अंग्रेजों द्वारा आऊवा का इतिहास मिटाने की भरपुर कोशिश की गई थी। क्रांतिवीर कुशालसिंह चांपावत का किला भी पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। आऊवा की आस्था की प्रतीक मां सुगाली की प्रतिमा भी खंडित कर दी थी। ऐतिहासिक विरासत को भी नष्ट किया गया। 161 बाद पेनोरमा के निर्माण से आऊवा का अब गौरव पुन: लौटा है। यहां मां सुगाली की प्रतिमा भी लगाई गई है, जहां आसपास के लोग दर्शन करने आते हैं। आऊवा की क्रांति में सहयोग करने वाले अन्य ठिकानेदारों का इतिहास भी वर्णित है।
अंग्रेजों ने 24 क्रांतिकारियों को कोर्ट मार्शल और मौत के घाट उतार दिया था। यह दृश्य सचित्र वर्णित है। यह दृश्य देखने भर से ही भुजाएं फडक़ उठती है और तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विरुद्ध आक्रोश फूट पड़ता है। स्वाधीनता के प्राण न्यौछावर करने वालों के नाम भी यहां अंकित है।
आऊवा का इतिहास अब तक किताबों तक ही सीमित रहा था। आऊवा को जितनी कीर्ति मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल पाई। पूर्वजों ने बलिदान देकर देश की आजादी में भूमिका निभाई थी। पाली जिले का अगर कोई गौरव है तो वह आऊवा है। जिसने स्वाभिमान के खातिर अपने आप को देश के लिए समर्पित कर दिया। -पुष्पेन्द्रसिंह चांपावत, वंशज (कुशालसिंह चांपावत )।