आंकड़ों की जुबानी
वर्ष 2012 में जिले में तीन लाख 55 हजार 537 गाय थी। जो बढकऱ 2020 की पशुगणना में 3 लाख 60 हजार 871 हो गई है। इसी तरह से वर्ष 2012 में 3 लाख 11 हजार 691 भैंसे थी, जो 2020 में बढकऱ 3 लाख 32 हजार 860 हो गई। इसी तरह से वर्ष 2012 में 8 लाख 50 हजार 596 भेड़ थी, जो 2020 में घटकर 7 लाख 64 हजार 787 रह गई। 2012 में 7 लाख 67 हजार 468 बकरियां थी, जो 2020 में घटकर 6 लाख 82 हजार 447 रह गई।
वर्ष 2012 में जिले में तीन लाख 55 हजार 537 गाय थी। जो बढकऱ 2020 की पशुगणना में 3 लाख 60 हजार 871 हो गई है। इसी तरह से वर्ष 2012 में 3 लाख 11 हजार 691 भैंसे थी, जो 2020 में बढकऱ 3 लाख 32 हजार 860 हो गई। इसी तरह से वर्ष 2012 में 8 लाख 50 हजार 596 भेड़ थी, जो 2020 में घटकर 7 लाख 64 हजार 787 रह गई। 2012 में 7 लाख 67 हजार 468 बकरियां थी, जो 2020 में घटकर 6 लाख 82 हजार 447 रह गई।
भैंस के दूध के मिल रहे ज्यादा दाम
जिले में भैंसों की संख्या ज्यादा बढ़ी है। गायों के मुकाबले में भैंसों के दूध के डेयरी में ज्यादा दाम मिलते है। भैंस की फेट ज्यादा आती है। जबकि गाय की फेट कम आती है। इस कारण भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गाय के बजाय भैंस पालन में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं।
जिले में भैंसों की संख्या ज्यादा बढ़ी है। गायों के मुकाबले में भैंसों के दूध के डेयरी में ज्यादा दाम मिलते है। भैंस की फेट ज्यादा आती है। जबकि गाय की फेट कम आती है। इस कारण भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गाय के बजाय भैंस पालन में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं।
युवाओं का दूसरे प्रदेशों में पलायन
जिले में परम्परागत पशुपालन से जुड़े परिवारों के अधिकांश युवा रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन कर गए हैं। जिले के अधिकांश युवा कर्नाटक, मुम्बई, गुजरात व चेन्नई में रोजगार की तलाश में चले गए है। दूसरी ओर संयुक्त परिवारों की संख्या में भी ग्रामीण क्षेत्रों में दिनों दिन कमी आ रही है। इस वजह से भी पशुपालन घट रहा है।
जिले में परम्परागत पशुपालन से जुड़े परिवारों के अधिकांश युवा रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन कर गए हैं। जिले के अधिकांश युवा कर्नाटक, मुम्बई, गुजरात व चेन्नई में रोजगार की तलाश में चले गए है। दूसरी ओर संयुक्त परिवारों की संख्या में भी ग्रामीण क्षेत्रों में दिनों दिन कमी आ रही है। इस वजह से भी पशुपालन घट रहा है।
सरकार से कोई्र मदद नहीं
जिले में पशुपालकों को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है। पशुओं की बीमा योजना भी बंद है। दूसरी ओर अधिकांश पशुचिकित्सालयों में पशुचिकित्सक नहीं है। पशुधन सहायकों के भरोसे ही चिकित्सालय चल रहे है। सरकारी स्तर पर पशुपालकों को काई संबल नहीं मिल रहा है। – शिवनाथ गुर्जर, दूदौड़।
जिले में पशुपालकों को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है। पशुओं की बीमा योजना भी बंद है। दूसरी ओर अधिकांश पशुचिकित्सालयों में पशुचिकित्सक नहीं है। पशुधन सहायकों के भरोसे ही चिकित्सालय चल रहे है। सरकारी स्तर पर पशुपालकों को काई संबल नहीं मिल रहा है। – शिवनाथ गुर्जर, दूदौड़।