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कभी स्कूली शिक्षा से दूर, अब उच्च शिक्षा की होड़ में आदिवासी

locationपालीPublished: Nov 25, 2021 07:46:37 pm

Submitted by:

Suresh Hemnani

– आदिवासी इलाकों में बालिका शिक्षा की सुनहरी तस्वीर- चिकित्सा, इंजीनियरिंग, शिक्षा व प्रशासनिक सेवा में उच्च पदों पर कार्यरत आदिवासी बालाएं

कभी स्कूली शिक्षा से दूर, अब उच्च शिक्षा की होड़ में आदिवासी

कभी स्कूली शिक्षा से दूर, अब उच्च शिक्षा की होड़ में आदिवासी

-सिकन्दर पारीक
जोधपुर। डूंगरपुर की मोना रोत, पढऩे की ललक थी तो माता-पिता ने उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजने की हामी भरी। मोना पढ़ी और जिले की पहली आदिवासी महिला आइइएस के रूप में दमकी…भारतीय प्रशासनिक सेवा में ऐसा ही डंका बजाया डूंगरपुर की अवनी बामनिया ने। तीन बार असफल हुई लेकिन आखिर प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर दिखाया। इसी तरह सिरोही के मुदरला गांव की सुमन गरासिया पुलिस तो नागपुरा की प्रीति गरासिया चिकित्सा विभाग में कार्यरत है। ये तीन-चार नाम तो उदाहरण मात्र है।
आदिवासी इलाकों में कभी अशिक्षा के अंधकार में बैठी बालिकाएं शिक्षा की नई उड़ान भर रही है। महिला साक्षरता में पिछड़े इन इलाकों में अब बालिकाएं इंजीनियरिंग, चिकित्सा, शिक्षा व प्रशासनिक सेवाओं में कई उच्च पदों पर कार्यरत हैं। पहले जहां बालक-बालिकाओं के नामांकन में आधे से अधिक का फर्क रहता था, अब यह आंकड़ा महज 1000-2000 तक सिमट गया है। कई जिलों में तो छात्रों के मुकाबले छात्राओं का नामांकन अधिक है।
यह है बानगी
प्रतापगढ़- उच्च शिक्षा में छात्राएं अधिक
प्रतापगढ़ के राजकीय महाविद्यालय में छात्रों का नामांकन 1862 और छात्राएं 2297 हैं। यानी उच्च शिक्षा में इस क्षेत्र की बालाएं आगे बढ़ रही है।

सिरोही- बढ़ा बालिकाओं का नामांकन
आदिवासी बाहुल्य आबूरोड में सत्र 2020-21 में तहसील क्षेत्र की कुल 223 स्कूलों में बालिकाओं का नामांकन 17068 था। जो सत्र 2021-22 में बढकऱ 18170 हो गया।
डूंगरपुर- कुछ कदम दूर
जिले में कक्षा एक से 12वीं में कुल नामांकन तीन लाख 13 हजार 151 का है। इसमें बालिकाओं की संख्या एक लाख 56 हजार 14 और बालकों की संख्या एक लाख 57 हजार 126 है।
बांसवाड़ा- उच्च शिक्षा में आगे
सरकारी स्कूलों में दसवीं में छात्र 15781 और छात्राओं का नामांकन 15018 है जबकि 11वीं में छात्राओं का नामांकन छात्रों से अधिक है। छात्र 10148 और छात्राएं 10325 नामांकित है।
यह भी था नजारा
बांसवाड़ा के गढ़ी में वर्ष 1967 में स्कूल शुरू हुआ तो महज एक आदिवासी बालिका ने प्रवेश लिया और वह भी फेल हो गई। अब नजारा दूसरा है। बांसवाड़ा के 449 सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से 12वीं तक 108906 बालिकाएं प्रवेशित है। घाटोल ब्लॉक के 62 स्कूलों में छात्राओं का नामांकन छात्रों से अधिक है।
मौका मिला तो साबित किया
आदिवासी इलाकों में अब बालिकाओं को पढऩे का मौका दिया जा रहा है। मौका मिलने पर बालिकाओं ने प्रतिभा साबित कर दिखाई। अभिभावक पहले जहां एक गांव से दूसरे गांव बच्चियों को नहीं भेजते थे, अब बड़े शहरों में रहकर बच्चियां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। मेरी स्कूल की पढ़ाई बांसवाड़ा-डूंगरपुर में हुई। उदयपुर रहकर मैंने आइआइटी की तैयारी बिना कोचिंग की। कानपुर से आइआइटी के बाद दिल्ली में रहकर मैंने सिविल सेवा की तैयारी की और चयनित हुई हूं। अभी कर्नाटक पोस्टिंग है। आने वाले समय में यह तस्वीर और सुनहरी मिलेगी। –मोना रोत, आइएएस
जिन्दगी में हार मिलती है, लेकिन जीत वो सुनिश्चित करता है जो कोशिश करना नहीं छोड़ता। आठवीं तक बांसवाड़ा के निजी स्कूल में पढ़ी। उदयपुर से 12वीं की। दिल्ली से एमए और एमफिल किया। आइएएस प्री में तीन बार असफल रही। जिद नहीं छोड़ी और मंजिल को हासिल कर दिखाया। –अवनी बामनिया, आइएएस
इसमें सरकारी प्रयास और जागरुकता, दोनों का असर है। नब्बे के दशक में चलाए गए साक्षरता अभियान के दौरान गांव-ढाणी तक शिक्षा का संदेश पहुंचाया गया था। अभी बालिका प्रोत्साहन की योजनाएं भी कारगर साबित हो रही है। अभिभावकों की जागरुकता का भी परिणाम है कि बालिकाओं में यहां शिक्षा के प्रति ललक बढ़ी है। परिणाम भी बालिकाओं का बेहतर रहता है। –शम्मे फरोजा बतूल अंजुम, अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक), बांसवाड़ा
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