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Holi 2018 बुंदेलखंड में पांच दिनों तक चलेगा फाग उत्सव, ये है बुंदेली फाग में खास

locationछतरपुरPublished: Feb 27, 2018 12:21:38 pm

Submitted by:

Samved Jain

बुंदेलीखंड की होली में छिपे हैं पर्यावरण संरक्षण और संस्कृति बचाने से संदेश

holi 2018
छतरपुर। बुंदेलखंड में होली के पर्व की तैयारियां इन दिनों परंपरागत रूप से चल रही हैं। गांव-गांव में गोबर के कंडे, ओपल और बरूला बनाए जा रहे हैं। होली पर इन्हीं कंडों को जलाकर लोग परंपरागत रूप से होली का पर्व मनाएंगे। यहां पर पांच दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। होलिका दहन से लेकर रंग पंचमी तक बुंदेलखंड के गांवों की चौपालों में फाग गायन, होली मिलन समारोह से लेकर अन्य कार्यक्रम होते हैं। इस दौरान भाई-दोज का पर्व और पंचमी महोत्सव भी मनाया जाता है। बुंदेलखंड की होली लोगों को पर्यावरण संरक्षण और लोक संस्कृति के संरक्षण का संदेश देती है।
बुंदेलखंड इलाके में फागुन के महीने में गांव की चौपालों में फाग की अनोखी महफिलें जमती हैं जिनमें रंगों की बौछार के बीच गुलाल-अबीर से सने चेहरों वाले फगुआरों के होली गीत (फाग) जब फिजा में गूंजते हैं तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही है। फाग के बोल सुनकर बच्चे, जवान व बूढ़ों के साथ महिलाएं भी झूम उठती हैं। फाग सी मस्ती का नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता है। सुबह हो या शाम गांव की चौपालों में सजने वाली फाग की महफिलों में ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर-गुलाल के साथ मदमस्त किसानों बुंदेलखंडी होली गीत गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनोखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकनेए नाचने पर मजबूर हो जाते हैं।
बुंदेलखंड इलाके में फागुन के महीनों में ऋतुराज बसंत के आते ही जब टेसू के पेड़ लाल सुर्ख फूलों से लद जाते हैं, इन्हीं फूलों को तोड़कर लोग रंग बनाते हैं और होली खेलते हैं। लोग भले ही अब रासायनिक रंगों का उपयोग करने लगे हों, लेनि बुंदेलखंड के कई गांवों में आज भी टेसू के फूलों के रंग से होली होती है। यहां के मंदिरों में अब भी भगवान को टेसू के फूलों के रंग चढ़ाए जाते हें। वहीं गांव-गांव की चौपालों में बुंदेलखंड के मशहूर लोक कवि ईसुरी के बोल फाग की शक्ल में फिजा में गूंजकर किसानों को मदमस्त कर देते हैं।
वरिष्ठ नागरिक डॉ. अशोक त्रिपाठी बताते हैं कि लोक कवि ईसुरी के फागों में जादू है। दिनभर की मेहनत-मजदूरी करके शाम को जब थका-हारा किसान वापस आता है, तब फाग की महफिलों की मस्ती उसकी पूरी थकान दूर कर उसे तरो-ताजा कर देती है। बुंदेलखंड में फागुन को महोत्सव के तौर पर मनाने की पुरानी रवायत है। बसंत से लेकर होली तक इस इलाके के हर गांव की चौपालों में फागों की धूम मची रहती है जिससे हर जगह मस्ती छाई रहती है। मौज का यह आलम है कि कहीं 80 साल का बूढ़ा बाबा बांसुरी से फाग की धुन निकालता नजर आता है तो कहीं 12 साल का छोटा बच्चा नगाड़ा बजाकर फाग शुरू होने का ऐलान करता दिखाई देता है तो महिलाएं भी इस मस्ती में पीछे नहीं रहती हैं। वे भी एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाती हुईं फाग के विरह गीत गाकर माहौल को और भी रोमांचक बना देती हैं। बुंदेलखंड के मशहूर फाग गायक उदय बदन सिंह बताते हैं कि फाग में विरह, श्रृंगार, ठिठोली और वीर रस भरे गीत गाए जाते हैं इसलिए फाग का जादू बुंदेली किसानों के सिर चढ़कर बोलता है। बसंत से लेकर होली तक फाग की फुहारों से पूरा बुंदेलखंड सराबोर हो जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे यहां श्रृंगार का देवता उतर आया हो।
कुछ खास होती है यहां की होली :
बुंदेलखंड की होली अपने आप में सबसे अनूठी रही है। ईसुरी का फाग गायन व टेसू के फूलों की होली की अब केवल यादें ही शेष रह गई है। समय के साथ बदलाव आने के बाद भी यहां के ग्राम्य जीवन में आज भी पारंपरिक पर्व रचा-बसा है। होली पर गुजिया का स्वाद, भाग की ठंडाई और नाच-गाना अब भी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं।
साहित्यकार सुरेंद्र शर्मा शिरीष बताते हैं कि बुंदेलखंड में पर्वो को सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां होली पर्व की छटा तो फाल्गुन से शुरू हो जाती है। विशेषकर इस दौरा में शादी विवाहों का आयोजन हो तो विदाई के पहले जमकर होली खेली जाती रही है। गांवों में यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है। होलिका दहन में प्रत्येक परिवार के लोग पुराने दौर में लकड़ी की होली जलाने के लिये देते थे। जिसमें पूरे मुहल्ले के लोग उमड़ते थे। रासायनिक रंगों के बजाय टेसू के फूलों या महावरी रंगों का होली खेलने में इस्तेमाल होता रहा है। एक ऐसा दौर भी आया जब होली के साथ-साथ मस्ती के नाम पर अश्लीलता का चलन भी बढ़ा। समूचे बुंदेलखंड में दूसरे दिन दोज पर्व के दिन होली खेली जाती है। इस मौके पर होली का उत्साह देखते ही बनता है। ऐसे में यदि होली के साथ गुजिया का करार स्वाद, हंसी ठिठोली, परिहास व भांग की तरंग हो तो होली का मजा कई गुना बढ़ जाता है। किसानों का पूरा वक्त इन दिनों खेतों में व्यतीत होता है। ऐसे में किसानों को भी पर्व के बहाने ही सही थोड़ा मौका राहत व सुकून का मिलता है।

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आधे बुंदेलखंड में दूसरे दिन होती है होली :
जिले से सटे यूपी के झांसी, महोबा और हमीरपुर इलाके में होली जलने के दूसरे दिन पर्व नहीं मनाया जाता है बल्कि उस दिन कई जगह शोक मनाया जाता है। बुंदेलखंड क्षेत्र के आशीष सागर बताते हैं कि पूरे देश में होली परमा के दिन पर खेली जाती है, लेकिन बुंदेलखंड में पहले दिन होली नहीं खेली जाती। परमा के दिन सभी जगह होली का हुड़दंग होता है, सभी होली के रंगों में डूबे होते हैं, वहीं बुंदेलखंड में परमा को शोक मनाया जाता है। गौरतलब है कि परमा के दिन रानी लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव का होली के दिन निधन हो गया था। जिस कारण समूचे बुंदेलखंड में तब से लेकर आज भी परमा पर होली नहीं खेली जाती। कुछ जगह गांवों कस्बों में नई पीढ़ी के होरियारे कीचड़ की होली या कपड़ा फाड़ होली अवश्य खेलते हैं। कई लोग पिकनिक पर जाते हैं। भाई दोज से लेकर रंग पंचमी तक लगातार होली खेली जाती है।
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