इतिहासिक महत्ता
गांव वर्षों पूर्व अरावली क्षेत्र में राज करने वाले सोलंकी राजपूतों के अधीन था। बाद में अगरसिंह कुम्पावत ने सोलंकियों से मुक्त करवाकर अपना अधिकार जमाया। माघसुद तेरस संवत 1652 में बासनी गांव की स्थापना कर यहां विभिन्न जातियों के लोगों को लाकर बसाया। वर्तमान में ये गांव अपनी कई विशेषताओं को समेटे हुए है। यह गांव कुम्पावत राठौड़ राजपूतों की जागीर में रहा। गांव के 30 वर्षो तक सरपंच रह े 80 वर्षीय माधोसिंह राठौड़ पूर्व सरपंच सहित ग्रामीणों ने बताया कि बासनी गांव अपने आप में कई विशेषताओं को समेटे हुए हैं। वर्तमान में यहां सरपंच के पद पर श्रीमती खुशबू चौधरी निर्वाचित हुई हैं, जो स्नातक हैं।
गांव वर्षों पूर्व अरावली क्षेत्र में राज करने वाले सोलंकी राजपूतों के अधीन था। बाद में अगरसिंह कुम्पावत ने सोलंकियों से मुक्त करवाकर अपना अधिकार जमाया। माघसुद तेरस संवत 1652 में बासनी गांव की स्थापना कर यहां विभिन्न जातियों के लोगों को लाकर बसाया। वर्तमान में ये गांव अपनी कई विशेषताओं को समेटे हुए है। यह गांव कुम्पावत राठौड़ राजपूतों की जागीर में रहा। गांव के 30 वर्षो तक सरपंच रह े 80 वर्षीय माधोसिंह राठौड़ पूर्व सरपंच सहित ग्रामीणों ने बताया कि बासनी गांव अपने आप में कई विशेषताओं को समेटे हुए हैं। वर्तमान में यहां सरपंच के पद पर श्रीमती खुशबू चौधरी निर्वाचित हुई हैं, जो स्नातक हैं।
संस्कृत शिक्षा का केन्द्र
आस-पास के 9 गांवों व ढाणियों का पंचायत मुख्यालय होने के साथ ही संस्कृत शिक्षा विभाग का जिला संकुल भी यहां होना महत्व रखता है। यह जिले का एकमात्र ऐसा गांव है जहां संस्कृत के दो विद्यालय हैं। यहां राजकीय प्राथमिक संस्कृत विद्यालय और राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय दोनों संचालित हैं। वर्षों तक संचालित होने के बाद एकीकरण के तहत प्राथमिक विद्यालय वरिष्ठ उपाध्याय (माध्यमिक) में समाहित किया गया। देववाणी के विद्यालय का श्रेय पूर्व सरपंच राठौड़ को जाता है। जिन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता से अभिभूत होकर स्वयं की भूमि स्कूल भवन को देकर अथक प्रयास से राजकीय प्राथमिक संस्कृत विद्यालय खुलवाया और प्रवेशिका विद्यालय खुलवाया।
आस-पास के 9 गांवों व ढाणियों का पंचायत मुख्यालय होने के साथ ही संस्कृत शिक्षा विभाग का जिला संकुल भी यहां होना महत्व रखता है। यह जिले का एकमात्र ऐसा गांव है जहां संस्कृत के दो विद्यालय हैं। यहां राजकीय प्राथमिक संस्कृत विद्यालय और राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय दोनों संचालित हैं। वर्षों तक संचालित होने के बाद एकीकरण के तहत प्राथमिक विद्यालय वरिष्ठ उपाध्याय (माध्यमिक) में समाहित किया गया। देववाणी के विद्यालय का श्रेय पूर्व सरपंच राठौड़ को जाता है। जिन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता से अभिभूत होकर स्वयं की भूमि स्कूल भवन को देकर अथक प्रयास से राजकीय प्राथमिक संस्कृत विद्यालय खुलवाया और प्रवेशिका विद्यालय खुलवाया।
खेती और पशुपालन पर निर्भरता
गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। यहां की जमीन उपजाऊ और पानी मीठा है। बासनी जोजावर के काश्तकार खरीफ में बाजरा, ज्वार, मक्की, कपास, तिल, मंूग और मोठ की अच्छी पैदावार करते हैं। रबी के यहां गेंहू और रायड़े की मुख्य उपज होती है। यहां 50 के करीब कृषि कुएं हैं। अधिकांश कुओं पर बिजली कनेक्शन भी हैं। नजदीकी क्षेत्र में कृषि उपज मण्डी नहीं होने से यहां के किसान जोजावर कस्बे में जाकर उपज बेचते हैं। पशुपालन के प्रति भी यहां के लोगों का काफी रुझान है।
गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। यहां की जमीन उपजाऊ और पानी मीठा है। बासनी जोजावर के काश्तकार खरीफ में बाजरा, ज्वार, मक्की, कपास, तिल, मंूग और मोठ की अच्छी पैदावार करते हैं। रबी के यहां गेंहू और रायड़े की मुख्य उपज होती है। यहां 50 के करीब कृषि कुएं हैं। अधिकांश कुओं पर बिजली कनेक्शन भी हैं। नजदीकी क्षेत्र में कृषि उपज मण्डी नहीं होने से यहां के किसान जोजावर कस्बे में जाकर उपज बेचते हैं। पशुपालन के प्रति भी यहां के लोगों का काफी रुझान है।
ये समस्याएं
बासनी गांव में जिले का संस्कृत शिक्षा विभाग का संकुल है। विद्यालय का भवन जर्जर हो रहा है। चार कमरों में 12 कक्षाएं और शिक्षकों की कमी है। उप स्वास्थ्य केंद्र पर ताला लगा है। होम्योपेथिक चिकित्सालय बंद हो गया है। यही हालात पटवार घर के हैं। सरपंच खुशबू चौधरी ने बताया कि कई सरकारी भवन वीरान पड़े हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोगों को अन्यंत्र जाना पड़ता है। बीमारी या डिलेवरी के समय महिलाओं को लेकर आस-पास के कस्बों का रुख करना पड़ता है।
बासनी गांव में जिले का संस्कृत शिक्षा विभाग का संकुल है। विद्यालय का भवन जर्जर हो रहा है। चार कमरों में 12 कक्षाएं और शिक्षकों की कमी है। उप स्वास्थ्य केंद्र पर ताला लगा है। होम्योपेथिक चिकित्सालय बंद हो गया है। यही हालात पटवार घर के हैं। सरपंच खुशबू चौधरी ने बताया कि कई सरकारी भवन वीरान पड़े हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोगों को अन्यंत्र जाना पड़ता है। बीमारी या डिलेवरी के समय महिलाओं को लेकर आस-पास के कस्बों का रुख करना पड़ता है।