ग्रामीण पर्यटन यों हो सकता फायदेमंद -गांवों में रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। -शहरों की तरफ पलायन रुकेगा -परम्परागत पहनावा और बोलियां संरक्षित होगी। -नृत्य, गायन इत्यादि से जुड़ी कलाएं लुप्त होने से बच सकेंगी।
-ग्रामीणों की आय में इजाफा होगा। केवल खेती अथवा पशुपालन पर ही निर्भर नहीं रहेंगे। -कम जमीन वाले किसान भी पर्यटन के जरिए अपना रोजगार कर सकेंगे। -ऊंट और घोड़ा पर्यटन के लिए कारगर साबित हो सकेगा। पशुपालकों की आय का साधन बन सकेगा।
पर्यटकों को लुभाते डेस्टीनेशन
-आऊवा का पैनोरमा
-राणकपुर और जवाई बांध की जीप सफारी
-घाणेराव, नारलाई की पहाडिय़ों और प्राकृतिक दृश्य
-राणकपुर जैन और सूर्य मंदिर-ठंडी बेरी और मुछाला महावीर
-सोनाणा खेतलाजी के निकट परम्परागत गांव
-भाद्राजून की छतरियां-सुंधा माता मंदिर व धोरों पर राइडिंग
-जालोर का तोपखाना और भीनमाल का कोटकास्ता किला
-सिरोही के जैन व अन्य मंदिर
-पाली का गोरमघाट
-पाली शहर स्थित बांगड़ म्यूजियम-जालोर का सिरे मंदिर
पर्यटन का खजाना है मारवाड़-गोडवाड़
गजेन्द्रसिंह पोषाणा
गेस्टराइटर :
जालोर, पाली व सिरोही पर्यटन का खजाना है। जालोर के मारवाड़ नस्ल के घोड़े देश ही नहीं दुनियाभर में पर्यटकों के पसंदीदा बने हुए हैं। यहां गांव-गांव में पुरा संपदा और कला संस्कृति विरासत के रूप में उपलब्ध है। यहां का पहनावा, बोलियां, परम्परागत कला, ग्रामीण जीवनशैली पर्यटकों को आकृषित करने के लिए काफी है। मारवाड़ नस्ल के घोड़ों पर सवारी के लिए देसी और विदेशी पर्यटक प्रतिदिन आ रहे हैं। गांव-गांव में घुड़सवारी और ऊंटसवारी के लिए समुचित प्रयास किए जा सकते हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा। घोड़ा और ऊंट पालना पशुपालक के लिए तभी आसान होगा, जब उससे आय होगी। सरकार को इसके लिए प्रयास करने चाहिए। गांवों में घुड़सवारी के टे्रक विकसित किए जा सकते हैं। जालोर शहर का संस्कृत विश्वविद्यालय हमारी समृद्ध संस्कृति का परिचायक है। इसी तरह, सुंधामाता और कोटकास्ता जैसे स्थल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त है। पर्यटन विभाग को अपने प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। पर्यटकों के लिए रहने-ठहरने की सुविधाएं विकसित किए जाने पर भी ध्यान देना चाहिए। हमारे यहां ग्रामीण पयर्टन की असीम संभावनाएं है। केवल सरकारी संरक्षण की दरकार है।
गेस्टराइटर :
जालोर, पाली व सिरोही पर्यटन का खजाना है। जालोर के मारवाड़ नस्ल के घोड़े देश ही नहीं दुनियाभर में पर्यटकों के पसंदीदा बने हुए हैं। यहां गांव-गांव में पुरा संपदा और कला संस्कृति विरासत के रूप में उपलब्ध है। यहां का पहनावा, बोलियां, परम्परागत कला, ग्रामीण जीवनशैली पर्यटकों को आकृषित करने के लिए काफी है। मारवाड़ नस्ल के घोड़ों पर सवारी के लिए देसी और विदेशी पर्यटक प्रतिदिन आ रहे हैं। गांव-गांव में घुड़सवारी और ऊंटसवारी के लिए समुचित प्रयास किए जा सकते हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा। घोड़ा और ऊंट पालना पशुपालक के लिए तभी आसान होगा, जब उससे आय होगी। सरकार को इसके लिए प्रयास करने चाहिए। गांवों में घुड़सवारी के टे्रक विकसित किए जा सकते हैं। जालोर शहर का संस्कृत विश्वविद्यालय हमारी समृद्ध संस्कृति का परिचायक है। इसी तरह, सुंधामाता और कोटकास्ता जैसे स्थल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त है। पर्यटन विभाग को अपने प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। पर्यटकों के लिए रहने-ठहरने की सुविधाएं विकसित किए जाने पर भी ध्यान देना चाहिए। हमारे यहां ग्रामीण पयर्टन की असीम संभावनाएं है। केवल सरकारी संरक्षण की दरकार है।
हमारे यहां ग्रामीण पर्यटन की असीम संभावनाएं है। पर्यटन को कानूनी पचड़ों से मुक्ति मिलनी चाहिए। ग्रामीण पर्यटन न केवल रोजगार के लिहाज से है, बल्कि हमारी कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए भी कारगर हो सकता है। पर्यटन पर काम करने वालों को चिन्ह्ति किया जाना चाहिए। सर्किट के अनुसार ब्रांड एम्बेसेडर बनाए जा सकते हैं। ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार को विशेष प्रयास करने चाहिए।
अजीतसिंह राव, घुड़पालक
पर्यटक गांवों में घूमना पसंद करते हैं। उन्हें ग्रामीण संस्कृति लुभाती है। वे यहां का पहनावा, कला-संस्कृति देखने ही आते हैं। इस लिहाज से हमारे यहां गांव काफी समृद्ध है। गांव-गांव में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ऐसे प्रयास किए जाए कि पर्यटक आसानी से पहुंच सके। जवाई बांध क्षेत्र भी पर्यटकों को लुभा रहा है। यहां जीप सफारी काफी पसंद की जा रही है।
कुलदीपसिंह हवेली, सांडेराव, पर्यटन क्षेत्र में कार्यरत
कुलदीपसिंह हवेली, सांडेराव, पर्यटन क्षेत्र में कार्यरत