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पाली के मुछाला महावीर से ओशो रजनीश का क्या है नाता…जानिए

locationपालीPublished: Jan 20, 2022 05:44:41 pm

Submitted by:

rajendra denok

साठ के दशक में ओशो ने शिष्यों को दिए थे प्रवचन

पाली के मुछाला महावीर से ओशो रजनीश का क्या है नाता...जानिए

पाली के मुछाला महावीर से ओशो रजनीश का क्या है नाता…जानिए

राजेन्द्रसिंह देणोक

पाली. ‘चिदात्मन! सबसे पहले मेरा प्रेम स्वीकार करें। इस पर्वतीय निर्जन में, मैं उससे ही आपका स्वागत करता हूं। यूं इसके अतिरिक्त मेरे पास देने को कुछ है भी नहीं। प्रभु के सान्निध्य में जिस अनंत प्रेम को मेरे भीतर जन्म दिया है उसे बांटना चाहता हूं। क्या आप मेरे इस प्रेम को स्वीकार करेंगे..?’ यह प्रवचन 1 जून, 1963 की संध्या को मुछाला महावीर में आध्यात्मिक गुरु, धर्मवेता और आचार्य रजनीश ने अपने शिष्यों को दिया था।
घाणेराव के निकट ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है मुछाला महावीर। संभवत: देश में मुछों वाली महावीर की यह पहली प्रतिमा होगी। इसी से मुछाला महावीर (muchhala mahaveer) कहलाए। यहां की एक और अमिट पहचान है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। आचार्य ओशो रजनीश (Osho Rajnish) की साधना का भी यह केन्द्र रहा है। खास बात यह कि ओशो ने यहीं से साधना के शिविरों का शुभारंभ किया था। ओशो की पुस्तक ‘साधना पथ’ में इसका उल्लेख है। करीब एक सप्ताह तक ठहरे ओशो ने लोगों के सवालों जवाब भी दिए थे।
ओशो ने कई बार प्रवचन के दौरान पाली के मुछाला महावीर का जिक्र भी किया। उनकी पुस्तक ‘ झरत दसहुं दिस मोती ’ में Osho कहते हैं, आपको मालूम है कि राजस्थान में जैनों का एक मंदिर है, वह एक ही मंदिर है सारे हिंदुस्तान में जहां महावीर की मूंछें हैं। मुझे पता नहीं था कि मुछाला महावीर मेरे कार्य का पहला स्थल बनेगा। मेरा पहला ध्यान शिविर मुछाला महावीर में हुआ। वाह रे मुछाला महावीर! ओशो के आन्दोलन को राजस्थान में लाने वाले उदयपुर के हीरालाल कोठारी का नाम आयोजकों में आता है।
महात्मा भूरीबाई से मिले थे ओशो
मेवाड़ की प्रसिद्ध संत महात्मा भूरीबाई से यहीं ओशो की भेंट हुई। भूरीबाई ने ओशो को ज्ञान दिया था कि मौन ही सबसे बड़ा ध्यान है। पुस्तक ज्यूं था त्यूं ठहराया में एक प्रवचन में ओशो कहते हैं कि उनके पहले शिविर में पचास व्यक्ति ही सम्मिलित हुए थे। वहां महात्मा भूरीबाई भी आए थे। भूरिबाई के पास हाईकोर्ट के एक एडवोकेट कालिदास भाटिया, उसकी सेवा में रहते थे। सब छोड़ दिया था। भूरिबाई के कपड़े धोते, उसके पैर दबाते। भूरिबाई वृद्ध थीं। इसके बाद जब भी राजस्थान गया हूं, हर जगह भूरबाई आती रही है। संत भूरी बाई द्वारा ध्यान योग के विषय पर कही बात भी उन्होंने उल्लेखित की। ओशो ने कहा, बाई के भक्ति मार्ग के कायल है। हर बार आते तो ओशो के लिए भूरी बाई आम लाती। उन्हें अपने हाथों से खिलाती और फिर बचे हुए आम प्रसाद स्वरूप भक्तों में वितरित कर देती थीं।

एमपी में जन्मे ओशो

ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्यप्रदेश (madhyapradesh) के कुचवाड़ा में हुआ था। बचपन का नाम चन्द्रमोहन जैन था। बचपन से ही उन्हें दर्शन में गहरी रुचि रही। वे बगावती सोच और परम्पराओं के विरोधी थे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ग्लिपसेंस ऑफ द माइ गोल्डन चाइल्डहुड’ में लिखा भी है। उनकी पढ़ाई जबरपुर में हुई। उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा में प्रवचन दिए। उन्होंने साधना शिविरों की शुरुआत की। आरंभ में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था। बाद में वे ओशो रजनीश के रूप में पहचाने गए। 1981 से 1985 के बीच वे अमरीका चले गए। वहां उन्होंने आश्रम भी स्थापित किया। वहां वे कई कारणों से चर्चा में भी रहे।
1985 में वे भारत आ गए। 19 जनवरी 1990 में पूणे के आश्रम में उनका देहांत हो गया था।

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