोनों के एक ही मोहल्ले में है। घर से फेक्ट्री आना हो या लंच में घर आना हो तो दोनों एक ही कार में आते-जाते है। गुप्ता ने बताया कि समाज में कोई कार्य हो ओर दोनों में से किसी एक के घर निमंत्रण पत्र नहीं पहुंचे तो वे नहीं जाते। समाज में भी यह बात सभी को पता चल गई इसलिए दोनों के घर निमंत्रण पत्र साथ भेजते है। क्योंकि उन्हें भी बता चल गया कि हम दोस्त नहीं भाई ओर एक दूसरे के बिना कही नहीं जाते। उन्होंने बताया कि दोनों के घरों में कोई बढ़ा कार्य एक-दूसरे की सलाह के बिना नहीं होता। उन्होंने बताया कि दोस्त पौद्दार की बिटिया वृंदा की सगाई के लिए लड़का भी देखने वे साथ गए ओर निर्णय दिया कि यह लड़का सही रहेगा ओर हमें यहां सगाई कर देनी चाहिए। गुप्ता ने बताया कि वृंदा की शादी में पूरा परिवार उनके घर हर काम-काज में साथ खड़ा रहा जैसे हमारे घर में ही शादी हो। सच कहंू तो आज बच्चे बड़े हो गए लेकिन आज भी हम दोनों दिन में तीन-चार बार एक-दूसरे से नहीं मिलते तो खाना हजम नहीं होता।