धुएं में आ रही ‘बू’
शहरी सरकार के कार्यालय में सोमवार को सुबह-सुबह ही धुआं उठ गया। धुआं क्यों उठा? इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठाने वालों के भी अपने तर्क है। कहा जा रहा है कि एक ही जगह लपटें क्यों उठीं। जबकि जिम्मेदार बिजली जनित कारण गिना रहे हैं। अब कारण जो भी रहे हों, यह तो जांच का विषय है। असल में जो दस्तावेज आग की भेंट चढ़ें है, उनमें अक्सर धुआं उठता ही है। कोई न कोई लपेटे में आता ही है। कपड़े के थान चोरी होने के बाद से शहर सरकार वैसे भी सुर्खियों में है। शहरी सरकार पर कइयों की नजरें टेढ़ी भी है। फिर तो धुएं में बू तो आएगी ही।
शहरी सरकार के कार्यालय में सोमवार को सुबह-सुबह ही धुआं उठ गया। धुआं क्यों उठा? इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठाने वालों के भी अपने तर्क है। कहा जा रहा है कि एक ही जगह लपटें क्यों उठीं। जबकि जिम्मेदार बिजली जनित कारण गिना रहे हैं। अब कारण जो भी रहे हों, यह तो जांच का विषय है। असल में जो दस्तावेज आग की भेंट चढ़ें है, उनमें अक्सर धुआं उठता ही है। कोई न कोई लपेटे में आता ही है। कपड़े के थान चोरी होने के बाद से शहर सरकार वैसे भी सुर्खियों में है। शहरी सरकार पर कइयों की नजरें टेढ़ी भी है। फिर तो धुएं में बू तो आएगी ही।
यहां तो भगवान ही मालिक
शहरी सरकार के दफ्तर से कपड़े के थान चोरी होने जैसा बड़ा मामला हाथ आने के बावजूद हाथ वाली पार्टी एकजुट नहीं दिखी। पार्टी के एक नेताजी ने विरोध का झंडा अपने हाथ में जरूर लिया। लेकिन उन पर आरोप है कि वे विपक्ष की भूमिका निभाने की बजाय अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं। पार्टी के एक पुराने खिलाड़ी जरूर साथ आए हैं। उन्होंने फूल वाली पार्टी के नेताजी को लपेटने में तो कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं दे पाए। हाथ वाली पार्टी के मुखिया भी किनारा कर गए। पार्टी के बैनर तले चुनाव लडऩे वाले नए-नवैले नेताजी की पटरी तो वैसे भी नहीं बैठ रही। ऐसे में यहां तो भगवान ही मालिक है।
शहरी सरकार के दफ्तर से कपड़े के थान चोरी होने जैसा बड़ा मामला हाथ आने के बावजूद हाथ वाली पार्टी एकजुट नहीं दिखी। पार्टी के एक नेताजी ने विरोध का झंडा अपने हाथ में जरूर लिया। लेकिन उन पर आरोप है कि वे विपक्ष की भूमिका निभाने की बजाय अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं। पार्टी के एक पुराने खिलाड़ी जरूर साथ आए हैं। उन्होंने फूल वाली पार्टी के नेताजी को लपेटने में तो कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं दे पाए। हाथ वाली पार्टी के मुखिया भी किनारा कर गए। पार्टी के बैनर तले चुनाव लडऩे वाले नए-नवैले नेताजी की पटरी तो वैसे भी नहीं बैठ रही। ऐसे में यहां तो भगवान ही मालिक है।