25 जून की रात को विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया व उन्हें यातनाएं दी गई। प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप लगा दी गई। बिना इजाजत के जो लिखता-बोलता, उसे जेल में डाल दिया जाता। देश भर में जबरन नसबंदी यहां तक कि कुआरों एवं युवाओं की भी नसबन्दी करवा दी गई। कवि-लेखक एवं फिल्मकारों को भी आपातकाल के दौरान निशाने पर लेकर क्षति पहुंचाई गई। इस अवधि में देश भर में कांग्रेस शासन की दमनकारी नीतियां जारी रही। मीसा एवं डी.आई.आर के तहत लाखों लोगों को जेलों में बंद कर यातनाएं दी गई, बिजली के करंट लगाए गए। आपातकाल के विरोध में पाली में 68 लोगों ने गिरफ्तारियां दीं।
मेरे विरुद्ध भी वारंट था, लेकिन संघ का आदेश था कि मैं बाहर रहूं ताकि अन्य आंदोलनकारियों को प्रेरित कर सकूं। आपातकाल के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए हमने क्रांतिदूत नाम से पेपर निकाला। खांडी गांव के निकट मशीन लगा रखी थी। मैं यहां से खबरें लेकर जाता और अखबार प्रिंटकर वापस ले आता। कई-कई दिन मोटरसाइकिलों पर भूखे-प्यासे गुजारे। जय प्रकाश नारायण के शब्दों में आपातकाल को ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा गया। आपातकाल में लोकतंत्र की हत्या हुई।
जो आंदोलन करते, उन्हें जेल में डाल दिया
आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने आन्दोलन किया, जिन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 19 माह तक उन्हें जेलों में रहना पड़ा, उनके घर परिवार बर्बाद हो गए थे। इस जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने वाले हजारों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। जुल्म के शिकार इन बंदियों की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पेंशन शुरू की थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने उस पर रोक लगा दी। जो निंदनीय है। आपातकाल के इस काले अध्याय को देश का नागरिक कभी भुला नहीं पाएगा।
आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने आन्दोलन किया, जिन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 19 माह तक उन्हें जेलों में रहना पड़ा, उनके घर परिवार बर्बाद हो गए थे। इस जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने वाले हजारों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। जुल्म के शिकार इन बंदियों की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पेंशन शुरू की थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने उस पर रोक लगा दी। जो निंदनीय है। आपातकाल के इस काले अध्याय को देश का नागरिक कभी भुला नहीं पाएगा।