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खुशी ही ऐसी थी कि लोग तिरंगा लेकर दौड़ पड़े

locationपालीPublished: Aug 11, 2018 11:01:42 am

Submitted by:

rajendra denok

– वर्ष 1947 में आजादी देखने वाले बुजुर्ग बोले – – वो दौर कुछ – हटकर था- पाली में जश्न मनाने का उल्लास तो कम था, पर खुशी अपार थी

It was such a pleasure that people would race with the tricolor.

खुशी ही ऐसी थी कि लोग तिरंगा लेकर दौड़ पड़े

राजीव दवे
पाली। देश को वर्ष 1947 में 15 अगस्त को आजादी मिली थी। उस दिन पाली में भी आजादी की खुशी मनाने वाले कम नहीं थे। हालांकि यहां कोई बड़ा जश्न तो नहीं हुआ, लेकिन बैठकें हुई। लोग गलियों में तिरंगा लेकर घूमे। उस दिन की यादें आज भी अपने जेहन में समेटे बुजुर्ग बताते हैं कि आजाद होने की खुशी में भारत के दो हिस्से होने की बात भी भूल गए थे। आजादी मिलने के बाद दिल्ली में बैठे नेता क्या करेंगे। इससे आम व्यक्ति इतफाक नहीं रखता था। पाली के आम आदमी को सरोकार था तो महज उस दिन अंग्रेजों के भारत छोडकऱ जाने से। उनका कोई बड़ा सपना भी नहीं था। यहां स्वतंत्रता के दिन भी रोजमर्रा की तरफ ही बाजार खुला था और लोग काम धंधे पर निकले थे।
-गांधी कटला हाकम ने फहराया था तिरंगा : गांधी
शहर के नाडी मोहल्ला क्षेत्र में रहने वाले सम्मत गांधी बताते है कि वे वर्ष 1947 में 20 वर्ष के थे। 15 अगस्त के दिन यहां गांधी कटला में बैठक हुई थी। जिसमें करीब 100 लोगों ने भाग लिया था। गांधी कटले में तत्कालीन हाकम ने तिरंगा फहराया था। वहीं धानमंडी में नगर पालिका की ओर से तिरंगा लहराया गया था। वे बताते है उस समय लोगों की सोच अलग थी। इस कारण जश्न का उल्लास नहीं था, लेकिन आजाद होने की खुशी बहुत थी। वैसे आजाद होने की खबर पाली में 15 अगस्त 1947 से दो दिन पहले ही आ गई थी। उन्होंने बताया कि उस समय पाली में दिल्ली से हिन्दुस्तान नाम का एक अखबार भी आता था। उसमें भी आजादी मिलने की खबर आई थी।

झण्डा लेकर पूरे मोहल्ले में घूमे थे

सोमनाथ मंदिर के पास रहने वाले हाजी अब्दुल गफूर बा लोहार देश को आजादी मिलने के समय करीब 22 वर्ष के थे। वे बताते है हमें आजादी मिलने का समाचार शहर में जगह-जगह बजने वाले रेडियो से लगा था। आजादी वाले दिन हम सभी तिरंगा लेकर गली-गली में घूमे थे। राजनीति से कोई लेना देना नहीं था, इस कारण किसी बैठक या अन्य जगह पर नहीं गए थे। इतना जरूर याद है कि पाकिस्तान बना था, लेकिन पाली के निवासियों को उससे कोई लेना-देना नहीं था। उस दिन हम तो इससे खुश थे कि अंग्रेजों से आजादी मिली है। उस दिन लोगों ने एक-दूसरे को आजादी मिलने की मुबारकबाद भी पेश की थी। कलक्टर (हाकम) के ऑफिस पर भी झण्डा फहराया होगा।

आम दिनों जैसा ही था माहौल
लक्ष्मी मार्केट के पास रहने वाले रामजस बंसल आजादी के समय करीब 16 वर्ष के थे। वे बताते है कि आजादी मिलने वाले दिन लोगों में खुशी का माहौल था। उनके पिता मुरलीधर की कच्ची दुकान सर्राफा बाजार में थी। इसी के पास गांधी कटला है। जहां आजादी मिलने पर बैठक हुई थी। वे उस बैठक में तो नहीं गए थे, लेकिन दुकान पर बैठने के कारण उस दिन की याद आज भी ताजा है। उस बैठक में तत्कालीन हाकम भी पहुंचा था। वे बताते है कि उस दिन पाली में कोई बड़ा जश्न नहीं मनाया गया था। शहर भी छोटा था। यहां की जनसंख्या करीब 15 हजार थी। शहर में कुछ लोगों के पास रेडियो था। उनके वहां जाकर शहरवासियों ने देश आजाद होने के समाचार सुने थे।

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