ग्रामीणों के अनुसार गांव व माता की स्थापना के बाद पहाड़ी क्षेत्र में रात में चोर आते रहते थे। चोरों के आने पर माता आवाज निकालकर ग्रामीणों को विभिन्न आवाजों के जरिए सतर्क करती थीं। कहते हैं करीब 300 साल पहले जब चोर चोरी करने आए तो माता ने आवाजें निकालनी शुरू कर दी। इस पर चोरों ने पत्थर फैंके जिससे माता की प्रतिमा खंडित हो गई थी। माता की प्रतिमा खंडित हो जाने के बाद गांव ठाकुर ने बाला गांव को वहां से हटाकर 5 किलोमीटर दूर डेंडा व कूरना के बीच बाला गांव बसाया। 150 साल बाद ठाकुर हबतसिंह ने शेषमल जैन व ग्रामीणों के सहयोग से खंडित प्रतिमा की जगह पर नई प्रतिमा की स्थापना की। खंडित प्रतिमा को भी नई प्रतिमा के पास ही रखा गया।
करीब 30 साल पहले बाला गांव निवासी उम्मेदसिंह पुत्र गजेसिंह ने भगवा धारण कर पुजा अर्चना शुरू की। बाद में उम्मेदसिंह का नामकरण पूनमपुरी महाराज हुआ। उन्हें महंत की उपाधी दी गई। मंदिर पुजारी नारायण भारती ने बताया कि मां की आस्था के चलते वहां पर रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। श्रद्धालुओं के चढ़ावे से ही महंत पूनमपुरी महाराज ने मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया। 2012 में मंदिर बनाकर माता की प्रतिमा के ऊपर ही नई प्रतिमा स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा करवाई। माता के दरबार में जो मन्नत मांगी जाती है वह पूरी होती है। नवरात्री में नौ दिन तक यहां मां के दरबार में मेला लगा रहता है।