चौके ने चौंकाया
सियासत में उतरे काले कोट वाले नेताजी अब सब पर भारी पड़ रहे हैं। उन्होंने टिकटों की दौड़ में ऐसा चौका मारा कि सियासत के मंझे खिलाडिय़ों की फिल्डिंग को भी फेल कर दिया। मजे की बात यह थी कि नेताजी के मुखालफत की कमान उनकी ही पार्टी के एक बड़े नेताजी के हाथ में थी। उनकी अगुवाई में कारवां बना। कई महारथी साथ जुड़ गए। कई दिन तक उथल-पुथल मची रही। सबको लग रहा था कि कुछ करिश्मा होने वाला है। काले कोट वाले नेताजी अंत तक भारी पड़े और खुशी के पर्व पर सबको झटका दे दिया। अब सब मन मसोस कर बैठे हैं। मन ही मन तो तलवारें अब भी खींची हुई है, लेकिन पार्टी नेताओं के दबाव के आगे चेहरे पर खुशी दिखाने का प्रयास जरूर रहे हैं।
सियासत में उतरे काले कोट वाले नेताजी अब सब पर भारी पड़ रहे हैं। उन्होंने टिकटों की दौड़ में ऐसा चौका मारा कि सियासत के मंझे खिलाडिय़ों की फिल्डिंग को भी फेल कर दिया। मजे की बात यह थी कि नेताजी के मुखालफत की कमान उनकी ही पार्टी के एक बड़े नेताजी के हाथ में थी। उनकी अगुवाई में कारवां बना। कई महारथी साथ जुड़ गए। कई दिन तक उथल-पुथल मची रही। सबको लग रहा था कि कुछ करिश्मा होने वाला है। काले कोट वाले नेताजी अंत तक भारी पड़े और खुशी के पर्व पर सबको झटका दे दिया। अब सब मन मसोस कर बैठे हैं। मन ही मन तो तलवारें अब भी खींची हुई है, लेकिन पार्टी नेताओं के दबाव के आगे चेहरे पर खुशी दिखाने का प्रयास जरूर रहे हैं।
चुनावी मौसम में आई बहार
चुनाव के समय अक्सर नए-नवैले नेताओं की बहार रहती है। वे चुनाव के कुछ वक्त पहले आते हैं। टिकटों के लिए खूब दौड़ लगाते हैं। प्रत्याशियों का नाम तय होने के बाद फिजां से ऐसे गायब होते हैं जैसे मौसम बदलता है। अगले चुनाव में फिर लौट आते हैं। टिकट के लिए दौड़ लगाते हैं। यह सिलसिला कुछ सालों में बढ़ गया है। वे पंचायत से लेकर प्रदेश और देश की पंचायत के लिए खुद को सबसे योग्य मानते हैं और टिकट के लिए दावेदारी करते हैं। ऐसे नेताओं की इन दिनों बहार आई हुई है। फूल वाली पार्टी में तो यह दौड़ पूरी हो गई। हाथ वाली पार्टी में यह रेस अब तक चल रही है। पड़ौसी जिले में शामिल एक सीट पर भी यही सियासी रंग चढ़ा हुआ है। अगले कुछ दिनों तक तो यही बहार रहेगी। प्रत्याशी तय होने के बाद अगले चुनाव का उनको फिर इंतजार रहेगा।
चुनाव के समय अक्सर नए-नवैले नेताओं की बहार रहती है। वे चुनाव के कुछ वक्त पहले आते हैं। टिकटों के लिए खूब दौड़ लगाते हैं। प्रत्याशियों का नाम तय होने के बाद फिजां से ऐसे गायब होते हैं जैसे मौसम बदलता है। अगले चुनाव में फिर लौट आते हैं। टिकट के लिए दौड़ लगाते हैं। यह सिलसिला कुछ सालों में बढ़ गया है। वे पंचायत से लेकर प्रदेश और देश की पंचायत के लिए खुद को सबसे योग्य मानते हैं और टिकट के लिए दावेदारी करते हैं। ऐसे नेताओं की इन दिनों बहार आई हुई है। फूल वाली पार्टी में तो यह दौड़ पूरी हो गई। हाथ वाली पार्टी में यह रेस अब तक चल रही है। पड़ौसी जिले में शामिल एक सीट पर भी यही सियासी रंग चढ़ा हुआ है। अगले कुछ दिनों तक तो यही बहार रहेगी। प्रत्याशी तय होने के बाद अगले चुनाव का उनको फिर इंतजार रहेगा।