कोविड-19 की दूसरी लहर लगभग पीक पर है। अकेले अप्रेल माह में इस महामारी ने ऐसे-ऐसे जख्म दिए जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। किसी घर में जवान बेटे की मौत हो गई तो कहीं परिवार का मुखिया जिंदगी गंवा बैठा। कई बच्चों के सिर से माता-पिता का साया उठ गया है। ऐसे में आनंदपुर कालू के उपसरपंच बाबूलाल टाक का उदाहरण हमारे सामने एक मिसाल है। उन्होंने बेटे व बेटी की शादी का आयोजन स्थगित कर दिया। जिला प्रशासन की एक सलाह पर सबलपुरा गांव के घेवरराम सीरवी भी नेक काम में आगे आए और प्रीतिभोज रद्द किया है। दोनों ही परिवारों से सभी को सीख लेनी चाहिए। संक्रमण फैलने का एक बड़ा कारण शादियों को माना गया है। कई जगह शादियों में इतनी भीड़ जुटी कि न केवल कोविड नियम तार-तार हुए, बल्कि सैकड़ों घरों तक कोरोना वायरस पहुंचा है। नतीजा हमारे सामने हैं कोरोनो से हर तीसरा व्यक्ति जकड़ा हुआ है।
अस्पतालों की हालत दयनीय है। संसाधनों के अभाव में अस्पतालों की चौखट पर जिंदगियां मौत के मुंह में समा रही है। सवाल यह है कि इतना कुछ खोने के बाद भी हमारी अंतर आत्मा हमें खुशियां मनाने के लिए कैसे इजाजत देती होंगी? क्या हमारी संवेदनाएं इतनी मर गईं कि किसी के दुख का हमें रतिभर अहसास नहीं है? यदि ऐसा है तो यह मानवता के लिए अत्यंत कठिन दौर शुरू होने का प्रमाण है। सुख-दु:ख में शरीक होना हमारी संस्कृति और विरासत रही है। यह परम्परा आगे भी कायम रहनी चाहिए।
शादियों का सीजन अभी गया नहीं है। 14 अप्रेल को आखातीज पर बड़ी संख्या में शादियां प्रस्तावित है। यह सही है कि शादी की तैयारियां कोई एक ही दिन में नहीं होती। इसके लिए महीनों पहले पूरा परिवार जुटता है। टेंट, गार्डन, बैंड, घोड़ी, वाहन इत्यादि साल-छह महीने पहले बुक करा दिए जाते हैं। कार्ड बांटने का काम भी एक-दो महीने पहले शुरू हो जाता है। बुकिंग के दौरान कुछ पैसा एडवांस देना पड़ता है। इस आर्थिक नुकसान से बचने के लिए लोग महामारी में भी शादियां कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या गारंटी है कि आपके आयोजन में कोरोना वायरस नहीं आएगा। जरा सोचिए, वायरस इतना फैला हुआ है कि किसी न किसी को चपेट में तो लेगा ही। भगवान न करे किसी की जान पर संकट बन आए, खुदा-न-खास्ता ऐसा हो गया तो खुद को जीवन भर माफ नहीं कर पाएंगे।
दूल्हा-दुल्हन या आपका कोई परिजन भी संक्रमित हुआ तो खुशियों में खलल पडऩा तय है। भला इसी में है कि हालात दुरुस्त होने तक ऐसे आयोजनों को टाल दें। आपके इस फैसले से कोई नाराज नहीं होगा, बल्कि दाद मिलेगी। जिन घरों में कोरोना से मौतें हुई हैं, उन्हें भी शोक-श्रद्धांजलि सभाओं से बचना चाहिए। क्योंकि आपका सुरक्षित रहना भी जरूरी है। जान है तो जहान है। कोरोना की दूसरी लहर से भी पार पाएंगे। जिंदगी फिर पटरी पर लौटेगी। खुशियों के गीत गाए जाएंगे। ऐसे माहौल में उत्सव मनाएंगे तो शोभनीय होगा, आनंददायी भी। आज ही तत्काल फैसला करें और जीवन बचाने में सहयोग करें। आयोजन स्थगित करने वालों को सम्मानित करने का जिला प्रशासन का नवाचार आपको प्रेरित और प्रोत्साहित भी करेगा। उम्मीद ही नहीं भरोसा है कि आप ऐसी अनुकरणीय पहल अवश्य करेंगे।