छुट्टी नहीं है
पटाखों के त्योहार पर टोपी वाले महकमे में छुट्टी नहीं मिलती। वैसे यह हर मौके पर होता है, लेकिन इस बार कई ठिकाणेदारों ने पड़ोस में जोधाणा में बसने वाले अपनों के साथ ही त्योहार मनाने की तैयारी कर ली है। हालांकि ड्यूटी जो है, लेकिन ड्यूटी के साथ यह काम भी जरूरी है। जो जोधाणा की सीमा से सटे बैठे है, उन्हें कोई चिंता नहीं है। किसी ने आस-पास ही अपनों को बुलाकर रखा है। कोई सुबह जल्दी जाकर मिलकर आ जाता है। किसी ने दिन में जाकर आने की व्यवस्था कर ली है, कप्तान को भनक तक नहीं लगे, यह भी कर रखा है। पीछे भले ही चोर शोर मचाए, लेकिन जाना जरूरी है।
पटाखों के त्योहार पर टोपी वाले महकमे में छुट्टी नहीं मिलती। वैसे यह हर मौके पर होता है, लेकिन इस बार कई ठिकाणेदारों ने पड़ोस में जोधाणा में बसने वाले अपनों के साथ ही त्योहार मनाने की तैयारी कर ली है। हालांकि ड्यूटी जो है, लेकिन ड्यूटी के साथ यह काम भी जरूरी है। जो जोधाणा की सीमा से सटे बैठे है, उन्हें कोई चिंता नहीं है। किसी ने आस-पास ही अपनों को बुलाकर रखा है। कोई सुबह जल्दी जाकर मिलकर आ जाता है। किसी ने दिन में जाकर आने की व्यवस्था कर ली है, कप्तान को भनक तक नहीं लगे, यह भी कर रखा है। पीछे भले ही चोर शोर मचाए, लेकिन जाना जरूरी है।
रात का मेहमान मत बनाओ
ठिकाणों की सलाखों में दो किस्से क्या हुए, हर कोई पीछे हटने लगा है। खासकर रात में कोई भी मेहमान को ठिकाणे में रखना नहीं चाहता। दिन में पकड़ा, दिन में ही पेश, रात की झंझंट से दूर। टोपी वाले महकमे में यह खौफ पहले नहीं देखा। किसी ने पूछ लिया, साहब रातभर सलाखों में रख लो, सुबह देख लेंगे। जवाब मिला, नहीं भई, सुबह क्या होगा, किसे पता, इसलिए सूरज ढलने से पहले ही इसे जमा करवा दो। अब तो दूध का जला… वाली कहावत याद आने लग गई।
ठिकाणों की सलाखों में दो किस्से क्या हुए, हर कोई पीछे हटने लगा है। खासकर रात में कोई भी मेहमान को ठिकाणे में रखना नहीं चाहता। दिन में पकड़ा, दिन में ही पेश, रात की झंझंट से दूर। टोपी वाले महकमे में यह खौफ पहले नहीं देखा। किसी ने पूछ लिया, साहब रातभर सलाखों में रख लो, सुबह देख लेंगे। जवाब मिला, नहीं भई, सुबह क्या होगा, किसे पता, इसलिए सूरज ढलने से पहले ही इसे जमा करवा दो। अब तो दूध का जला… वाली कहावत याद आने लग गई।