बकौल प्रांजल कहती है कि उन्हें बचपन से स्कैच बनाने का शौक था। इसी के चलते वे ज्वैलरी डिजाइनर बनी। जब लॉक डाउन लगी तो उन्होंने यह कला बच्चों को सिखाना शुरू किया। जिससे बच्चों को जीवन में नई राह मिले और बड़े होने पर रोजगार के अवसर भी प्राप्त हो सके। वे बताती है कि बच्चा सामान्य रूप से दो माह में स्कैचिंग सीख सकता है।
उनका कहना है कि स्कैंचिंग करने पर सबसे बड़ी बात यह है कि उसमें जीवंतता होनी चाहिए। उन्होंने तो खुद ही इस कला को सीखा। वे स्कैच बनाते समय हर छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखती है। जिससे स्कैच तैयार होने पर वह पूरी तरह से संजीव लगे। लोग उस पर से नजर नहीं हटा सके। ऐसा ही करना उन्होंने अपने यहां आने वाले बच्चों को भी सिखाया है।