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यादों में छात्रसंघ, छात्रनेताओं को रास नहीं आई राजनीति

locationपालीPublished: Aug 09, 2016 11:18:00 am

– कॉलेज से शुरू हुआ राजनीतिक भविष्य आगे नहीं बढ़ा पाए छात्रसंघ अध्यक्ष

barmer

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राजकीय महाविद्यालय में 24 अगस्त को छात्रसंघ चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर कॉलेज परिसर में चुनाव का बिगुल बज चुका है। छात्र संगठनों के साथ सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष राजनीतिक दल भी जुड़े हुए हैं। छात्रसंघ चुनाव राजनीति में प्रवेश की पहली कड़ी माना जाता है। 
इसको लेकर छात्रनेता वर्ष भर तैयारी करते हुए छात्र समस्याओं को लेकर विरोध-प्रदर्शन करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद स्थानीय स्तर का एक भी छात्रसंघ अध्यक्ष आज तक राज्य स्तर की राजनीति तक नहीं पहुंच पाया। अब तक दो-चार अध्यक्ष सरपंच, पार्षद व पंचायत समिति सदस्य ही बन पाए हैं।
1965 से अब तक 28 अध्यक्ष

स्थानीय कॉलेज में वर्ष 1965 में कॉलेज चुनाव शुरू हुए। अब तक 28 जने छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। कॉलेज चुनाव के दौरान छात्र नेता को बड़ी मेहनत व गठजोड़ कर मुकाम हासिल होता है। चुनाव को लेकर लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी एक भी छात्र पदाधिकारी अपना भविष्य राजनीति में नहीं बना पाए है। अधिकांश ने कॉलेज के बाद राजनीति क्षेत्र को चुना भी नहीं है। सभी अपने-अपने कार्यो में व्यस्त हो गए है।
पीजी कॉलेज के अध्यक्षों पर एक नजर

डॉ. महानंद शर्मा 1965-66

राजनीति स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा के जिलाध्यक्ष बने। वे इसके साथ ही बाड़मेर नगर पालिका के अध्यक्ष भी बने। उनका जिले की राजनीति में कद रहा है।
अर्जुनसिंह राठौड़ 1966-67

अब क्या स्थिति : इनकी राजनीति छात्रसंंघ अध्यक्ष तक ही सीमित रही। कॉलेज के बाद राठौड़ पुलिस सेवा में चले गए। अभी अतिरिक्त जिला पुलिस अधीक्षक हैं।

शैतानसिंह भाटी 1967-68
अब क्या स्थिति : छात्र संघर्ष समिति संगठन से चुनाव लड़े और छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर चुने गए, लेकिन छात्रसंघ अध्यक्ष के बाद राजनीति में नजर नहीं आए।

कूम्पसिंह राठौड़ 1968-69

अब क्या स्थिति : छात्र संघर्ष समिति संगठन से छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर चुने गए। इसके बाद वे राजनीति की बजाय गांव में खुद के कार्य में व्यस्त रहे।
सोहनलाल दांती 1970-71

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद अधिवक्ता बन गए। राजनीति को इन्होंने भी कॅरियर के रूप में नहीं चुना।

खरथाराम चौधरी 1971-72

अब क्या स्थिति : – छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद अधिवक्ता बन गए। इस कारण इनका राजनीतिक भविष्य कॉलेज चुनाव तक ही सीमित रहा।
शंकरदान चारण 1972-73

अब क्या स्थिति : छात्र संघर्ष समिति संगठन से छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर चुने गए, लेकिन इसके बाद राजनीति में सक्रिय रूप से कभी भाग नहीं लिया।

रूपसिंह राठौड़ 1974-75
अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर रहने के बाद ये दो बार चौहटन के सरपंच चुने गए। वर्तमान में जिला परिषद के सदस्य हैं। अधिवक्ता भी हैं।

रामकिशोर माहेश्वरी 1977-78

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष रहने के बाद इन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में जाना उचित नहीं समझा। इन्होंने प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी की और स्थानीय निकाय विभाग के अधिशासी अधिकारी बन गए। वर्तमान में वे नगर परिषद आयुक्त पद कर कार्यरत हैं।
बाबूलाल चौधरी 1978-79

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद राजनीतिक क्षेत्र नहीं चुना। वे रोडवेज में भर्ती हो गए और वर्तमान में रोडवेज में कार्यरत हैं।

बाबूदान चारण 1979-80
अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद राजनीतिक क्षेत्र नहीं चुना। इन्होंने रोडवेज में नौकरी शुरू कर दी। वर्तमान में रोडवेज में कार्यरत हैं।

गोपालसिंह सोढ़ा 1980-81

अब क्या स्थिति : काफी समय तक एबीवीपी में सक्रियता निभाई, लेकिन कुछ कारणवश वे छात्र राजनीति के बाद राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाए। वर्तमान में शिव बीईईओ हैं।
जबरसिंह राठौड़ 1993-94

अब क्या स्थिति : एबीवीपी में सक्रियता निभाई, लेकिन कॉलेज राजनीति से आगे नहीं बढ़ पाए। वर्तमान में खुद का व्यवसाय है।

हड़वंतसिंह भाटी 1994-95

अब क्या स्थिति : पुलिस सेवा में वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पद पर कार्यरत हैं। इनका राजनीतिक भविष्य छात्रसंघ अध्यक्ष तक ही सीमित रहा।
वीरमाराम 1995-96

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद अधिवक्ता बन गए। इस कारण इनका राजनीतिक भविष्य कॉलेज चुनाव तक ही सीमित रहा।

राजूसिंह भाटी 1996-97

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद राजनीति में भाग नहीं लिया। वे अध्यापक के लिए चयनित हुए और वर्तमान में शिक्षक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।
सोनाराम सेजू 1997-98

अब क्या स्थिति : इनका राजनीतिक भविष्य छात्रसंघ अध्यक्ष तक ही सीमित रहा। वर्तमान में खुद का व्यवसाय कर रहे हैं।

गौतम राजपुरोहित 1998-99

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद राजकीय सेवा में चले गए। वर्तमान में राजकीय सेवा में हैं।
देवीसिंह भाटी 1999-2000

अब क्या स्थिति : इनका राजनीतिक भविष्य कॉलेज तक ही सीमित रहा। वर्तमान में ये खुद का व्यवसाय कर रहे हैं।

कुचटाराम मेघवाल 2001-02

अब क्या स्थिति : जेएनवीयू में बतौर एसोसियेट प्रोफेसर कार्यरत हैं। इनका राजनीतिक भविष्य छात्रसंघ अध्यक्ष तक ही रहा।
अखेसिंह भाटी 2002-03

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद राजनीति की बजाय खुद का व्यवसाय शुरू किया। अभी ठेकेदारी कर रहे हैं।

नरेशदेव सारण 2004-05

अब क्या स्थिति : एनएसयूआई से छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। उसके बाद कांग्रेस पार्टी में सक्रिय हैं। वर्तमान में नगर परिषद बाड़मेर में पार्षद हैं।
राजपाल मेघवाल 2010-11

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद अभी भी अध्ययनरत हैं। सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत हैं।

प्रमोद चौधरी 2011-12

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ चुनावों के बाद राजनीति में सक्रिय नहीं दिखे। वर्तमान में ठेकेदारी का कार्य कर रहे हैं।
रघुवीरसिंह तामलोर 2012-13

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद छात्र व युवा राजनीति में सक्रियता निभा रहे हैं। अभी खुद का व्यवसाय कर रहे हैं।

छगन मेघवाल 2013-14

अब क्या स्थिति : छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद राजनीति में भी सक्रिय हैं। वर्तमान में पंचायत समिति के सदस्य हैं।
नरपतराज मूंढ़ 2014-15

अब क्या स्थिति : वर्तमान में एबीवीपी में सक्रियता निभा रहे हैं। प्रदेश एवं संभाग स्तर पर संगठन में पदाधिकारी हैं।

भूराराम गोदारा 2015-16

अब क्या स्थिति : वर्तमान छात्रसंघ अध्यक्ष हैं। फिलहाल अध्ययन पर ही ध्यान दे रहे हैं।

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