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पाली को मिली नई पहचान: अब और गहरी रचेगी सोजत की मेहंदी, रिसर्च में दो तरह के अनोखे पौधे किए गए विकसित

काजरी अनुसंधान केंद्र ने 10 वर्षों की मेहनत से दो ऐसे पौधों को विकसित किया है, जिसने सोजत की मेहंदी को और भी खास बना दिया है। इन पौधों से तैयार मेहंदी और भी गहरी चढ़ेगी, वहीं इनका उत्पादन भी 30 फीसदी अधिक हो रहा है।

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Pali mehadi

सोजत क्षेत्र के एक खेत में खड़ी मेहंदी फसल की जांच करते शोधकर्ता। (फोटो-पत्रिका)

पाली। जिले के सोजत की मेहंदी देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी खास पहचान रखती है। अब इस पहचान को और गहरा रंग मिला है। काजरी अनुसंधान केंद्र ने 10 वर्षों की सतत मेहनत से मेहंदी के दो ऐसे पौधे विकसित किए हैं, जिनमें न केवल रंग अधिक गहरा है, बल्कि पत्तियों का उत्पादन भी सामान्य पौधों की तुलना में काफी अधिक है। इन पौधों में लासोन की मात्रा अधिक पाई गई है। यही वह तत्व है जो मेहंदी को रंग देता है।

उनकी पत्तियों का उत्पादन भी प्रति हेक्टेयर 1200 किलो तक अधिक है। काजरी की ओर से मेहंदी का रंग अधिक गहरा करने और पत्तियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए 19 तरह के पौधे लेकर शोध किया गया। उन सभी पौधों की क्लोनल (पौधों की कटिंग), इवेल्यूएशन (वास्तिविक ग्रोथ) का सर्वे किया। इस पर दो पौधों में लोसन (मेहंदी में रंग) व पत्तियां अधिक मिली। उन पौधों में फूल भी देरी से आते हैं। ऐसे में पत्तियां अधिक समय तक भी रहती हैं।

किसानों को दिए जा रहे नए पौधे

अब ये पौधे काजरी की ओर से किसानों को भी दिए जा रहे हैं। पौधों पर अन्य शोध भी किए जा रहे हैं। यह शोध करने में डॉ. नूर मोहम्मद, डॉ. डीके गुप्ता, डॉ. कीर्तिका, डॉ. पीके राय व डॉ. बीएल जांगिड़ ने सहयोग किया। शोध के बाद तैयार पौधों में उत्पादन सामान्य की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है।

इतनी पत्तियां मिल रही शोध किए पौधों में

सीजेड-आरएसपीएच 8 पौधा:

3594 किलो पत्तियां आती हैं प्रति हैक्टेयर, लोसन कंटेंट 2.27 प्रतिशत

सीजेड-आरएसपीएच 9 पौधा:

2270 किलो पत्तियां आती हैं प्रति हैक्टेयर, लोसन कंटेंट 2.33 प्रतिशत

सामान्य पौधे में 1900 से 2000 किलों पत्तियां प्रति हैक्टेयर में किसान को मिलती हैं। लोसन कंटेंट 1.8 से 2 प्रतिशत है।

हमारी ओर से लगातार मेहंदी पर शोध किया गया। पाली जिले में करीब 35-40 हजार हैक्टेयर में मेहंदी होती है। इससे पाली जिले की पहचान है। शोध के बाद लोसन व पत्तियों में काफी इजाफा हुआ है। -डॉ अनिल कुमार शुक्ला, प्रमुख, काजरी अनुसंधान अनुसंधान केंद्र, पाली


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