पत्र में यह भी बताया कि इस प्रथा के कारण कई परिवार बर्बाद हो जाते है। कई बच्चों को पढ़ाई बीच में छूट जाती है। कई लोग साहुकार के कर्ज के बोझ से दब जाते है। लेण व पेरावणी भी की जाती है। इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए समाज की ओर से मृत्यु भोज अधिनियम का समर्थन करेगा। इस मौके अध्यक्ष प्रकाश चन्द जांगीड़, सचिव मांगीलाल शर्मा, कोषाध्यक्ष भंवर लाल शर्मा, डॉ. बंशीलाल पाखरवड़, रामनारायण इगन, इंद्रप्रकाश किंजा, ऋषिराज त्रिपाठी, जगदीश दायमा, शंकरलाल डिगोरिया आदि मौजूद थे।
प्रथाएं पूरी करने छूट जाते हैं सपने
दरअसल, मृत्यु भोज के चलते लेण व पैरावणी प्रथा का चलन भी समाज में है। इसमें रिश्तेदारों को कपड़े लाने पड़ते हैं। सामाजिक स्तर पर होने वाले ऐसे आयोजन में लोगों को पैसे न होते हुए भी इधर-उधर से व्यवस्था करनी पड़ती है और लेण व पैरावणी प्रथा का पालन करना पड़ता है। लेकिन, अब सरकार भी मृत्युभोज प्रतिबंध अधिनियिम की सख्ती से पालना की ओर अग्रसर है। ऐसे में कुछ समाज भी अब आगे आने लगे हैं।
दरअसल, मृत्यु भोज के चलते लेण व पैरावणी प्रथा का चलन भी समाज में है। इसमें रिश्तेदारों को कपड़े लाने पड़ते हैं। सामाजिक स्तर पर होने वाले ऐसे आयोजन में लोगों को पैसे न होते हुए भी इधर-उधर से व्यवस्था करनी पड़ती है और लेण व पैरावणी प्रथा का पालन करना पड़ता है। लेकिन, अब सरकार भी मृत्युभोज प्रतिबंध अधिनियिम की सख्ती से पालना की ओर अग्रसर है। ऐसे में कुछ समाज भी अब आगे आने लगे हैं।