बोहराराम की 2009 में बगड़ी नगर निवासी दिव्यांग सुशीलादेवी के साथ परिणय सूत्र में बंधे। इसके बाद दोनों ने कुदरत से लोहा लेते हुए एक दूसरे का जीवन संवारने में जुट गए। सुशीला पांवों से दिव्यांग होने के बावजूद सामान्य महिला से ज्यादा फुर्ती से कार्य करती है। दृष्टिबाधित पति की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ती। पिछले 10 वर्ष से सुशीला हमेशा सूरज की पहली किरण के साथ सवेरे पांच बजे उठकर नहा धोकर पूजा-पाठ के बाद पति के लिए चाय, नाश्ता और खाना बनाती है। पति को नौकरी पर भेजने के बाद खुद ट्राइसाइकिल से घर से कुछ दूरी पर डेयरी और किराणा की दुकान चलाती है और पति को आर्थिक सहयोग भी कर रही है। बोहराराम भी सुशीला के सुख दु:ख का ख्याल रखता है। वह साए की तरह उसके साथ रहता है।
एक दूसरे को पाकर खुश है
बोहराराम ने बताया कि सुशीला जैसी आत्मविश्वासी पत्नी सौभाग्य से ही मिलती है। वह हर समय सेवा में तैयार रहती है। मुझे उसने कभी अंधता का अहसास तक नहीं होने दिया। पत्नी व परिवार को खुशियां देने के लिए वह दृष्टिबाधित विद्यालय में अध्यापन करवाता है। सुशीला देवी का कहना है कि पति बोहराराम उसका बहुत ख्याल रखते है तथा हर सुख दुख में पूरा सहयोग करते हैं।
बोहराराम ने बताया कि सुशीला जैसी आत्मविश्वासी पत्नी सौभाग्य से ही मिलती है। वह हर समय सेवा में तैयार रहती है। मुझे उसने कभी अंधता का अहसास तक नहीं होने दिया। पत्नी व परिवार को खुशियां देने के लिए वह दृष्टिबाधित विद्यालय में अध्यापन करवाता है। सुशीला देवी का कहना है कि पति बोहराराम उसका बहुत ख्याल रखते है तथा हर सुख दुख में पूरा सहयोग करते हैं।