जर्मनी-इंगलैंड युद्ध में तुर्की ने जर्मनी का साथ दिया। इसलिए इस युद्ध में सैकड़ों तुर्की सैनिकों को बंदी बनाकर जोधपुर भेजा गया। जहा सैंट्रल जेल में रखा गया। कुछ दिनों तक वहां रखने के बाद सुमेरपुर भेजने की योजना पर विचार किया गया। सुमेरपुर में जहां कैदकर रखा जाना था। वहां के निवासियों को 1 लाख 57 हजार 76 रुपए हर्जाना देकर सुमेरपुर के पुराने स्थान पर बसाया गया। जिसे आज भी उंदरी कहा जाता है। सुमेरपुर बसने से पूर्व यहां उंदरी गांव आबाद था।
सभी तुर्की युद्ध बंदियों को सुमेरपुर लाकर एक अस्थाई जेल में रखा गया। इस दौरान कुछ कैदियों की मौत हो गई। धीरे-धीरे सभी कैदी मौत का शिकार हो गए। कैदियों के मरने के बाद दफनाया गया। कैदियों की कब्रों के चारों ओर चारदीवारी बनाई गई। प्रत्येक कैदी के शव के पास सैनिक का नाम, बटालियन का नाम व मृत्यु तिथि अंकित किए हुए पत्थर लगाए गए हैं। आस-पास झाडियां हो गई हैं, लेकिन कब्रें व शिलालेख स्पष्ट नजर आ रहे हैं। अधिकांश सैनिकों की मौत सितंबर 1918 को होने संबंधी शिलालेख लगे हैं। सुमेरपुर के इस स्थान पर कुल 149 युद्धबंदियों की कब्रें हैं।
सुमेरपुर में जहां कब्रें हैं। वहां पहले खुले भूखण्ड में कब्रें थी। बाद में सरकार ने उसके चारो ओर पक्की चारदीवारी का निर्माण करवाकर चारों ओर गेट लगाए गए। इस बारे में जर्मन दूतावास के अधिकारी भी पूरी जानकारी लेते रहते हैं। एक बार नई दिल्ली से जर्मन दूतावास के अधिकारियों का दल भी आया था।